भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान के साथ अमेरिका की बढ़ती नज़दीकियों और दूसरी तरफ़ भारत के अमेरिका से संबंधों में उतार-चढ़ाव को लेकर बात की है. उन्होंने भारत पर अमेरिका के लगाए टैरिफ़ और रूस से भारत के तेल खरीदने को लेकर भी टिप्पणी की है.
दिल्ली में एक मीडिया कार्यक्रम में उन्होंने पाकिस्तान के साथ अमेरिका के रिश्तों की बात करते हुए कहा कि "इन दोनों का एक लंबा इतिहास रहा है और उस इतिहास की अनदेखी करने का भी एक इतिहास रहा है."
इस दौरान उन्होंने एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे को खारिज किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों का संघर्ष उनकी मध्यस्थता से रुका था.
जयशंकर ने अमेरिका और भारत के रिश्तों से जुड़े मुद्दों पर बात तो की ही, साथ ही दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों पर भी अपनी राय रखी. साथ ही भारत के रूस से तेल खरीदने के फ़ैसले का बचाव किया.
अमेरिका और उसके साथ रिश्तों पर क्या बोले?भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों को लेकर विदेश मंत्री ने तीन मुद्दे गिनवाए- पहला व्यापार, दूसरा तेल और तीसरा मुद्दा हमारे इलाक़े को लेकर वो है मध्यस्थता का.
व्यापार मुद्दे पर उन्होंने कहा, "मेरे अनुसार ये बड़ा मुद्दा है. अभी बातचीत चल रही है लेकिन कुछ बातें हमारे लिए लाल रेखा के समान है. ये हमारे किसानों और छोटे उत्पादकों से जुड़े मुद्दे हैं और हम उनके हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं."
कुछ दिन पहले मीडिया में इस तरह की रिपोर्ट आई थी कि व्यापार वार्ता के लिए अमेरिका के प्रतिनिधि भारत नहीं आ रहे हैं. इस पर जयशंकर ने कहा कि "बातचीत रुक गई है ऐसा किसी ने नहीं कहा है, तो हम मानते हैं कि बातचीत चल रही है."
वहीं रूस से भारत के तेल खरीदने के मामले में उन्होंने कहा कि तेल के मुद्दे पर रूस का नाम लेकर भारत को निशाना बनाया गया है.
उन्होंने कहा, "रूस के तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है लेकिन उसपर अधिक टैरिफ़ नहीं लगाया गया है. वहीं रूस से सबसे अधिक एलएनजी यूरोप खरीदता है, लेकिन उनके साथ अलग मानदंड अपनाए गए हैं. ये अनुचित है. अगर दलील उर्जा को लेकर है और कौन रूस से अधिक खरीदता है उसे लेकर है, तो भारत इन दोनों मामलों में पीछे है."

उनसे एक सवाल ये पूछा गया कि रूस का तेल खरीद कर भारत उससे फायदा बना रहा है.
इसके जवाब में उन्होंने कहा, "अगर आपको भारत से तेल या रिफाइंड प्रोडक्ट खरीदने में कोई दिक्कत है, तो मत खरीदिए. इसके लिए कोई आपको मजबूर नहीं कर रहा है. लेकिन यूरोप और अमेरिका खरीदते हैं. अगर आपको पसंद नहीं है, तो मत खरीदिए."
रूस से तेल खरीदने को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट के बाद व्हाइट हाउस के ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो ने भारत को निशाने पर लिया है.
जयशंकर ने बताया कि अमेरिका से (ट्रंप के पूर्ववर्ती बाइडन प्रशासन) इस मामले में स्पष्ट बात हुई थी और अमेरिका ने कहा था कि भारत के रूस तेल खरीदने पर अमेरिका को कोई परेशानी नहीं है.
उन्होंने कहा, "प्राइस कैप का आइडिया कहां से आया था? 2022 में तेल की क़ीमतों को स्थिर करने के लिए इस तरह की बातचीत हुई थी. लेकिन जनवरी 2025 से (ट्रंप के चुने जाने के बाद से) ऐसी कोई बात नहीं हुई कि ऐसा मत करिए."
उन्होंने कहा, "रूस से तेल खरीदना हमारे राष्ट्रीय हित में है लेकिन ये दुनिया के हित में भी है और हमने कभी इस बात को छिपाया नहीं है. हमारे राष्ट्रीय हित के बारे में सोचना हमारा हक़ है. यही रणनीतिक स्वायत्तता है."
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर 25 फ़ीसदी का टैरिफ लगाया था. बाद में उन्होंने ये कहते हुए भारत पर टैरिफ़ 50 फ़ीसदी कर दिया कि भारत रूस से तेल खरीदकर यूक्रेन के साथ जंग में उसकी मदद कर रहा है.
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विदेश मंत्री ने इस दौरान दोहराया कि संघर्ष विराम को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी बातचीत हुई थी.
ट्रंप ने कई बार ये दावा किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष उन्होंने रुकवाया था. पाकिस्तान ने इसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया था.
लेकिन बीते दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में ट्रंप के इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि "दुनिया के किसी भी नेता ने भारत को ऑपरेशन रोकने के लिए नहीं कहा."
मध्यस्थता के मामले में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि, "भारत कश्मीर के मुद्दे पर किसी तीसरे मुल्क की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता. इन तीन बातों पर भारत की रुख़ स्पष्ट है."
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर चरमपंथी हमला हुआ था, जिसमें 26 लोगों की मौत हुई थी.
इसके बाद छह-सात मई की रात भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में चरमपंथी कैंपों को निशाना बनाया. इस अभियान को भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया.
इसके बाद दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष शुरू हुआ, जो 10 मई को संघर्ष विराम की घोषणा के साथ थम गया.
इस संघर्ष के थमने के कुछ दिनों बाद पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर के साथ ट्रंप ने व्हाइट हाउस में मुलाक़ात की. ये बंद कमरे में हुई मुलाक़ात थी जिसके बारे में मीडिया में काफी लिखा गया था. इसे अमेरिका और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नज़दीकियों के रूप में देखा गया.
इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा, "इन दोनों का एक लंबा इतिहास रहा है और उस इतिहास की अनदेखी करने का भी एक इतिहास रहा है. यह पहली बार नहीं है कि हमने इस तरह की चीज़ें होते देखी हैं."
उन्होंने कहा, "दिलचस्प यह है कि जो सेना सर्टिफ़िकेट दे रही है, ये वही सेना है जो ऐबटाबाद में घुसी थी और वहां किसको ढूंढ निकाला था, ये आपको पता है. मूल समस्या यह है कि जब देश सुविधा की राजनीति के फेर में पड़ जाते हैं, तो वे बार-बार ऐसे ही कदम उठाते हैं. कभी ये सामरिक दृष्टिकोण से किया जाता है और कभी इनसे कुछ दूसरी तरह की नफ़ा-नुकसान की गणनाएं जुड़ी होती हैं."
वर्ष 2011 में इस्लामाबाद से 50 किलोमीटर उत्तरपूर्व में स्थित ऐबटाबाद में अमेरिका ने एक विशेष अभियान में ओसामा बिन लादेन को मार दिया था.
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भारत पर लगाए टैरिफ़ और अमेरिका के साथ रिश्तों को लेकर जयशंकर ने कहा, "मैं नहीं कहूंगा कि दोनों के बीच पहले मुद्दे नहीं थे या और क्षेत्रों में रिश्तों में प्रगति नहीं हो रही है. ऐसा नहीं है."
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति पर उन्होंने कहा कि दुनिया ने कभी ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं देखा जिन्होंने अपनी विदेश नीति को इतने सार्वजनिक तौर पर संचालित किया हो.
एस जयशंकर ने कहा, "यह अपने आप में एक अलग तरह का रुख़ है जो केवल भारत तक सीमित नहीं है. हमें ये समझना होगा कि दुनिया से निपटने का, यहाँ तक कि अपने ही देश से निपटने का ट्रंप का तरीका पारंपरिक और रूढ़िवादी तरीकों से एक बहुत अलग है. टैरिफ़ की घोषणा सार्वजनिक तौर पर की गई, जो पहले से अलग था. पूरी दुनिया इस स्थिति से निपट रही है."
अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाक़ात हुई थी.
इसके बाद एस जयशंकर ने रूस का दौरा किया था और पुतिन से मुलाक़ात की थी. उनके इस दौरे की काफी चर्चा हुई थी.
इस पर जयशंकर ने कहा, "मैं विस्तार से इस पर बात नहीं कर सकता लेकिन हमारा रुख़ स्पष्ट है. हम इस जंग को ख़त्म होते देखना चाहते हैं और जंग रोकने की हर कोशिश का हम स्वागत करते हैं."
"लेकिन ये दो पक्षों के बीच की बात है और ये मामला इतना सीधा नहीं है जितना दिखता है, ये बेहद जटिल है. अलास्का में जो हुआ उसे हम प्रगति मानेंगे."
रूस और यूक्रेन के बीच जंग को चार साल होने वाले हैं. जंग शुरू होने के बाद अमेरिका और यूरोप ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए. हालांकि भारत ने रूस के साथ व्यापार जारी रखा.
भारत का ये कहना था कि रूस उसका पारंपरिक मित्र है और रूस से सस्ती दरों में तेल खरीदना उसके हित में है. भारत रूस से बड़े पैमाने पर डिफेंस का सामान भी खरीदता है.
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बीते दिनों भारत और चीन के रिश्तों में थोड़ी गर्माहट आती दिखी है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत का दौरा किया और दोनों मुल्कों के बेहतर रिश्तों की बात की.
इसके बाद अब पीएम मोदी भी एससीओ की बैठक के लिए चीन जाने वाले हैं. इधर भारत में चीन के राजदूत शू फ़ेहॉन्ग ने भारत पर लगाए अमेरिका के टैरिफ़ का "विरोध" किया है और अमेरिका की तुलना एक "बुली" (दबंग) से की है.
लेकिन भारत के लिए चिंता की एक बात ये है कि चीन पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को सदाबहार बताता है. वहीं पाकिस्तान के साथ हाल ही में हुए सैन्य संघर्ष के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने दावा किया था कि पाकिस्तान ने फ्रांस निर्मित राफेल लड़ाकू विमानों सहित कई भारतीय विमानों को मार गिराने के लिए, पीएल-15ई मिसाइलों से लैस चीन के जे-10सी विमानों का इस्तेमाल किया था. चीन की चेंगदू एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (सीएसी) सीएसी जे-10सी बनाती है.
चीन से रिश्तों के मामले में एस जयशंकर ने कहा, "सीमा विवाद की जो समस्या है वो 1950 के दशक से है. हमारे लिए सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना बेहद ज़रूरी है. इसके अलावा लगभग दो दशक पहले चीन के डब्ल्यूटीओ में आने के बाद जो ट्रेड डेफ़िसिट शुरू हुआ वो भी एक बड़ी समस्या है."
"कोविड महामारी के दौरान सप्लाई चेन बाधित हुई. इसके बाद गलवान घाटी के संघर्ष के कारण तनाव हुआ और फिर हाल के वक्त में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए मैगनेट्स (रेयर अर्थ मिनरल्स) की कमी की समस्या आई जो चीन की निर्यात को लेकर नीति के कारण था."
उन्होंने चीन के साथ संबंधों पर विस्तार से समझाते हुए कहा, "ये एक टाइमलाइन या एक समस्या नहीं है, अलग-अलग वक्त पर अलग-अलग समस्याएं हैं, जो साथ-साथ चलती रही हैं."
उन्होंने कहा, "लेकिन आप समाधान की तरफ देखें. इन सभी हालात के बीच भी भारत और चीन के बातचीत जारी रही थी, पीएम ने कज़ान में चीन के साथ बात की थी. फिर मैंने भी बीते साल चीन के विदेश मंत्री के साथ चर्चा की थी. "
"ये ग़लत विश्लेषण होगा कि हर बात को किसी ख़ास सिचुएशन को देखकर दी गई प्रतिक्रिया की तरह देखा जाए. सीमा मुद्दे को ही देख लें, 24 दौर की बातचीत हो चुकी है. बातचीत की प्रक्रिया इवॉल्व हो रही है और ये एक लंबी प्रक्रिया है."
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