Next Story
Newszop

गीता दत्त की गायकी में छलकते थे जज्बात, दीवानी थीं लता मंगेशकर

Send Push

Mumbai , 19 जुलाई . गायकी सिर्फ सुर और ताल का खेल नहीं होती, बल्कि यह दिल से जुड़े एहसास का रूप होती है. जब कोई गायक अपनी आवाज में दिल की सच्ची भावनाएं डालता है, तो उसका गीत सीधे हमारे दिल तक पहुंच जाता है. गीता दत्त ऐसी ही गायिका थीं, जिनकी आवाज में सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि उनके जज्बात भी छलकते थे. उनकी आवाज में एक खास तरह का दर्द, प्यार और खनक होती थी, जो सुनने वाले को अंदर तक छू जाती थी. यही वजह थी कि उस दौर की सबसे बड़ी गायिका लता मंगेशकर भी उनकी गायकी की दीवानी थीं.

लता मंगेशकर ने कई बार कहा था कि गीता दत्त एक खास तरह की गायिका हैं, जिनकी गायकी में एक अलग ही प्यार और जुड़ाव था, जो उन्हें बहुत पसंद आता था. उन्होंने अपनी किताब ‘लता सुर गाथा’ में भी गीता दत्त का जिक्र किया था और उन्हें नेकदिल लड़की बताया था. अपनी किताब में उन्होंने उस पल को बयां किया, जब उन्हें गीता दत्त के निधन की खबर मिली थी.

किताब के जरिए लता मंगेशकर ने कहा, ”गीता दत्त को क्या हुआ कि मुझे मालूम ही नहीं चल सका कि उसकी मृत्यु हुई है. ताज्जुब की बात तो यह थी कि मुझे सलिल चौधरी जी का फोन आया और उन्होंने कहा, ‘लता, तुम तुरंत चली आओ, गीता के साथ ऐसे-ऐसे हुआ है.’ मुझे एकाएक धक्का लगा और मैं जब गई तो वे मुझे गीता के अंतिम दर्शन कराने लेकर गए. गीता से मेरी बहुत पटती थी और वह बहुत नेकदिल लड़की थी, इसलिए उसका अचानक यूं चले जाना कहीं भीतर निराश कर गया.”

गीता दत्त और लता मंगेशकर की पहली मुलाकात फिल्म ‘शहनाई’ के एक गाने ‘जवानी की रेल चली जाय रे’ की रिकॉर्डिंग के दौरान हुई थी. इस गाने में सुरों की दो रानियों ने अपनी मधुर आवाज दी थी. अपनी किताब में लता मंगेशकर ने गीता दत्त से जुड़ी एक दिलचस्प बात साझा की. उन्होंने बताया कि गीता दत्त का बोलने का तरीका पूरी तरह बंगाली था, जैसे बंगाल के लोग हिंदी बोलते हैं, वैसे ही. लेकिन जैसे ही गीता माइक के सामने आतीं, मानो कोई जादू हो जाता. उनका लहजा बदल जाता, उच्चारण बिल्कुल साफ-सुथरा हो जाता, और हिंदी इतनी सटीक हो जाती कि कोई सोच भी नहीं सकता कि ये वही बंगाली लड़की है जो अभी तक तो बंगालीनुमा हिंदी बोल रही थी.

उनके इस अनोखे अंदाज के चलते लता उनकी दीवानी थीं.

23 नवंबर 1930 को फरीदपुर (जो अब बांग्लादेश में है) में जन्मी गीता दत्त को बचपन से ही संगीत से खासा लगाव था. जब उनका परिवार कोलकाता से Mumbai आया, तब उनकी उम्र करीब 16 साल थी. यहीं से उनके संगीत सफर की शुरुआत हुई. उनकी मधुर आवाज ने जल्द ही सबका ध्यान खींचा और 1946 में उन्होंने पहली बार फिल्म ‘भक्त प्रह्लाद’ के लिए गाना गाया. उन्होंने अपने करियर में ‘जाने कहां मेरा जिगर गया जी’, ‘बाबू जी धीरे चलना’, ‘पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे’, ‘वक्त ने किया क्या हसीं सितम’, ‘मुझे जान न कहो मेरी जान’, और ‘ये लो मैं हारी पिया’ जैसे अनगिनत हिट गाने दिए, जो आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं. उन्होंने एस.डी. बर्मन, ओ.पी. नैय्यर, और हेमंत कुमार जैसे बड़े संगीतकारों के साथ काम किया.

गीता की जिंदगी में एक बड़ा मोड़ तब आया जब उन्होंने मशहूर निर्देशक और अभिनेता गुरु दत्त से शादी की. शादी के बाद उन्होंने कुछ समय तक फिल्मों से दूरी बना ली, लेकिन निजी जीवन की परेशानियों ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया. गुरु दत्त के असमय निधन और पारिवारिक तनाव ने गीता को गहरा झटका दिया. धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया और 20 जुलाई 1972 को महज 41 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. बेशक गीता दत्त आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी भावनाओं में डूबी आवाज हमेशा अमर रहेगी.

पीके/केआर

The post गीता दत्त की गायकी में छलकते थे जज्बात, दीवानी थीं लता मंगेशकर first appeared on indias news.

Loving Newspoint? Download the app now