कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से छठ महापर्व का आरंभ होता है। यह पर्व सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा का प्रतीक है और चार दिनों तक चलता है। छठ पूजा में शुद्धता, संयम और भक्ति को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। व्रती महिलाएं पूरे नियम और अनुशासन के साथ इस व्रत को निभाती हैं। मान्यता है कि व्रत के दौरान किसी भी नियम का उल्लंघन करने से पूजा का फल अधूरा रह जाता है।
व्रत का पालन और निर्जला उपवासछठ व्रती सूर्यदेव को अर्घ्य देने से पहले किसी भी प्रकार का भोजन या जल ग्रहण नहीं करते। यह व्रत निर्जला रखा जाता है और भूमि पर ही विश्राम करना शुभ माना जाता है। हालांकि नहाय-खाय वाले दिन पानी पीना और भोजन करना अनुमति है। खरना से लेकर सूर्य अर्घ्य तक, विशेषकर विवाहित महिलाएं पूरे 36 घंटे निर्जला उपवास रखती हैं।
मिट्टी के बर्तन और पारंपरिक पूजाछठ पूजा में मिट्टी के बर्तन और चूल्हे का विशेष महत्व है। पूजा के दौरान स्टील, तांबा, प्लास्टिक या चांदी के बर्तनों का प्रयोग नहीं किया जाता। मिट्टी के बर्तन और चूल्हे को पवित्रता और प्राकृतिक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। प्रसाद तैयार करते समय उसे किसी भी प्रकार से खाना या चखना वर्जित है। प्रसाद हमेशा निर्मल, सात्विक और शुद्ध भाव से बनाना चाहिए।
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सफाई और शुद्धताछठ पूजा में शुद्धता का विशेष महत्व है। व्रती स्वयं को शुद्ध रखें और पूजा स्थल को नियमित रूप से साफ रखें। किसी भी पूजा सामग्री को छूने से पहले हाथ धोना आवश्यक है। व्रत केवल शरीर की नहीं, बल्कि मानसिक पवित्रता का भी प्रतीक है।
सात्विक आहार और अनुशासनपूरे व्रत के दौरान सात्विक भोजन का पालन करना जरूरी है। लहसुन, प्याज, मांसाहार, अंडा और शराब जैसी तामसिक वस्तुओं से दूर रहना चाहिए। प्रसाद तैयार करने का स्थान साफ और अन्य भोजन से अलग होना चाहिए।
सूर्य अर्घ्य का महत्वसूर्य अर्घ्य छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण क्षण है। अर्घ्य देते समय सूर्योदय और सूर्यास्त के सटीक समय का पालन करना चाहिए। मन में केवल श्रद्धा और कृतज्ञता के भाव होने चाहिए।
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मानसिक स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जाछठ व्रत के दौरान व्रती को शांत चित्त रहना चाहिए। क्रोध, कटु वचन या अपशब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखना छठ मैया की कृपा पाने का मार्ग है।
छठ पूजा का सारछठ पूजा केवल व्रत नहीं, बल्कि जीवन को अनुशासन, संयम और श्रद्धा से जोड़ने की परंपरा है। शुद्धता और नियमों का पालन करके व्रती न केवल छठ मैया का आशीर्वाद पाते हैं, बल्कि अपने परिवार में सुख-शांति और समृद्धि भी लाते हैं। यह पर्व स्वास्थ्य, संतान सुख और धन-धान्य की प्राप्ति का प्रतीक है।
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