पटना: सूत्र-मूत्र और मूत्र-सूत्र! जिसको पत्रकार 'सूत्र' कहते हैं, वो कुछ नेताओं के लिए 'मूत्र' है। अब मूत्र है तो दुर्गंध आएगी ही। दुर्गंध तो दुर्गंध है। खुशबू और बदबू सबको पता चल ही जाता है। भगवान ने हमारे ज्ञानेंद्रियों को ऐसे ही बनाया है। जो भगवान को नहीं मानते हैं वो अपने हिसाब से सोच सकते हैं। सोचने की पूरी आजादी है। मगर, बात शुरू हुई थी सूत्र-मूत्र से। ये तो वही बात हो गई कि 'गंगाधर ही शक्तिमान' है। सूत्र ही मूत्र है, इसकी खोज खुद को समाजवादी कहने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के बेटे पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने। तेजस्वी की इस 'नूतन खोज' से पूरा का 'सूत्र समाज' अपने आप को 'मूत्र' से जुझता हुआ पा रहा है। आलम ये है कि 'सूत्र संप्रदाय' को मूत्र विसर्जन से घबराहट होने लगी है। ज्यादा देर रोकने से किडनी पर साइड इफेक्ट का खतरा बढ़ गया है। 'सूत्र समुदाय' का कहना है कि चूंकि मामला बायोलॉजिकल है तो ज्यादा देर तक 'मूत्र' को रोकना सेहत के लिए खतरनाक भी हो सकता है। तेजस्वी जी चाहे जो कर लें, मूत्र (सूत्र) बाहर आकर ही रहेगा।
सूत्र-मूत्र और मूत्र-सूत्र!वैसे, मूत्र का इस्तेमाल सेहत के लिए कई बार फायदेमंद भी रहता है। इसका 'मेडिसिनल यूज' भी कुछ लोग करते हैं। 90 के दौर पर में, जब इस देश में मिलीजुली सरकारों का चलन जोर पर था तो ये 'मूत्र' (सूत्र) खूब काम आते थे। तब के दौर में लालू यादव ने भी इन 'मूत्रों' को अपने फायदे के लिए खूब इस्तेमाल किया। बस, इन सूत्रों वाले मूत्रों का इस्तेमाल करने आना चाहिए। ऐसा लग रहा है कि बिहार चुनाव में तेजस्वी मूत्र (सूत्र) का इस्तेमाल ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। तेजस्वी को अपने पिता लालू यादव से इसकी ट्यूशन लेने की जरूरत है। ताकि इन मूत्रों वाले सूत्रों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकें। वरना, मूत्रों से लड़कर कुछ हासिल नहीं होने वाला है। लड़कर क्या कीजिएगा, इनका तो काम ही यही है। जिसकी कुर्सी उसके 'मूत्र'। कल को आपकी सत्ता तो आपके लिए भी ये अपनी 'मूत्रों' की दौड़ करा देंगे।
सूत्र-मूत्र की शुरुआत कहां से हुई?दरअसल, तेजस्वी यादव ने पत्रकारों के सूत्रों को 'मूत्र' कहा। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, 'चुनाव आयोग स्वयं सामने आने की बजाय सूत्रों के हवाले से खबर प्लांट करवा रहा है ताकि इसकी आड़ में खेला कर सके। ये वही सूत्र है जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस्लामाबाद, लाहौर और कराची पर कब्जा कर चुके थे। इसलिए हम ऐसे सूत्र को मूत्र समझते है। मूत्र यानि ऐसा अपशिष्ट पदार्थ जो दुर्गंध फैलाता है।' असल में, बिहार में चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची सुधार प्रक्रिया चल रहा है। इसके तहत ये दावा किया गया कि वोटर लिस्ट में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के वोटर शामिल भी हैं। इस खबर को कुछ मीडिया में 'सूत्रों' के हवाले से चलाया गया। इसी पर तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया कि ये सूत्र नहीं मूत्र हैं।
सेहत के लिए फायदेमंद भी 'मूत्र'वैसे, मूत्र को लेकर कुछ वैज्ञानिक प्रमाण भी है। जिसमें रसायन शास्त्र की मानें तो हाइड्रोजन के दो हिस्से और ऑक्सीजन का एक हिस्सा मिलकर पानी बनाता है। जब पानी शरीर में जाता है को उसका लाभ शरीर को मिलता है। फिर जब उससे लाभ वाला हिस्सा शरीर हासिल कर लेता है तो बाकी को शरीर से बाहर निकाल देता है। बाद में वही मूत्र बनकर शरीर से निकलता है। वैसे, मूत्र में 95 फीसदी पानी ही होता है। बाकी में यूरिया, यूरिक एसिड, क्रिएटिनिन, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, सल्फेट के अलावा और भी कुछ होता है। मूत्र का इस्तेमाल कुछ लोग अपने फायदे के लिए भी करते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई तो मूत्र को सीधे पान ही कर लेते थे। वो इसके केमिकल का री-यूज करते थे। इससे उनका स्वास्थ्य ठीक रहता था। इसलिए 'मूत्र' को हिकारत से नहीं देखना चाहिए। खासकर उनको, जिनकी सार्वजनिक रोजी-रोटी का कुछ हिस्सा पत्रकारों पर भी टिकी हो। इसका 'यूज' आना चाहिए।
सूत्र-मूत्र और मूत्र-सूत्र!वैसे, मूत्र का इस्तेमाल सेहत के लिए कई बार फायदेमंद भी रहता है। इसका 'मेडिसिनल यूज' भी कुछ लोग करते हैं। 90 के दौर पर में, जब इस देश में मिलीजुली सरकारों का चलन जोर पर था तो ये 'मूत्र' (सूत्र) खूब काम आते थे। तब के दौर में लालू यादव ने भी इन 'मूत्रों' को अपने फायदे के लिए खूब इस्तेमाल किया। बस, इन सूत्रों वाले मूत्रों का इस्तेमाल करने आना चाहिए। ऐसा लग रहा है कि बिहार चुनाव में तेजस्वी मूत्र (सूत्र) का इस्तेमाल ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। तेजस्वी को अपने पिता लालू यादव से इसकी ट्यूशन लेने की जरूरत है। ताकि इन मूत्रों वाले सूत्रों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकें। वरना, मूत्रों से लड़कर कुछ हासिल नहीं होने वाला है। लड़कर क्या कीजिएगा, इनका तो काम ही यही है। जिसकी कुर्सी उसके 'मूत्र'। कल को आपकी सत्ता तो आपके लिए भी ये अपनी 'मूत्रों' की दौड़ करा देंगे।
सूत्र-मूत्र की शुरुआत कहां से हुई?दरअसल, तेजस्वी यादव ने पत्रकारों के सूत्रों को 'मूत्र' कहा। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, 'चुनाव आयोग स्वयं सामने आने की बजाय सूत्रों के हवाले से खबर प्लांट करवा रहा है ताकि इसकी आड़ में खेला कर सके। ये वही सूत्र है जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस्लामाबाद, लाहौर और कराची पर कब्जा कर चुके थे। इसलिए हम ऐसे सूत्र को मूत्र समझते है। मूत्र यानि ऐसा अपशिष्ट पदार्थ जो दुर्गंध फैलाता है।' असल में, बिहार में चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची सुधार प्रक्रिया चल रहा है। इसके तहत ये दावा किया गया कि वोटर लिस्ट में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के वोटर शामिल भी हैं। इस खबर को कुछ मीडिया में 'सूत्रों' के हवाले से चलाया गया। इसी पर तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया कि ये सूत्र नहीं मूत्र हैं।
चुनाव आयोग स्वयं सामने आने की बजाय सूत्रों के हवाले से खबर प्लांट करवा रहा है ताकि इसकी आड़ में खेला कर सके। ये वही सूत्र है जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस्लामाबाद, लाहौर और कराची पर कब्जा कर चुके थे।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) July 13, 2025
इसलिए हम ऐसे सूत्र को मूत्र समझते है। मूत्र यानि ऐसा अपशिष्ट पदार्थ जो दुर्गंध… pic.twitter.com/ACwApxQwVr
सेहत के लिए फायदेमंद भी 'मूत्र'वैसे, मूत्र को लेकर कुछ वैज्ञानिक प्रमाण भी है। जिसमें रसायन शास्त्र की मानें तो हाइड्रोजन के दो हिस्से और ऑक्सीजन का एक हिस्सा मिलकर पानी बनाता है। जब पानी शरीर में जाता है को उसका लाभ शरीर को मिलता है। फिर जब उससे लाभ वाला हिस्सा शरीर हासिल कर लेता है तो बाकी को शरीर से बाहर निकाल देता है। बाद में वही मूत्र बनकर शरीर से निकलता है। वैसे, मूत्र में 95 फीसदी पानी ही होता है। बाकी में यूरिया, यूरिक एसिड, क्रिएटिनिन, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, सल्फेट के अलावा और भी कुछ होता है। मूत्र का इस्तेमाल कुछ लोग अपने फायदे के लिए भी करते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई तो मूत्र को सीधे पान ही कर लेते थे। वो इसके केमिकल का री-यूज करते थे। इससे उनका स्वास्थ्य ठीक रहता था। इसलिए 'मूत्र' को हिकारत से नहीं देखना चाहिए। खासकर उनको, जिनकी सार्वजनिक रोजी-रोटी का कुछ हिस्सा पत्रकारों पर भी टिकी हो। इसका 'यूज' आना चाहिए।
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