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भारत के पास यह है सबसे बड़ा इकोनॉमिक हथियार, जो हर संकट से बचा सकता है देश की अर्थव्यवस्था

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भारत का सोने के प्रति प्रेम एक बार फिर चर्चा में है और इस बार इसकी आर्थिक मजबूती को उजागर करते हुए। कम्प्लीट सर्कल के मैनेजिंग पार्टनर और CIO गुरमीत चड्ढा ने बताया कि भारत के पास सोने की इतनी बड़ी मात्रा है, जो करीब 3.5 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है। यह आंकड़ा देश की संपन्नता और मजबूती को दिखाता है।



चड्ढा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि भारतीय परिवारों के पास लगभग 26,000 टन सोना है। वहीं रिजर्व बैंक के पास 900 टन और मंदिरों-गुरुद्वारों के पास करीब 4,000 टन सोना जमा है। कुल मिलाकर हमारे पास 32,000 टन सोना है… लगभग 3.5 ट्रिलियन डॉलर का। फिर क्या हम सच में 'डेड इकोनॉमी'हैं?' चड्ढा ने इस सवाल के जरिए भारत पर लगे इस गलत टैग को चुनौती दी है। वहीं, गोल्ड को भारत का



‘डेड इकोनॉमी’ के दावे पर चड्ढा का जवाब

गुरमीत चड्ढा की यह बात ऐसे समय आई है, जब पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिति कुछ अनिश्चितता भरी है और भारत की ग्रोथ की कहानी सबकी नजरों में है। उन्होंने बताया कि भारत के पास सोने की इतनी बड़ी संपत्ति है, जो देश की आर्थिक मजबूती का मजबूत प्रमाण है।



चड्ढा ने यह बात इसलिए कही क्योंकि हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की अर्थव्यवस्था को 'डेड इकोनॉमी' कहा था। ट्रंप ने भारत की बिजनेस नीतियों और रूस के साथ संबंधों की आलोचना भी की थी। उन्होंने कहा था कि भारत और रूस दोनों की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं है। लेकिन बाद में आए आंकड़े दिखाते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है और तेजी से बढ़ रही है।



भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था

वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में भारत की आर्थिक ग्रोथ की दर 7.8% रही, जो पिछले कई महीनों में सबसे अच्छी रही। इससे पहले भी भारत की ग्रोथ रेट अच्छी रही है, जो यह दिखाता है कि भारत की अर्थव्यवस्था कई मुश्किलों के बावजूद मजबूत है। भारत की अर्थव्यवस्था सिर्फ एक क्षेत्र में नहीं, बल्कि कई क्षेत्रों में बढ़ रही है। घरेलू मार्केट में खपत बढ़ रही है, सर्विस का सेक्टर भी अच्छा परफॉर्म कर रहा है और फैक्ट्री व उत्पादन भी तेजी से बढ़ रहे हैं।



चड्ढा के बयान पर अलग-अलग राय

गुरमीत चड्ढा के इस पोस्ट ने भारत की आर्थिक ताकत को सामने लाया है। बहुत से लोग मानते हैं कि भारत के पास इतना सोना, बढ़ती हुई GDP और मजबूत इकोनॉमिक इंडिकेटर्स हैं, जो इसे 'डेड इकोनॉमी' से कहीं ज्यादा मजबूत बनाते हैं। हालांकि, कुछ लोगों ने इस टिप्पणी को सिर्फ राजनीतिक बयान कहा है और उनका मानना है कि यह पूरी तरह से भारत की असली आर्थिक स्थिति को नहीं दिखाता। लेकिन फिर भी यह बहस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है।



डिस्क्लेमर: जो सुझाव या राय एक्सपर्ट/ ब्रोकरेज देते हैं, वो उनकी अपनी सोच है। ये इकोनॉमिक टाइम्स हिंदी की राय नहीं होती।

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