नई दिल्ली, 30 जून . एक दशक पहले तक जिसे डिजिटल असमानता और सीमित तकनीकी पहुंच के लिए जाना जाता था, भारत ने बीते 10 वर्षों में डिजिटल इंडिया अभियान के जरिए खुद को दुनिया की डिजिटल राजधानी के रूप में स्थापित कर लिया है. 1 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई इस महत्वाकांक्षी योजना ने आज देश के करोड़ों नागरिकों को न सिर्फ तकनीक से जोड़ा है, बल्कि शासन, अर्थव्यवस्था और समाज में पारदर्शिता और जवाबदेही की नई इबारत भी लिखी है.
डिजिटल इंडिया अभियान के तहत आज 95 प्रतिशत से अधिक गांवों में इंटरनेट पहुंच चुका है. 2014 में जहां ग्रामीण टेलीफोन कनेक्शन 37.77 करोड़ थे, वहीं 2025 तक यह आंकड़ा बढ़कर 53.66 करोड़ हो गया है. इसके साथ ही, इंटरनेट यूजर्स की संख्या 2014 में 25 करोड़ से बढ़कर 2025 में 97 करोड़ तक पहुंच गई है. यानी 288 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
भारत अब अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था बन गया है, जिससे यूके, जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे विकसित देश भी पीछे छूट गए हैं. 2022-23 में डिजिटल अर्थव्यवस्था का राष्ट्रीय आय में योगदान 11.74 प्रतिशत था, जो 2024-25 तक 13.42 प्रतिशत और 2029–30 तक 20 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है.
भारत की अपनी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) आज यूएई, सिंगापुर, फ्रांस, भूटान, नेपाल, श्रीलंका और मॉरीशस जैसे देशों में उपयोग हो रही है. 2025 के मई महीने में यूपीआई से 25.14 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड ट्रांजैक्शन हुआ, जो एक मूक क्रांति की गवाही देता है. बिल गेट्स ने भारत की यूपीआई और आधार व्यवस्था को “डिजिटल गवर्नेंस का स्वर्ण मानक” बताया है.
इसके साथ ही, डीबीटी के जरिए अब तक 44 लाख करोड़ रुपये सीधे लाभार्थियों तक पहुंचे हैं. इस व्यवस्था से सरकार को 3.48 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई है, जिसमें से अकेले 1.85 लाख करोड़ की बचत खाद्य सब्सिडी से हुई है. इसके जरिए 5.87 करोड़ फर्जी राशन कार्ड और 4.23 करोड़ फर्जी एलपीजी कनेक्शन रद्द किए गए हैं.
भारतनेट योजना के जरिए 2.18 लाख ग्राम पंचायतों तक हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंच चुका है. पीएमजी दिशा के अंतर्गत 4.78 करोड़ ग्रामीणों को डिजिटल साक्षरता दी गई. दिलचस्प बात यह है कि 45 प्रतिशत स्टार्टअप टियर-2 और टियर-3 शहरों से आ रहे हैं, जिससे भारत का ग्रामीण इलाका डिजिटल नवाचार का नया केंद्र बन गया है.
देश के 709 जिलों में 4,671 ई-सेवाएं अब ऑनलाइन उपलब्ध हैं. वहीं, उमंग ऐप पर 1,668 से अधिक सेवाएं और 20,197 से ज्यादा बिल पेमेंट विकल्प मौजूद हैं. डिजी लॉकर के 51.6 करोड़ उपयोगकर्ता अब दस्तावेज़ों तक तुरंत पहुंच पा रहे हैं. भाषीणी परियोजना 35 भाषाओं में 1,600 से अधिक एआई मॉडल्स के साथ देश की भाषाई विविधता को जोड़ रही है.
ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स अब 616 शहरों में 7.64 लाख से अधिक विक्रेता और सेवा प्रदाता जोड़ चुका है. जीईएम प्लेटफॉर्म पर 1.6 लाख से अधिक सरकारी खरीदार और 22.5 लाख विक्रेता सक्रिय हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को अब यूपीआई और आधार जैसी तकनीकों का वैश्विक निर्यात बढ़ाना चाहिए. डिजिटल टेक्नोलॉजी आधारित रोजगार के नए अवसर तैयार करने चाहिए. डिजिटल करेंसी को वैश्विक मानक बनाने की पहल करनी चाहिए साथ ही, भ्रष्टाचार-निरोधी वैश्विक सिस्टम में भारत की तकनीकों को शामिल करवाना चाहिए.
नोट:- इस लेख को प्रो हिमानी सूद (प्रो-चांसलर(चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी), संस्थापक-इंडियन माइनॉरिटी फेडरेशन) ने लिखा है. इसमें दी गई जानकारी उनके द्वारा एकत्रित की गई है.
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डीएससी/जीकेटी
The post डिजिटल इंडिया के 10 साल : एक ‘डिजिटल डिवाइड’ वाले देश से ‘डिजिटल विश्वगुरु’ बनने तक भारत की परिवर्तनकारी यात्रा first appeared on indias news.
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