नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में 200 साल पुरानी मस्जिद से जुड़े मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले को मुस्लिम पक्ष के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। बता दें कि उज्जैन की 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद को पहले ही गिराया जा चुका है, जिसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। मुस्लिम पक्ष ने गुहार लगाते हुए कहा था कि मस्जिद को अवैध रूप से ढहाया गया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि उन्हें हाई कोर्ट के फैसले में कोई खामी नजर नहीं आई। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता कानून के तहत उपलब्ध उपायों का सहारा लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इसमें उचित मुआवजा देना भी शामिल है। याचिकाकर्ताओं की ओर से इस मामले में सीनियर वकील एमआर शमशाद ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा मामला है, जिसमें तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है। उन्होंने तर्क दिया कि मस्जिद को बगल के महाकालेश्वर मंदिर के लिए पार्किंग सुविधा का विस्तार करने के लिए गिराया गया था।
हाई कोर्ट की टिप्पणी पर जताई हैरानीमुस्लिम पक्ष के वकील शमशाद ने हाई कोर्ट की इस टिप्पणी पर भी आपत्ति जताई कि धर्म का पालन करने के अधिकार का किसी विशेष स्थान से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि मस्जिद 1985 से विधिवत अधिसूचित वक्फ संपत्ति थी और विध्वंस से पहले तक एक पूजा स्थल के रूप में कार्य करती रही थी। हालांकि, पीठ ने इस मामले को फिर से खोलने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने तर्क दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो इस मामले में मुआवजा दिया जाएगा।
13 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिकासुप्रीम कोर्ट में ये याचिका उज्जैन के 13 स्थानीय नागरिकों ने दाखिल की थी। उन्होंने कहा था कि वे तकिया मस्जिद में नियमित रूप से नमाज अदा करते थे। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 1985 में वक्फ के रूप में अधिसूचित इस ढांचे को संवैधानिक और वैधानिक सुरक्षा के बावजूद जनवरी में ध्वस्त कर दिया गया। याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, वक्फ अधिनियम और मुआवजा एवं पुनर्वास से संबंधित भूमि अधिग्रहण कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया गया।
हाई कोर्ट ने मामले पर क्या कहा था?मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के दावों को पहले ही खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि मस्जिद जिस जमीन पर यह खड़ी थी, उसे महाकाल लोक परिसर के विस्तार के लिए वैध रूप से अधिग्रहित किया गया था। हाई कोर्ट ने पुराने उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि धर्म का पालन करने का अधिकार किसी विशेष पूजा स्थल से जुड़ा नहीं है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि उन्हें हाई कोर्ट के फैसले में कोई खामी नजर नहीं आई। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता कानून के तहत उपलब्ध उपायों का सहारा लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इसमें उचित मुआवजा देना भी शामिल है। याचिकाकर्ताओं की ओर से इस मामले में सीनियर वकील एमआर शमशाद ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा मामला है, जिसमें तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है। उन्होंने तर्क दिया कि मस्जिद को बगल के महाकालेश्वर मंदिर के लिए पार्किंग सुविधा का विस्तार करने के लिए गिराया गया था।
हाई कोर्ट की टिप्पणी पर जताई हैरानीमुस्लिम पक्ष के वकील शमशाद ने हाई कोर्ट की इस टिप्पणी पर भी आपत्ति जताई कि धर्म का पालन करने के अधिकार का किसी विशेष स्थान से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि मस्जिद 1985 से विधिवत अधिसूचित वक्फ संपत्ति थी और विध्वंस से पहले तक एक पूजा स्थल के रूप में कार्य करती रही थी। हालांकि, पीठ ने इस मामले को फिर से खोलने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने तर्क दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो इस मामले में मुआवजा दिया जाएगा।
13 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिकासुप्रीम कोर्ट में ये याचिका उज्जैन के 13 स्थानीय नागरिकों ने दाखिल की थी। उन्होंने कहा था कि वे तकिया मस्जिद में नियमित रूप से नमाज अदा करते थे। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 1985 में वक्फ के रूप में अधिसूचित इस ढांचे को संवैधानिक और वैधानिक सुरक्षा के बावजूद जनवरी में ध्वस्त कर दिया गया। याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, वक्फ अधिनियम और मुआवजा एवं पुनर्वास से संबंधित भूमि अधिग्रहण कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया गया।
हाई कोर्ट ने मामले पर क्या कहा था?मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के दावों को पहले ही खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि मस्जिद जिस जमीन पर यह खड़ी थी, उसे महाकाल लोक परिसर के विस्तार के लिए वैध रूप से अधिग्रहित किया गया था। हाई कोर्ट ने पुराने उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि धर्म का पालन करने का अधिकार किसी विशेष पूजा स्थल से जुड़ा नहीं है।
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