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खरबूजे की खेती ने राजस्थान के इस गाँव के 300 परिवारों की बदली किस्मत! लाखों में हो रही कमाई, 3 राज्यों में सप्लाई

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जालोर के बांकली बांध क्षेत्र में पैदा होने वाले खरबूजे की मिठास लाजवाब है। यहां धारीदार भारतीय खरबूजे की बंपर पैदावार होती है। इसे कजली खरबूजा कहते हैं। राजस्थान के अलावा गुजरात और महाराष्ट्र में भी इसकी मांग है। गर्मी के मौसम में खरबूजे की खेती कर किसान अतिरिक्त कमाई करते हैं। ऐसे ही एक युवा किसान हैं 34 वर्षीय किशनलाल भील। किशनलाल नौकरी की तलाश में आंध्र प्रदेश गए थे। वहां उन्होंने 10 साल तक काम किया। इसके बाद वे जालोर लौट आए और खेती में हाथ आजमाया। खरबूजे की खेती से उन्हें मुनाफा हुआ। तीन महीने के छोटे से सीजन में वे लाखों कमा लेते हैं। इसके अलावा वे बाकी समय में गेहूं, बाजरा और मूंग भी बोते हैं। बांकली बांध क्षेत्र के 5 गांवों के करीब 300 परिवार खरबूजे की खेती से जुड़े हैं। यहां पैदा होने वाला खरबूजा मिश्री जितना मीठा होता है। 

खरबूजा भीषण गर्मी के दौर में शरीर में शुगर और पानी की कमी को पूरा करता है। यह खरबूजा जालोर के बांकली बांध क्षेत्र के किसानों की किस्मत भी संवार रहा है। बांकली बांध जालोर शहर से करीब 65 किलोमीटर दूर पाली की सीमा पर स्थित है। बांध के आसपास अप्रैल-मई के मौसम में खरबूजे की खेती होती है। इस धारीदार देसी खरबूजे की पहचान इसकी मिठास है। राजस्थान के अलग-अलग शहरों में इसकी मांग है। गुजरात और महाराष्ट्र में भी खरबूजे की सप्लाई होती है। बांकली बांध के पास के गांव हजवा (भाद्राजून, जालोर) निवासी किशनलाल भील ने बताया- पहले यहां रोजगार की कमी थी। युवा रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते थे। मैंने पांचवीं तक पढ़ाई की। पढ़ाई छोड़कर 2002 में छोटी उम्र में ही काम की तलाश में आंध्र प्रदेश चला गया। वारंगल जिले (वर्तमान में तेलंगाना) के जैतपुरा गांव में मिठाई की दुकान पर काम करने लगा। 10 साल दुकान पर काम करने के बाद 2013 में खुद की दुकान खोली। 4-5 साल तक दुकान चलाई, लेकिन ज्यादा मुनाफा नहीं हो रहा था। परिवार की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही थी। 2016-17 में सुना कि मेरे क्षेत्र में किसान खेती में नवाचार कर रहे हैं और पैसे भी कमा रहे हैं।

मैं 2017 में जालोर लौट आया। इसके बाद 20 बीघा पुश्तैनी जमीन पर खेती शुरू की। धीरे-धीरे खेती से मुनाफा होने लगा। बांकली बांध क्षेत्र में खरबूजे की बंपर पैदावार होने से गर्मी के मौसम में अच्छा मुनाफा होता है। तीन महीने के सीजन में 4 लाख तक की कमाई हो जाती है।किसान ने बताया- हमारे खेत बांध के पेटा क्षेत्र में हैं। ऐसे में खेतों में नमी रहती है। मिट्टी उपजाऊ है। खरबूजे की खेती के लिए उपयुक्त सभी परिस्थितियां यहां पाई जाती हैं।खरबूजे की खेती जनवरी से मई तक चलती है। इसमें बुवाई से लेकर फसल उत्पादन तक शामिल है। बुवाई जनवरी में की जाती है। अप्रैल-मई के 20-25 दिनों में 6 से 7 बार तुड़ाई होती है। एक बार तुड़ाई के लिए 8 से 10 मजदूरों की जरूरत होती है। एक तुड़ाई पर 5 से 7 हजार रुपए का खर्च आता है।

जून में बारिश के बाद मूंग और तिल की बुआई होती है। ये फसलें सितंबर-अक्टूबर तक चलती हैं। इसके बाद अक्टूबर से जनवरी तक गेहूं की फसल होती है। इस तरह खरबूजे की फसल कम समय की फसल है। किशनलाल ने बताया- इस समय (मई) तुड़ाई का मौसम चल रहा है। उत्पादन चरम पर है और यह मौसम बारिश तक चलने वाला है। ऐसे में पूरा परिवार तुड़ाई, पैकिंग और सप्लाई में जुट जाता है। मेरी पत्नी पप्पू देवी, मां सखा देवी और परिवार के अन्य सदस्य भी खेती में बराबर मदद कर रहे हैं।

हर साल 80 से 100 टन खरबूजे का उत्पादन
किशनलाल ने बताया- पिता लालाराम यहां खेती करते आ रहे हैं। वे परंपरागत खेती करते थे। अन्य किसानों से प्रेरित होकर मैंने भी उन्हें कजली खरबूजे की खेती करने की अपनी योजना के बारे में बताया। पिता की मदद से मैंने कजली किस्म का खरबूजा लगाया। हम 2018 से खरबूजे की खेती कर रहे हैं। हर साल 100 टन तक खरबूजे का उत्पादन होता है।

खरबूजे को एक जगह इकट्ठा करने के बाद उसे गुणवत्ता के आधार पर तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा जाता है। इसके बाद उसे बाजार में भेजा जाता है। सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले खरबूजे की कीमत 25 रुपए प्रति किलो तक होती है। इस माल को हम थोक में बाजार के व्यापारियों को बेचते हैं। वहां से ट्रकों के जरिए माल मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात की मंडियों में जाता है। मध्यम गुणवत्ता वाला माल 20 रुपए प्रति किलो तक बिकता है। जबकि कम गुणवत्ता वाला खरबूजा 10-15 रुपए प्रति किलो बिकता है। इसे ट्रकों में भरकर आहोर, जालौर, बालोतरा, पाली जिले जैसे स्थानीय बाजारों में बिक्री के लिए भेजा जाता है।

बांध क्षेत्र में ऐसे होती है खरबूजे की खेती

किशनलाल ने बताया- बांकली बांध हर साल बारिश में लबालब भर जाता है। बारिश बंद होने पर बांध से नहरों में पानी छोड़ा जाता है। इससे बांध में पानी की मात्रा कम हो जाती है और किसान बांध की तलहटी की जमीन पर खरबूजे के बीज बो देते हैं। यह काम परिवार के कई सदस्य मिलकर करते हैं। एक सदस्य खेत खोदता है। उसके पीछे चलने वाला सदस्य बीज बोता है। तीसरा सदस्य बीजों पर तालाब की गीली मिट्टी डालता है। बुवाई के एक महीने बाद खरपतवार निकाल दिए जाते हैं। फरवरी-मार्च में खरबूजे की बेल पर फूल खिलने लगते हैं। अप्रैल में फल आने लगते हैं। अप्रैल और मई का महीना तोड़ने और बेचने का होता है। खरबूजे की फसल को तीन से चार बार सिंचाई की जरूरत होती है।

खरबूजे की मिठास की वजह मीठा पानी

किशनलाल ने बताया- बांकली बांध का खरबूजा राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में मशहूर है। बांध में मीठा पानी भरता है। मिट्टी भी खरबूजे की फसल के लिए उपयुक्त है। सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता भी है। ऐसे में यह खरबूजा बहुत मीठा होता है। खास बात यह है कि प्राकृतिक उत्पादन के कारण किसानों को दवा का उपयोग नहीं करना पड़ता। इसलिए स्थानीय खरबूजे का स्वाद बिल्कुल असली और मीठा होता है।

खरबूजे के बीज भी तैयार किए जाते हैं

किसान किशनलाल ने बताया- खरबूजे के बीज भी बेचे जाते हैं। इनका उपयोग मिठाई में किया जाता है। खराब खरबूजे के बीज निकालकर ड्रम में भर दिए जाते हैं। इसमें पानी डालकर एक महीने तक रखा जाता है। फिर ड्रम से बीज निकालकर दो-तीन बार धोए जाते हैं। सूखने के बाद इसका छिलका उतार दिया जाता है। यह बीज बाजार में 300 रुपए किलो तक बिकता है।

बांकली बांध के बारे में...

बांकली बांध एक मध्यम सिंचाई परियोजना बांध है। यह बांध जालोर में भाद्राजून के पास सुकड़ी नदी पर है। इसका निर्माण 1896 से 1904 के बीच हुआ था। बांध में वर्तमान में गेज पर 16.70 फीट पानी है। यह 563.08 मिलियन क्यूबिक फीट है। इस बांध से 13 गांवों की सिंचाई हो रही है। बांध से नहर के जरिए सेलड़ी, पांती, हजवा, धींगाणा, पीपरला की ढाणी, बांकली, रेवड़ा कला, रातानाडा, तोड़ामी, रामा, बाला, घाणा, बिजली, भोरड़ा, सिराणा गांव लाभान्वित होते हैं। किशनलाल ने बताया- हम पांच भाई हैं। मेरे तीन भाई 60 बीघा में खरबूजे की खेती करते हैं। एक भाई पानी का टैंकर चलाता है। मेरे दो बेटे हैं। बड़ा बेटा राहुल (11) पांचवीं कक्षा का छात्र है। छोटा बेटा 3 साल का है।

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