बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के आठ गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले होर्डिंग को मामले में बड़ा फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि ये होर्डिंग प्रलोभन या धोखाधड़ी के जरिये धर्मांतरण को रोकने के लिए लगाए गए थे और इन्हें असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित ग्राम सभाओं ने ये होर्डिंग स्थानीय जनजातियों और सांस्कृतिक विरासत के हितों की रक्षा के लिए एहतियाती उपाय के रूप में लगाए हैं।
क्या है पूरा मामला
खंडपीठ ने कांकेर जिले के दिग्बल टांडी और बस्तर जिले के नरेंद्र भवानी की ओर से दायर याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने ईसाइयों और उनके धर्म गुरुओं को मुख्यधारा के ग्रामीण समुदाय से कथित तौर पर अलग-थलग किए जाने का मुद्दा उठाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि पंचायत विभाग ने जिला पंचायत, जनपद पंचायत और ग्राम पंचायत को हमारी परंपरा, हमारी विरासत नाम से प्रस्ताव पारित करने का निर्देश दिया था।
क्या कहा था ग्राम पंचायत ने
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि ग्राम पंचायत को भेजे गए परिपत्र का वास्तविक उद्देश्य उन्हें गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाला प्रस्ताव पारित करने का निर्देश देना था। उन्होंने अदालत को बताया था कि कांकेर की भानुप्रतापपुर तहसील में घोटिया ग्राम पंचायत ने एक होर्डिंग लगाकर कहा है कि गांव 5वीं अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यहां पेसा अधिनियम और पंचायत अधिनियम के प्रावधान लागू हैं। ग्राम सभा गांव की पहचान एवं संस्कृति की रक्षा करने में सक्षम है।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि ग्राम सभा के होर्डिंग के आधार पर, अन्य गांवों के पादरियों और ‘धर्मांतरित ईसाइयों’ को धार्मिक कार्यक्रमों के लिए घोटिया में प्रवेश करने से रोका जाता है, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में भय की भावना पैदा होती है। उन्होंने दावा किया था कि कुडाल, पारवी, जुनवानी, घोटा, हवेचुर, मुसुरपुट्टा और सुलंगी गांवों में भी इसी तरह के होर्डिंग लगाए गए हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने दलील दी कि ग्राम सभाएं ऐसे प्रस्ताव पारित नहीं कर सकतीं, जो संविधान और कानून के खिलाफ हों। उन्होंने कहा कि ग्राम सभा के प्रस्ताव और ये होर्डिंग भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करते हैं, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
क्या कहा बचाव पक्ष के वकील ने
अतिरिक्त महाधिवक्ता वाईएस ठाकुर ने अदालत को बताया कि पेसा नियम ग्राम सभा को स्थानीय सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि से रक्षा करने का अधिकार देता है, जिसमें देवी-देवताओं के स्थान, पूजा पद्धति, संस्थान (गोटुल और धुमकुड़िया) और मानवतावादी सामाजिक प्रथाएं शामिल हैं। ठाकुर ने कहा कि उक्त होर्डिंग में इस बात का जिक्र किया गया है कि गांव में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों के लोगों को लालच देकर धर्मांतरण कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इससे स्थानीय सांस्कृतिक विरासत और आदिवासी संस्कृति को नुकसान पहुंच रहा है, जो पेसा नियमों का उल्लंघन है।
ठाकुर ने दलील दी कि होर्डिंग का उद्देश्य केवल अन्य क्षेत्रों के उन ईसाई पादरियों को रोकना है, जो आदिवासियों के अवैध धर्मांतरण के लिए गांव में प्रवेश कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति ग्राम सभा के फैसले से संतुष्ट नहीं है, तो वह उपमंडल अधिकारी (राजस्व) के समक्ष अपील कर सकता है, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने इस विकल्प का इस्तेमाल किए बिना ही ‘प्रो बोनो पब्लिको’ (जनता की भलाई के लिए) की प्रकृति में याचिकाएं दायर कीं और इसलिए यह विचारणीय नहीं है तथा इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने क्या कहा
खंडपीठ ने उच्चतम न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा, ‘‘प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण को रोकने के लिए होर्डिंग लगाना असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।’’ इसने कहा कि याचिकाकर्ताओं को निवारण के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से पहले उपलब्ध वैधानिक वैकल्पिक उपाय का इस्तेमाल कर लेना चाहिए था। खंडपीठ ने कहा कि अगर याचिकाकर्ताओं को आशंका है कि उन्हें अपने गांवों में प्रवेश करने से रोका जाएगा या उन्हें कोई खतरा है, तो वे पुलिस से सुरक्षा मांग सकते हैं।
क्या है पूरा मामला
खंडपीठ ने कांकेर जिले के दिग्बल टांडी और बस्तर जिले के नरेंद्र भवानी की ओर से दायर याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने ईसाइयों और उनके धर्म गुरुओं को मुख्यधारा के ग्रामीण समुदाय से कथित तौर पर अलग-थलग किए जाने का मुद्दा उठाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि पंचायत विभाग ने जिला पंचायत, जनपद पंचायत और ग्राम पंचायत को हमारी परंपरा, हमारी विरासत नाम से प्रस्ताव पारित करने का निर्देश दिया था।
क्या कहा था ग्राम पंचायत ने
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि ग्राम पंचायत को भेजे गए परिपत्र का वास्तविक उद्देश्य उन्हें गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाला प्रस्ताव पारित करने का निर्देश देना था। उन्होंने अदालत को बताया था कि कांकेर की भानुप्रतापपुर तहसील में घोटिया ग्राम पंचायत ने एक होर्डिंग लगाकर कहा है कि गांव 5वीं अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यहां पेसा अधिनियम और पंचायत अधिनियम के प्रावधान लागू हैं। ग्राम सभा गांव की पहचान एवं संस्कृति की रक्षा करने में सक्षम है।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि ग्राम सभा के होर्डिंग के आधार पर, अन्य गांवों के पादरियों और ‘धर्मांतरित ईसाइयों’ को धार्मिक कार्यक्रमों के लिए घोटिया में प्रवेश करने से रोका जाता है, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में भय की भावना पैदा होती है। उन्होंने दावा किया था कि कुडाल, पारवी, जुनवानी, घोटा, हवेचुर, मुसुरपुट्टा और सुलंगी गांवों में भी इसी तरह के होर्डिंग लगाए गए हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने दलील दी कि ग्राम सभाएं ऐसे प्रस्ताव पारित नहीं कर सकतीं, जो संविधान और कानून के खिलाफ हों। उन्होंने कहा कि ग्राम सभा के प्रस्ताव और ये होर्डिंग भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करते हैं, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
क्या कहा बचाव पक्ष के वकील ने
अतिरिक्त महाधिवक्ता वाईएस ठाकुर ने अदालत को बताया कि पेसा नियम ग्राम सभा को स्थानीय सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि से रक्षा करने का अधिकार देता है, जिसमें देवी-देवताओं के स्थान, पूजा पद्धति, संस्थान (गोटुल और धुमकुड़िया) और मानवतावादी सामाजिक प्रथाएं शामिल हैं। ठाकुर ने कहा कि उक्त होर्डिंग में इस बात का जिक्र किया गया है कि गांव में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों के लोगों को लालच देकर धर्मांतरण कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इससे स्थानीय सांस्कृतिक विरासत और आदिवासी संस्कृति को नुकसान पहुंच रहा है, जो पेसा नियमों का उल्लंघन है।
ठाकुर ने दलील दी कि होर्डिंग का उद्देश्य केवल अन्य क्षेत्रों के उन ईसाई पादरियों को रोकना है, जो आदिवासियों के अवैध धर्मांतरण के लिए गांव में प्रवेश कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति ग्राम सभा के फैसले से संतुष्ट नहीं है, तो वह उपमंडल अधिकारी (राजस्व) के समक्ष अपील कर सकता है, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने इस विकल्प का इस्तेमाल किए बिना ही ‘प्रो बोनो पब्लिको’ (जनता की भलाई के लिए) की प्रकृति में याचिकाएं दायर कीं और इसलिए यह विचारणीय नहीं है तथा इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने क्या कहा
खंडपीठ ने उच्चतम न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा, ‘‘प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण को रोकने के लिए होर्डिंग लगाना असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।’’ इसने कहा कि याचिकाकर्ताओं को निवारण के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से पहले उपलब्ध वैधानिक वैकल्पिक उपाय का इस्तेमाल कर लेना चाहिए था। खंडपीठ ने कहा कि अगर याचिकाकर्ताओं को आशंका है कि उन्हें अपने गांवों में प्रवेश करने से रोका जाएगा या उन्हें कोई खतरा है, तो वे पुलिस से सुरक्षा मांग सकते हैं।





