जून की तपती दोपहर में कमला लंच बनाने के लिए स्टोव के सामने बैठी हैं. पूर्वी दिल्ली के सुंदर नगरी इलाक़े में स्थित एक झुग्गी में वह 10 बाई 12 के कमरे में रहती हैं.
दिल्ली की जिस भीषण गर्मी का वह सामना कर रही हैं, उसे थर्मल कैमरे ने पकड़ा जो कि रंग के माध्यम से तापमान बताने वाला एक उपकरण होता है.
थर्मल कैमरे ने जो तस्वीरें क़ैद कीं, उसमें कमला के शरीर और उनके घर की दीवारों का तापमान गहरे लाल और पीले रंग में दिखता है, जो बताता है कि तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक है.
कमला ने कहा, "दिन का खाना बनाने में हर रोज़ मुझे चार घंटे लगते हैं. स्टोव ठीक से जलता रहे, इसलिए मुझे पंखा भी बंद रखना पड़ता है. मुझे सांस लेने में भी मुश्किल होती है और चक्कर आने जैसा महसूस होता है, लेकिन महिलाओं के पास और चारा ही क्या है? रसोई तो उन्हीं के ज़िम्मे है."
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इस सप्ताह दिल्ली समेत उत्तर और मध्य भारत के कई इलाक़े हीटवेव की चपेट में हैं. ऐसे में भीषण गर्मी से होने वाले ख़तरे बढ़ गए हैं.
थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) ने मई में एक स्टडी प्रकाशित की, जिससे पता चलता है कि भारत के 57% ज़िले, जिनमें देश की लगभग 76% आबादी रहती है, मौजूदा समय में भयानक गर्मी की चपेट में हैं.
इस स्टडी के मुताबिक़, दिल्ली उन 10 राज्यों में से एक है, जहाँ भीषण गर्मी का ख़तरा सबसे ज़्यादा है.
इस अध्ययन में ये भी बताया गया है कि कमज़ोर समूहों पर भीषण गर्मी का प्रभाव भी सबसे अधिक है.
इन समूहों में बुज़ुर्ग, बच्चे, झुग्गी झोपड़ी निवासी और वे लोग आते हैं, जिन्हें लंबे समय तक घर के बाहर रहना पड़ता है.
पूरी दिल्ली में लू चल रही है और बीबीसी ने राजधानी के रहने वाले चार निवासियों पर गर्मी के अलग-अलग प्रभाव को समझने के लिए थर्मल कैमरे का इस्तेमाल किया.
कैमरे की तस्वीरों में दिखा कि बिना एसी वाले कम हवादार घरों में रहने वाली कमला जैसे कई लोग भीषण गर्मी से सबसे अधिक प्रभावित हैं.
कमला अफ़सोस जताती हैं कि भीषण गर्मी के कारण उन्हें अपने बच्चों को शहर से बाहर भेजना पड़ा है.
वह कहती हैं, "मेरे घर में कोई जगह नहीं है. झुग्गियां खड़ी बनी हुई हैं लेकिन ऊपरी मंजिल पर सीधी गर्मी आती है. इसकी वजह से मुझे अपने बच्चों को गाँव भेजना पड़ता है क्योंकि इस घर में गर्मी में रहना संभव नहीं है."
कमला के घर के अंदर थर्मल इमेजिंग कैमरों से क़ैद किए गए गहरे पीले और नारंगी रंग उनकी परेशानियों के सबूत हैं.
उनके घर के बाहर, स्थिति और भी विकट है. कमला के घर से थोड़ी ही दूर पर रहने वाले पवन कुमार सुबह से देर शाम तक गलियों में घूमते हुए समोसे बेचते हैं.
उन्होंने कहा, "मैं हर दिन अपना पूरा सेटअप और गर्म तेल अपने कंधों पर ढोता हूँ. मुझे जितना हो सके उतना बेचना है. खुद को बचाने के लिए मेरे पास बहुत उपाय नहीं है. मेरे लिए, लगातार चलते रहना ही एक लक्ष्य है."
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ठेले पर सब्ज़ी बेचने वाली बेबी ने इसी तरह का अनुभव साझा किया.
दोपहर में वह थर्मल कैमरे में गहरे लाल रंग और चमकीले पीले रंग में दिखती हैं. उनके आसपास के तापमान को कैमरे में 53 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. वह पसीने से भीगे अपने चेहरे को पोंछती हैं, जबकि उनका कुर्ता पसीने से तरबतर है.
बेबी ने कहा, "मैं अपना दिन जल्दी शुरू करती हूँ ताकि पीक ऑवर्स में काम करने से बच सकूँ, जब सूरज एकदम सिर पर होता है. लेकिन इससे ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ा. आजीविका कमाने के लिए मुझे बाहर निकलना ही पड़ता है और कोई दूसरा चारा भी नहीं है."
वह कहती हैं कि हीटवेव में काम करने का मतलब है कि उन्हें सिर दर्द बना रहता है और लो शुगर लेवल का सामना करना पड़ता है.
बेबी और पवन असंगठित क्षेत्र से जीविका चलाते हैं जो कि राजधानी के कार्यबल का 80% है.
'लेबरिंग थ्रू द क्लाइमेट क्राइसिस' नाम से एक रिपोर्ट वर्कर्स कलेक्टिव फॉर क्लाइमेट जस्टिस - साउथ एशिया और ग्रीनपीस इंडिया ने तैयार की है जो असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की गर्मी से जुड़ी चिंताओं पर रोशनी डालती है.
इसमें अनुमान लगाया गया है कि तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की आमदनी में 19% की कमी आती है और भीषण गर्मी उन्हें कठिन विकल्पों में से चुनाव करने को मजबूर करती है. यानी या तो वो ख़ुद को सुरक्षित करने का जतन करें या आजीविका कमाएं.
इस रिपोर्ट में ये भी रेखांकित किया गया है कि गर्मी सिर्फ़ आजीविका पर ही असर नहीं डालती बल्कि मज़दूरों की सेहत पर भी बुरा असर डालती है.
रिपोर्ट के अनुसार, "सेहत से जुड़े नुक़सान बढ़ रहे हैं. घरेलू कामगार शौचालय जाने से बचने के लिए पानी से परहेज करने के कारण लगातार डीहाइड्रेशन की शिकायत करते हैं. अचानक बारिश के कारण स्ट्रीट वेंडर्स का सामान बर्बाद हो जाता है. आमदनी में कमी के कारण कई लोग क़र्ज़ के जाल में फंस जाते हैं. ख़राब मौसम के झटकों का असर सब पर एक समान नहीं होता."
असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की वास्तविकताओं से बिल्कुल उलट, पायल सेंट्रल दिल्ली के अपने एयरकंडीशंड ऑफ़िस में बैठती हैं.
थर्मल कैमरे ने उनके आसपास के तापमान को गहरे बैंगनी और नीले रंग में क़ैद किया, जो उनके कॉर्पोरेट ऑफ़िस के ठंडे तापमान को दिखाता है.
वो कहती हैं, "हम एयरकंडीशंड कमरों में काम करते हैं और अपनी आरामदेह कारों में घर जाते हैं, जो हमें ठंडा रखती हैं. पूरे शहर में अधिकांश वर्करों के लिए यह सुविधा नहीं है और उनके लिए गर्मी का अनुभव हमसे बहुत अलग है."
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ग्रीनपीस इंडिया की ओर से आयोजित फ़ोकस ग्रुप की चर्चाओं में इस बात को रेखांकित किया जाता है कि न केवल बढ़ता तापमान बल्कि कामकाज़ी हालात भी मज़दूर वर्ग की परेशानियों को बढ़ा रही हैं.
बढ़ते तापमान के अलावा समय से पहले भारत में मॉनसून का आना भी, अचानक ख़राब होने वाली मौसमी घटनाओं की तैयारी की चिंताओं को बढ़ा रहे हैं.
भावरीन कंढारी एक्टिविस्ट हैं.
अचानक ख़राब होने वाले मौसम के प्रभाव का ज़िक्र करते हुए वह कहते हैं, "भारतीय शहर जलवायु पैटर्न में होने वाली तब्दीलियों के प्रति तेजी से संवेदनशील होते जा रहे हैं, जिससे असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को बड़ा ख़तरा है."
"जलवायु के असर से जल्द उबर पाने या उसके प्रभाव को कम करने की क्षमता के अभाव में, जलवायु परिवर्तन का बोझ सबसे अधिक हाशिए पर रहने वाली आबादी यानी शहरी श्रमिकों को उठाना पड़ता है. जब तक सामाजिक न्याय के पहलू को क्लाइमेट प्लानिंग से नहीं जोड़ा जाता, तब तक हम बहुत प्रगति नहीं देख पाएंगे."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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