'समाजवाद बढ़िया है…' एक पेंशनभोगी महिला हल्की बेसुरी आवाज़ में पोर्टेबल कराओके माइक्रोफ़ोन में गा रही है, उसकी आवाज़ दोस्तों की बातचीत में दब रही है.
लेकिन कोरस में वे सब उसका साथ देते हैं- "कम्युनिस्ट पार्टी चीन को ताक़त और संपन्नता के रास्ते पर ले जाने में मदद करती है!"
यह कोई आकर्षक गाना नहीं है. लेकिन सामने समुद्र में खड़े जहाज़ों के बीच बिल्कुल सटीक लगता है.
पीले सागर के तट पर स्थित उत्तरी-पूर्वी चीन के डालियान का सुवोयुवान पार्क, चीन के सबसे बड़े शिपयार्ड्स में से एक है. यह लोगों के मिलने-जुलने की एक बेहतरीन जगह भी है.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेकिन हज़ारों किलोमीटर दूर वॉशिंगटन में व्हाइट हाउस के विश्लेषकों के लिए, चीनी जहाज़ निर्माण का यह केंद्र बढ़ते ख़तरे जैसा है.
पिछले दो दशकों में चीन ने शिपबिल्डिंग में निवेश को तेज़ी से बढ़ाया है. और उसका नतीजा भी उसे मिला है.
इस साल दुनिया के 60% से ज़्यादा ऑर्डर चीनी शिपयार्ड्स को मिले हैं. साफ़ शब्दों में कहें तो, चीन किसी भी देश से ज़्यादा जहाज़ बना रहा है. उसकी वजह है कि सारी दुनिया में चीन से तेज़ कोई शिप नहीं बना सकता.
लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फ़ॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ में समुद्री मामलों के जानकार निक चाइल्ड्स कहते हैं, "निर्माण का पैमाना अविश्वसनीय है...कुछ मामलों में हैरान कर देने वाला. चीन की शिपबिल्डिंग क्षमता अमेरिका की कुल क्षमता का 200 गुना है."
यह बढ़त चीन की नौसेना पर भी लागू होती है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पास अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है. चीन की नौसेना के पास 234 युद्धपोत हैं, जबकि अमेरिकी नौसेना के पास 219 ही हैं.
- भारत और चीन ने बयान में क्या कहा? विपक्ष के इन सवालों के जवाबों का अब भी है इंतज़ार
- चीन 'अब तक के सबसे बड़े' एससीओ सम्मेलन से क्या संदेश देना चाहता है?
- ट्रंप के साथ रहें या चीन के साथ जाएं? भारत की विदेश नीति की 'अग्निपरीक्षा'
चीन की यह विस्फोटक बढ़त समुद्र के ज़रिए हुई है. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के पास विश्व के 10 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से सात बंदरगाह हैं. ये वैश्विक सप्लाई रूट्स के लिए अहम हैं. और इसके तटीय शहर व्यापार की वजह से खूब फल-फूल रहे हैं.
जैसे-जैसे बीजिंग की महत्वाकांक्षाएं बढ़ी हैं, उसके जहाज़ों का बेड़ा भी बढ़ा है. साथ ही दक्षिण चीन सागर और उसके बाहर दावा करने का आत्मविश्वास भी.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग निश्चित तौर पर लहरों की सवारी करना चाहते हैं. सवाल है, क्या वो ऐसा कर पाएंगे.
बुधवार को चीन एक भव्य सैन्य परेड करने जा रहा है, शायद वहां दिखे कि वो अपने लक्ष्य के कितने क़रीब हैं. चीनी राष्ट्रपति इस आयोजन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन की मेज़बानी करेंगे.
इस आयोजन और सैन्य ताक़त के प्रदर्शन की तस्वीरों पर अमेरिका और उसके सहयोगियों की क़रीबी नज़र होगी. इस परेड में एंटी-शिप मिसाइलें, हाइपरसोनिक हथियार और पानी के अंदर चलने वाले ड्रोन भी शामिल होने की संभावना है.
चाइल्ड्स कहते हैं, "हालांकि अमेरिकी नेवी को अच्छी ख़ासी बढ़त है, लेकिन चीन के साथ मुक़ाबले का अंतर कम होता जा रहा है. और इस (जहाज़ निर्माण) सवाल का जवाब ढूंढने में अमेरिका को संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि पिछले कुछ दशकों में उसकी शिप बिल्डिंग क्षमता तेज़ी से घटी है."
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वे इसे सुधारना चाहते हैं. ट्रंप अमेरिकी शिपबिल्डिंग क्षमता को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं और समंदर में अमेरिका की बढ़त वापस लेने के लिए उन्होंने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर भी किए हैं.
चाइल्ड्स जोड़ते हैं, "यह एक बड़ा आदेश होगा."
कड़वी यादों का2019 से 2023 के बीच, चीन के चार सबसे बड़े शिपयार्ड्स- डालियान, ग्वांगझोउ, जियांगनान और हुडोंग-झोंगहुआ ने मिलकर 39 युद्धपोत बनाए. इनका कुल 'डिस्प्लेसमेंट' साढ़े 5 लाख टन था.
यह आँकड़ा सेंटर फ़ॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ (सीएसआईएस) की एक रिपोर्ट में दिया गया है.
डिस्प्लेसमेंट उस पानी की मात्रा को दर्शाता है जिसे जहाज़ विस्थापित करते हैं, जो किसी बेड़े या पोत के आकार को मापने का सबसे सामान्य तरीक़ा है.
तुलना के लिए, ब्रिटेन की रॉयल नेवी का अनुमानित कुल डिस्प्लेसमेंट मौजूदा समय में लगभग 3 लाख 99 हज़ार टन है.
हालांकि चीन के पास जहाज़ों की संख्या के लिहाज़ से दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, लेकिन अमेरिकी बेड़े का कुल विस्थापन कहीं अधिक है और वह कहीं ज़्यादा ताक़तवर भी है, क्योंकि उसके पास बहुत बड़े विमान वाहक युद्धपोत हैं.
लेकिन बीजिंग तेज़ी से इस अंतर को कम कर रहा है.
सीएसआईएस से जुड़े और 'अनपैकिंग चाइनाज़ नेल बिल्डअप रिपोर्ट' के लेखक अलेक्ज़ेंडर पामर कहते हैं, "इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि चीन धीमा पड़ रहा है."
उनके अनुसार, "जहाज़ों की कुल संख्या किसी नौसेना के प्रभाव का एकमात्र पैमाना नहीं है, लेकिन युद्धपोतों का निर्माण और उन्हें लगातार तैयार करने की क्षमता बेहद प्रभावशाली रही है और यह रणनीतिक तौर पर बड़ा फ़र्क पैदा कर सकती है."
लेकिन, चीन की नौसैनिक बढ़त की अब भी कुछ सीमाएं हैं. बीजिंग के पास ज़्यादा जहाज़ हैं, लेकिन उसके पास सिर्फ़ दो विमानवाहक युद्धपोत सक्रिय हैं और उसकी नौसेना के पास अमेरिका की तुलना में बहुत कम पनडुब्बियां हैं.
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि चीन की पनडुब्बियां, अमेरिकी पनडुब्बियों जितनी उन्नत भी नहीं हैं, क्योंकि अमेरिका को शीत युद्ध के दौर से ही तकनीकी बढ़त हासिल है.
चीनी पनडुब्बियां ज़्यादातर उथले दक्षिण चीन सागर के लिए बनी हैं, जहाँ अमेरिका के साथ 'चूहे-बिल्ली का खेल' पहले से जारी है. फिलहाल, चीन की अपनी समुद्री सीमा से दूर जाने की क्षमता सीमित है.
लेकिन इसके बदलने और तेज़ी से आगे बढ़ने के संकेत हैं.
बीबीसी वेरिफ़ाई को हेनान (दक्षिण चीन सागर में स्थित चीन का प्रांत) से मिली सैटेलाइट तस्वीरें दिखाती हैं कि बीजिंग अपनी नौसैनिक ठिकानों को विस्तार देने में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है.
यूलिन के बेस पर पांच नए ढांचे बनाए गए हैं, जो पिछले पाँच सालों में बने लगते हैं. माना जाता है कि चीन अपनी सबसे बड़ी जिन-क्लास (या टाइप 094) पनडुब्बियां इसी बंदरगाह पर तैनात करने की योजना बना रहा है. ये नई पनडुब्बियां 12 परमाणु मिसाइलें ले जाने में सक्षम हैं.
- पीएम मोदी की चीन यात्रा को लेकर क्या कह रहा है वहां का मीडिया?
- अमेरिका से तनाव के बीच चीन के भारत के क़रीब आने की ये हो सकती हैं वजहें
- रूस की हाइपरसोनिक मिसाइलों को लेकर यूरोप क्यों है चिंतित, इस होड़ में कहां खड़े हैं दूसरे देश
चीनी सोशल मीडिया पर साझा की गई रिहर्सल की तस्वीरें और वीडियो दिखाते हैं कि बड़े टॉरपीडो जैसे दिखने वाले कम से कम दो नए प्रकार के मानव रहित पानी के अंदर चलने वाले ड्रोन बुधवार की परेड में शामिल होंगे.
ये चीन को गहरे पानी के नीचे निगरानी करने और अन्य पनडुब्बियों या यहां तक कि समुद्र के अंदर बिछी तारों का पता लगाने की क्षमता रखते हैं.
सीएसआईएस के चाइना पावर प्रोजेक्ट के मैथ्यू फ़ुनायोले चेताते हैं, "अधिकांश टेक्नोलॉजी अभी साबित नहीं हुई हैं और इनकी क्षमताओं की समयसीमा भी स्पष्ट नहीं है. सबसे बड़ा सवाल है कि टेक्नोलॉजी के परिपक्व होने में कितना समय लगेगा."
वो कहते हैं, "और यही कारण है कि अमेरिका चीन के शिपबिल्डिंग ख़तरे को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता."
चीन का विशाल नौसैनिक विस्तार उस पार्टी की अगुआई में हो रहा है जो अब भी अतीत के दर्द से जूझ रही है. यह पार्टी वफ़ादारी, ताक़त और राष्ट्रवाद का संदेश मजबूत करने के लिए उन यादों का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकिचाती.
जापान पर जीत और उसके क्रूर क़ब्ज़े के अंत की याद में विशाल सैन्य परेड का आयोजन इसका प्रमाण है.
जिसे दुनिया चीन का उदय मान रही है, उसे शी इसकी वापसी मानते हैं.
शी ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मज़बूत नौसेना ज़रूरी है.
वे 1840 से 1949 के बीच चीन पर हुए 470 आक्रमणों का हवाला देते हैं. इन हमलों में चीन को "अकथनीय दर्द" झेलना पड़ा और शक्तिशाली 'चिंग साम्राज्य' बिखर गया. इसके बाद चीन अराजकता में डूब गया.
शी ने वादा किया है कि उनका देश अब कभी "अपमानित" नहीं होगा और न ही "विदेशी हमलों की कड़वी यादों" से गुजरेगा.
चीन को शिपयार्ड्स के दोहरे इस्तेमाल की बढ़त है. ये एक तरफ़ व्यावसायिक उत्पादन करते हैं और दूसरी तरफ़ नौसेना के लिए युद्धपोत भी बना सकते हैं.
कुछ जगहों पर सैन्य और नागरिक शिपयार्ड साथ-साथ काम करते हैं. सरकारी मीडिया इसे "सैन्य-नागरिक एकीकरण" कहता है.
डालियान को चीन 'फ़्लैगशिप शिपयार्ड' बताता है और इसमें 'सैन्य-नागरिक एकीकरण' की बड़ी भूमिका है.

डालियान के सुवोयुवान पार्क में पिकनिक मनाते पेंशनभोगियों की आँखों के सामने विशाल वाणिज्यिक जहाज़ खड़े हैं, कुछ फ़ुटबॉल के मैदान जितने लंबे हैं.
लेकिन ठीक कोने के आसपास, जहाँ कोई तस्वीर नहीं ले सकता, सैन्य पोतों का एक समूह खड़ा है. वहाँ क्रेन एक जहाज़ के विशाल डेक पर हेलिकॉप्टर उतार रही है और सुवोयुवान पार्क में मार्चिंग बैंड एक धुन बजा रहा है.
फ़ुनायोले कहते हैं, "वाणिज्यिक और सैन्य संस्थाओं को एक साथ मिलाने का यह एक राजनीतिक एजेंडा है. दोनों को बनाने के लिए ज़रूरी तकनीक को एक केंद्रीकृत जगह पर लाने की कोशिशें हो रही हैं और डालियान उनमें से एक है."
वो जोड़ते हैं, इसीलिए, ताक़तवर एयरक्राफ़्ट कैरियर्स या पनडुब्बियां न होते हुए भी, चीन का वाणिज्यिक बेड़ा और जहाज़ जल्दी बनाने की उसकी विशेषज्ञता किसी संकट की घड़ी में अहम हो सकती है.
फ़ुनायोले कहते हैं, "किसी भी लंबे खिंचने वाले संघर्ष में अगर आपके पास ऐसे शिपयार्ड हैं जो जल्दी नए जहाज़ बना सकें, तो यह एक बड़ा रणनीतिक फ़ायदा है. व्यावसायिक जहाज़ किसी भी संघर्ष क्षेत्र में भोजन वगैरह पहुँचा सकते हैं. इसके बिना अमेरिका ऐसी स्थिति में हो सकता है जहां वह लंबे समय तक जंग में टिका न रह पाए."
वे कहते हैं, "पानी में अधिक से अधिक और बहुत तेज़ी से जहाज उतारने की क्षमता किसके पास हो सकती है?"
इस समय इसका जवाब है, चीन.
- लिपुलेख पर भारत और नेपाल फिर आमने-सामने, चीन के साथ क़रार बना नाराज़गी की वजह?
- 'अब भारत ने समझा, चीन से दोस्ती क्यों है ज़रूरी', ऐसा क्यों कह रहा है चीनी मीडिया
- चांद पर इंसानी ठिकाना बनाने के लिए अमेरिका का ये है इरादा, रूस और चीन से मिल रही चुनौती
पीकिंग यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर मेरिटाइम स्ट्रैटेजी स्टडीज़ के निदेशक प्रोफ़ेसर हू बो कहते हैं, "लेकिन दुनिया को चिंता नहीं करनी चाहिए."
उनके अनुसार, "दूसरे देशों के मामलों में दख़ल देने की हमारी कोई मंशा नहीं है, ख़ासकर सैन्य रूप से."
उनका संदेश यह है कि चीन बड़े जहाज़ इसलिए बना रहा है क्योंकि वह बना सकता है, न कि इसलिए कि वह दुनिया पर क़ब्ज़ा करना चाहता है.
एक द्वीप है जिसे चीन किसी अन्य देश के रूप में नहीं देखता, वो है ताइवान.
बीजिंग लंबे समय से इस लोकतांत्रिक द्वीप के साथ 'एकीकरण' का दावा करता आया है और उसने अपना मकसद पूरा करने के लिए बल प्रयोग से भी इनकार नहीं किया है.
हाल के सालों में अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों ने लगातार दावा किया है कि चीन 2027 तक ताइवान पर हमला करेगा, लेकिन ऐसी किसी समयसीमा से बीजिंग इनकार करता रहा है.
प्रोफ़ेसर हू बो कहते हैं, "चीन की इतनी क्षमता है कि वो ताइवान को वापस ले ले, लेकिन चीन ऐसा नहीं करता क्योंकि हम में धैर्य है. चीन ने शांतिपूर्ण एकीकरण की उम्मीद नहीं छोड़ी है. हम इंतज़ार कर सकते हैं."
सबसे बड़ी चिंता यह है कि ताइवान पर कोई हमला व्यापक युद्ध को जन्म दे सकता है और अमेरिका इसमें शामिल हो सकता है.
वॉशिंगटन क़ानूनन बाध्य है कि वह ताइवान को उसकी रक्षा में हथियार मुहैया कराए. ऐसा कोई भी सर्मथन समर्थन बीजिंग को नामंज़ूर होगा क्योंकि वह ताइवान को एक विद्रोही प्रांत मानता है जो आख़िर में चीन का हिस्सा बनेगा.
इस साल की शुरुआत में अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने चेतावनी दी थी कि चीन ताइवान के लिए 'तत्काल' ख़तरा है और एशियाई देशों से रक्षा ख़र्च बढ़ाने और अमेरिका के साथ मिलकर युद्ध को रोकने की अपील की थी.
इसलिए, प्रोफ़ेसर हू बो के आश्वासनों के बावजूद, इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है कि चीन के युद्धपोत अब अपने तटों से दूर जाना शुरू कर रहे हैं.
फ़रवरी में उन्हें ऑस्ट्रेलिया के पास तीन हफ़्तों से ज़्यादा समय तक चक्कर लगाते देखा गया, जहाँ उन्होंने अभूतपूर्व लाइव-फ़ायर अभ्यास किया.
हाल ही में चीनी एयरक्राफ़्ट कैरियर्स ने जापान के क़रीब नौसैनिक अभ्यास किए, जिससे चिंता बढ़ी है. भले ही यह अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में हुआ हो, लेकिन यह क़दम अभूतपूर्व था.

जैसे-जैसे बीजिंग प्रशांत महासागर में ताक़त दिखाने की कोशिशों में निर्भीक होता जा रहा है, ताइवान से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक, चीन के पड़ोसी देश चिंतित हैं.
एक चीनी कहावत है - अपनी ताक़त छिपाओ और सही समय का इंतज़ार करो.
लेकिन प्रोफ़ेसर हू बो मानते हैं कि अमेरिका के साथ किसी संघर्ष के डर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है क्योंकि सभी जानते हैं कि यह विनाशकारी होगा.
वो कहते हैं, "बीते तीन सालों में, मुझे लगता है कि संकेत बहुत स्पष्ट हैं कि दोनों पक्ष लड़ाई नहीं चाहते हैं. हम इसके लिए तैयार हैं लेकिन हम एक दूसरे से लड़ना नहीं चाहते."
चीन का ख़्वाबडालियान से लगभग एक घंटे की ड्राइव पर, सैलानी झुंड के झुंड में नौसैनिक क़िले वाले शहर लूशुन्कोउ पहुँच रहे हैं, जहाँ एयरक्राफ़्ट कैरियर के आकार वाला एक मिलिट्री थीम पार्क भी है.
गाइड्स पर्यटकों का ध्यान वहां लगे नोटिस की ओर खींचते हैं जिसपर लिखा है कि बंदरगाह पर खड़े युद्धपोतों की तस्वीरें लेना मना है. नोटिस में ये भी लिखा है कि किसी भी ऐसे व्यवहार की रिपोर्ट करें जिसे जासूसी समझा जा सकता हो, ताकि 'देश की रक्षा' में मदद हो सके.
पुलों और दीवारों पर और भी नोटिस लगे हैं जिनमें लिखा है, 'एकजुट होकर, हम अपने महासागर के ख़्वाब की रक्षा करते हैं.'
चीन ने अपनी शिपबिल्डिंग क्षमता पर गर्व की भावना पैदा की है, ख़ासकर डालियान में.
थीम पार्क में, स्थानीय फ़ैशन के मुताबिक़ फूलदार क़मीज़ में शिपयार्ड को देखते हुए एक 50 वर्षीय ब्लॉगर अपने फॉलोअर्स को बंदरगाह में बन रहे ताज़ा जहाज़ों की जानकारी दे रहा है.
वो कहता है, "मुझे वाक़ई बहुत गर्व है, देखिए यह शहर हमें क्या देता है."
पास ही पड़ोसी प्रांत से छुट्टियों पर आई एक माँ और उसकी सात वर्षीय बेटी जहाज़ों को देखकर हैरान रह जाती हैं, "मैं दंग रह गई. यह बहुत बड़ा है. सोचती हूँ, यह चलता कैसे होगा?"
अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए मुख्य सवाल यह है कि चीन का युद्धक बेड़ा कितनी दूर तक जा सकता है?
निक चाइल्ड्स कहते हैं, "किस मोड़ पर वे बाहर निकलकर वास्तव में दूर-दराज़ क्षेत्रों में, जैसे हिंद महासागर और उससे आगे, अपना प्रभाव दिखाने में सक्षम होंगे, यह देखने लायक़ अहम बात होगी."
"उन्हें अभी काफ़ी लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन वे निश्चित रूप से क्षमताओं को आगे बढ़ा रहे हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें एक्स, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
- चीन की 12 साल की इस बच्ची ने ऐसा क्या कर दिया कि इतिहास बन गया
- चीन की आबादी घटने से रोकने के लिए नई स्कीम, दे रहा 1500 डॉलर
- चीन बना रहा है दुनिया का सबसे बड़ा बांध, भारत की बढ़ी चिंता, जानिए 5 अहम बातें
You may also like
Photo Gallery: इन फोटोज में मलाइका अरोड़ा को देख खो देंगे आप भी होश, लग रही हैं ऐसी हॉट की...
तनाव, नींद और ब्लड प्रेशर से राहत पाने का प्राकृतिक तरीका 'ध्यान', आयुष मंत्रालय ने बताए फायदे
मुख्तार अंसारी के छोटे बेटे उमर की जमानत याचिका पर सुनवाई टली
Jokes: शाम के समय चाय पीते - पीते शर्मा जी के हाथो से अचानक से चाय का कप गिर गया, तब शर्मा जी ने झुक कर देखा तो.. पढ़ें आगे
GF` का फोन था बिजी रात 2 KM पैदल चल घर पहुंच गया प्रेमी; प्रेमिका की हरकत देख खो दिया आपा