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BSP का संकट

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BSP सुप्रीमो मायावती अपने फैसलों से सभी को चौंकाती रही हैं और भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का चीफ नैशनल कोऑर्डिनेटर बनाकर उन्होंने एक बार फिर यही किया है। हालांकि सियासी मजबूरी में लिए गए इस निर्णय से पार्टी के भीतर का असमंजस और संकट भी सामने आ गया है। समर्थकों में सवाल: पिछले एक साल के भीतर आकाश दो बार पद गंवा चुके हैं और दो बार उनकी वापसी हो चुकी है। उनकी हर वापसी पहले से ज्यादा दमदार रही। इस बार तो उनके लिए मायावती ने नया पद ही बना दिया। आकाश आनंद को लेकर पहले जैसा घमासान मचा था और अब जिस तरह से उनकी वापसी हुई है, उससे BSP समर्थकों के मन में कई सवाल जरूर होंगे। विकल्प का अभाव: दलित राजनीति में मायावती आज भी बड़ा नाम हैं। लेकिन, यह भी सच्चाई है कि हर नेता का वक्त होता है और उसे समय रहते अपना उत्तराधिकारी तैयार करना पड़ता है। लगता है कि मायावती इसके लिए पूरी तरह से मन नहीं बना पा रही हैं। पार्टी का एकमात्र चेहरा वह खुद हैं। उनके बाद दूसरी कतार के ज्यादातर नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं या निष्कासित कर दिए गए हैं। मायावती ने अपना कोई विकल्प कभी उभरने नहीं दिया। ऐसे में आकाश की वापसी के अलावा कोई रास्ता नहीं था। नई पीढ़ी से दूरी: मायावती पार्टी को अपनी विशिष्ट शैली में चलाती हैं, समर्थकों से संवाद करने का उनका अपना तरीका है। हालांकि सोशल मीडिया के दौर में वोटर्स की जो नई पीढ़ी आई है, वह उस पुराने तरीके से शायद BSP से कनेक्ट नहीं कर पा रही। उसने बहुजन आंदोलन के संघर्ष को नहीं देखा है। चुनावों को छोड़कर, बाकी वक्त में पार्टी सक्रिय विपक्ष की भूमिका में नहीं दिखती - न उसने पिछले काफी समय से कोई बड़ा आंदोलन किया है। गिरता वोट शेयर: कन्फ्यूजन में घिरी BSP चुनावों में उतरती तो है, लेकिन अब टक्कर देती हुई नहीं दिखती। पिछले एक दशक में उसका वोट शेयर लगातार नीचे आया है। 2019 आम चुनाव में पार्टी ने जब समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था, तब उसका वोट शेयर 19.2% था और 10 सीटें मिली थीं। 2024 में अकेले चुनाव लड़ने उतरी BSP का वोट शेयर केवल 9.3% रह गया और खाता भी नहीं खुला। इसी तरह, 2022 के विधानसभा चुनाव में 12.8% वोट मिले थे। अस्तित्व की लड़ाई: BSP के वोटर पार्टी के प्रति समर्पित माने जाते हैं। लेकिन, आंकड़े बताते हैं कि यह कोर वोटबैंक भी मायावती से दूर जा रहा है और इसका फायदा मिल रहा है BJP व समाजवादी पार्टी को। सदन से सड़क तक BSP की मौजूदगी सिमटती गई है और 2027 का विधानसभा चुनाव उसके लिए अस्तित्व की लड़ाई है। इसके पहले उसे सारे कन्फ्यूजन दूर करने होंगे।
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