आजकल तो अल्ट्रासाउंड जैसी आधुनिक तकनीकों से बच्चे के लिंग का पता लगाया जा सकता है (हालाँकि कई देशों में यह गैरकानूनी है, जैसे भारत में)। लेकिन 3500 साल पहले जब विज्ञान इतना विकसित नहीं था, तब लोग पारंपरिक और ज्योतिषीय तरीकों से यह अनुमान लगाने की कोशिश करते थे कि गर्भ में लड़का है या लड़की।
3500 साल पुराने एक तरीके के बारे में कहा जाता है कि:
मिस्र और बेबीलोन सभ्यताओं में एक तरीका प्रचलित था—गेहूं और जौ का अंकुरण परीक्षण (Wheat and Barley Test)। इसका तरीका कुछ इस प्रकार था:
गर्भवती महिला का मूत्र गेहूं और जौ के बीजों पर डाला जाता था।
यदि गेहूं पहले अंकुरित होता, तो माना जाता था कि लड़की होगी।
यदि जौ पहले अंकुरित होता, तो माना जाता था कि लड़का होगा।
यदि कोई अंकुरण न हो, तो गर्भवती न होने की संभावना मानी जाती थी।
रोचक बात यह है कि 20वीं सदी में कुछ वैज्ञानिकों ने इस परीक्षण को दोहराया और पाया कि इसमें कुछ हद तक सटीकता हो सकती है क्योंकि मूत्र में मौजूद हार्मोन बीजों की वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं।
हालाँकि, आज के विज्ञान के अनुसार यह तरीका पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है। यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दिलचस्प ज़रूर है, लेकिन बच्चे का लिंग जानने के लिए आधुनिक चिकित्सा ही सही और सुरक्षित रास्ता है—वो भी तब, जब कानूनी रूप से अनुमति हो।
You may also like
छत्तीसगढ़: पांच किलोमीटर पैदल और नदी पार कर गांव वालों से मिलने पहुंचे कलेक्टर, सरकारी योजनाओं से कराया अवगत
बांग्लादेश: राजनीतिक दल हस्ताक्षर करने से पहले 'जुलाई नेशनल चार्टर-2025' के मसौदे की करेंगे समीक्षा
जीबीजी एक्ट : तेजस्वी सूर्या ने कहा, विकेंद्रीकरण की आड़ में बेंगलुरु शासन का पुनः केंद्रीकरण
बिहार विधानसभा चुनाव: 16 जिलों के 32 सीटों पर चुनाव लड़ेगी एआईएमआईएम, पहली सूची जारी
बेटी ने इस्लाम छोड़ अपना लिया दूसरा धर्म` बौखलाया पिता ले आया पेट्रोल फिर धूं-धूं कर जल उठी लड़की