अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की आगामी मुलाकात से पहले दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। ट्रंप ने चीन पर 155% तक टैरिफ लगाने की धमकी दी है, जिसका मुख्य कारण रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ पृथ्वी खनिज) को लेकर उपजा विवाद है। चीन द्वारा इन खनिजों के निर्यात पर नए नियम लागू करने के बाद अमेरिका की टेक और हथियार कंपनियों पर असर पड़ने की आशंका है। इस बीच, अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया के साथ रेयर अर्थ सप्लाई को लेकर एक महत्वपूर्ण समझौता किया है, जिससे चीन पर निर्भरता कम करने की उसकी कोशिशें तेज हो गई हैं। यह टकराव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाल सकता है, जैसा कि पहले भी देखा जा चुका है।
ट्रंप की नाराजगी : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ व्यापार समझौते में देरी को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर ट्रेड डील फाइनल नहीं हुई तो चीन पर 155% तक का टैरिफ लगाया जा सकता है। यह धमकी ऐसे समय में आई है जब ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच जल्द ही एक महत्वपूर्ण मुलाकात होने वाली है। इस मुलाकात का मकसद दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापारिक तनाव को कम करना है, लेकिन ट्रंप के कड़े रुख से यह उम्मीदें धूमिल होती दिख रही हैं।
इस पूरे विवाद की जड़ रेयर अर्थ मिनरल्स हैं। ये ऐसे खास खनिज होते हैं जिनका इस्तेमाल स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक कार और आधुनिक हथियारों जैसे कई हाई-टेक उत्पादों में होता है। दुनिया भर में इन खनिजों की 90% सप्लाई चीन से होती है। इसी महीने की 9 तारीख को चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात को लेकर कुछ नए नियम जारी किए। इन नियमों से सीधे तौर पर अमेरिका की बड़ी टेक और हथियार बनाने वाली कंपनियों पर असर पड़ने वाला था। चीन के इस कदम से अमेरिका में हड़कंप मच गया।
चीन का विकल्प : चीन के इन नए नियमों पर ट्रंप ने तुरंत प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि वह चीन पर अतिरिक्त 100% टैरिफ लगा देंगे। अब, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज के साथ एक बैठक के बाद ट्रंप ने वही धमकी एक बार फिर दोहराई है। इस बैठक में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच रेयर अर्थ की सप्लाई को लेकर एक अहम समझौता हुआ है। दोनों देश इन खनिजों की माइनिंग (खनन) और प्रोसेसिंग (प्रसंस्करण) में अपना निवेश बढ़ाएंगे। यह ट्रंप की उस बड़ी नीति का हिस्सा है जिसके तहत वह महत्वपूर्ण खनिजों के लिए चीन पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहते हैं। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी ऐसे ही प्रयास किए थे।
दबाव की कोशिश: अमेरिका और चीन के बीच अभी तक कोई पक्का व्यापार समझौता नहीं हुआ है। ऐसे में, ट्रंप और शी की मुलाकात से दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय बातचीत के तुरंत बाद चीन का जिक्र करना, ट्रंप की चीन पर दबाव बनाने की एक सोची-समझी रणनीति मानी जा रही है। जब चीन ने दो हफ्ते पहले नए नियम जारी किए थे, तब भी इसे अमेरिका पर दबाव बनाने की कोशिश के तौर पर ही देखा गया था।
बैकडोर डिप्लोमेसी : अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप के चीन के साथ रिश्ते कई बार बहुत नाजुक मोड़ पर पहुंच चुके हैं। इसकी एक बड़ी वजह दोनों देशों के बीच 'बैकडोर डिप्लोमेसी' यानी पर्दे के पीछे से होने वाली बातचीत का अभाव माना जा रहा है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में उनके दामाद जेरेड कुशनर ने कई बार वॉशिंगटन में चीनी राजदूत के जरिए दोनों देशों के बीच संवाद बनाए रखने में मदद की थी। इस बार अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट चीन से बात कर रहे हैं, लेकिन बातचीत का कोई दूसरा रास्ता न होने की वजह से बार-बार गतिरोध पैदा हो रहा है।
यह मामला सिर्फ अमेरिका और चीन तक ही सीमित नहीं है। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। इस साल अप्रैल में भी टैरिफ और रेयर अर्थ मिनरल्स को लेकर दोनों देशों के बीच बड़ा टकराव हुआ था, जिसका असर दुनियाभर की कंपनियों पर पड़ा था। अगर यह मामला नहीं सुलझता है, तो फिर से वही संकट खड़ा हो सकता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक बार फिर झटका लग सकता है।
ट्रंप की नाराजगी : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ व्यापार समझौते में देरी को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर ट्रेड डील फाइनल नहीं हुई तो चीन पर 155% तक का टैरिफ लगाया जा सकता है। यह धमकी ऐसे समय में आई है जब ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच जल्द ही एक महत्वपूर्ण मुलाकात होने वाली है। इस मुलाकात का मकसद दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापारिक तनाव को कम करना है, लेकिन ट्रंप के कड़े रुख से यह उम्मीदें धूमिल होती दिख रही हैं।
इस पूरे विवाद की जड़ रेयर अर्थ मिनरल्स हैं। ये ऐसे खास खनिज होते हैं जिनका इस्तेमाल स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक कार और आधुनिक हथियारों जैसे कई हाई-टेक उत्पादों में होता है। दुनिया भर में इन खनिजों की 90% सप्लाई चीन से होती है। इसी महीने की 9 तारीख को चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात को लेकर कुछ नए नियम जारी किए। इन नियमों से सीधे तौर पर अमेरिका की बड़ी टेक और हथियार बनाने वाली कंपनियों पर असर पड़ने वाला था। चीन के इस कदम से अमेरिका में हड़कंप मच गया।
चीन का विकल्प : चीन के इन नए नियमों पर ट्रंप ने तुरंत प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि वह चीन पर अतिरिक्त 100% टैरिफ लगा देंगे। अब, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज के साथ एक बैठक के बाद ट्रंप ने वही धमकी एक बार फिर दोहराई है। इस बैठक में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच रेयर अर्थ की सप्लाई को लेकर एक अहम समझौता हुआ है। दोनों देश इन खनिजों की माइनिंग (खनन) और प्रोसेसिंग (प्रसंस्करण) में अपना निवेश बढ़ाएंगे। यह ट्रंप की उस बड़ी नीति का हिस्सा है जिसके तहत वह महत्वपूर्ण खनिजों के लिए चीन पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहते हैं। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी ऐसे ही प्रयास किए थे।
दबाव की कोशिश: अमेरिका और चीन के बीच अभी तक कोई पक्का व्यापार समझौता नहीं हुआ है। ऐसे में, ट्रंप और शी की मुलाकात से दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय बातचीत के तुरंत बाद चीन का जिक्र करना, ट्रंप की चीन पर दबाव बनाने की एक सोची-समझी रणनीति मानी जा रही है। जब चीन ने दो हफ्ते पहले नए नियम जारी किए थे, तब भी इसे अमेरिका पर दबाव बनाने की कोशिश के तौर पर ही देखा गया था।
बैकडोर डिप्लोमेसी : अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप के चीन के साथ रिश्ते कई बार बहुत नाजुक मोड़ पर पहुंच चुके हैं। इसकी एक बड़ी वजह दोनों देशों के बीच 'बैकडोर डिप्लोमेसी' यानी पर्दे के पीछे से होने वाली बातचीत का अभाव माना जा रहा है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में उनके दामाद जेरेड कुशनर ने कई बार वॉशिंगटन में चीनी राजदूत के जरिए दोनों देशों के बीच संवाद बनाए रखने में मदद की थी। इस बार अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट चीन से बात कर रहे हैं, लेकिन बातचीत का कोई दूसरा रास्ता न होने की वजह से बार-बार गतिरोध पैदा हो रहा है।
यह मामला सिर्फ अमेरिका और चीन तक ही सीमित नहीं है। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। इस साल अप्रैल में भी टैरिफ और रेयर अर्थ मिनरल्स को लेकर दोनों देशों के बीच बड़ा टकराव हुआ था, जिसका असर दुनियाभर की कंपनियों पर पड़ा था। अगर यह मामला नहीं सुलझता है, तो फिर से वही संकट खड़ा हो सकता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक बार फिर झटका लग सकता है।