Pradosh Vrat : सावन मास में प्रदोष व्रत रखने का बड़ा महत्व है। शिवजी के प्रिय मास सावन में भोलेनाथ को समर्पित प्रदोष व्रत रखने से हर मनोकामना पूरी होती है और पुण्य की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। और भगवान शिव अपने भक्तों को सुख, शांति और लंबी आयु प्रदान करते हैं। इसके साथ ही शिव पुराण में लिखा गया है कि प्रदोष व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे शिव धाम में शिव चरणों में जगह मिलती है। ऐसे में आइये जानते हैं कि सावन मास में प्रदोष व्रत कब रखा जाएगा। इसके साथ ही प्रदोष व्रत की पूजा विधि क्या है।
प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
सावन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। यानी सावन का पहला प्रदोष व्रत 22 जुलाई यानी मंगलवार को रखा जाएगा। मंगलवार होने की वजह से इस प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत के रूप में जाना जाएगा। और ऋणमोचन के लिए भौम प्रदोष व्रत रखा जाता है। त्रयोदशी तिथि 22 जुलाई को सुबह 7.06 बजे लगेगी और देर रात 2.29 बजे समाप्त होगी।
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत पर शाम को शिव पूजन करने का महत्व है। पौराणिक कथा की मानें तो चंद्रमा को क्षय रोग हो गया था। इस वजह से वह काफी दर्द में था। तब चंद्रमा ने शिवजी का व्रत रखा था। शिवजी ने त्रयोदशी के दिन चंद्रमा के दुख दूर करते हुए उन्हें नया जीवन दिया था। इसलिए इस दिन व्रत रखा जाता है और इसे प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। यह काफी असरदायक है और विधि विधान से व्रत रखने वाले मनुष्य के शत्रुओं का नाश होता है।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
प्रदोष व्रत में सूर्यास्त के बाद स्नान करने का भी महत्व है। और शाम के समय साफ और सफेद कपड़े पहनकर पूर्व की ओर मुंह रखकर भगवान शिव की पूजा की जाती है। सबसे पहले मिट्टी का शिवलिंग बनाएं। फिर विधि विधान के साथ इनकी पूजा करें। सबसे पहले दीया जलाएं। भगवान गणेश की पूजा करें। शिवजी को जल, दूध, पंचामृत से स्नान कराएं। बेल पत्र, फूल, पूजा सामग्री से पूजन करें। भगवान को भोग लगाएं। शिवजी को मिठाई, धतूरा, बेल पत्र आदि जरूर चढ़ाने चाहिए। प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें और अंत में शिवजी की आरती करें।
प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
सावन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। यानी सावन का पहला प्रदोष व्रत 22 जुलाई यानी मंगलवार को रखा जाएगा। मंगलवार होने की वजह से इस प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत के रूप में जाना जाएगा। और ऋणमोचन के लिए भौम प्रदोष व्रत रखा जाता है। त्रयोदशी तिथि 22 जुलाई को सुबह 7.06 बजे लगेगी और देर रात 2.29 बजे समाप्त होगी।
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत पर शाम को शिव पूजन करने का महत्व है। पौराणिक कथा की मानें तो चंद्रमा को क्षय रोग हो गया था। इस वजह से वह काफी दर्द में था। तब चंद्रमा ने शिवजी का व्रत रखा था। शिवजी ने त्रयोदशी के दिन चंद्रमा के दुख दूर करते हुए उन्हें नया जीवन दिया था। इसलिए इस दिन व्रत रखा जाता है और इसे प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। यह काफी असरदायक है और विधि विधान से व्रत रखने वाले मनुष्य के शत्रुओं का नाश होता है।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
प्रदोष व्रत में सूर्यास्त के बाद स्नान करने का भी महत्व है। और शाम के समय साफ और सफेद कपड़े पहनकर पूर्व की ओर मुंह रखकर भगवान शिव की पूजा की जाती है। सबसे पहले मिट्टी का शिवलिंग बनाएं। फिर विधि विधान के साथ इनकी पूजा करें। सबसे पहले दीया जलाएं। भगवान गणेश की पूजा करें। शिवजी को जल, दूध, पंचामृत से स्नान कराएं। बेल पत्र, फूल, पूजा सामग्री से पूजन करें। भगवान को भोग लगाएं। शिवजी को मिठाई, धतूरा, बेल पत्र आदि जरूर चढ़ाने चाहिए। प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें और अंत में शिवजी की आरती करें।
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