नई दिल्ली: करीब हफ्तेभर की उथलपुथल के बाद नेपाल का फिर से शांति की ओर बढ़ना अच्छी खबर है। नवनियुक्त अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की बेदाग छवि और संतुलित नजरिये के लिए जानी जाती हैं। उनके नेतृत्व में वहां जल्द चुनाव होने और हालात के सामान्य होने की उम्मीद है।
बेदाग छवि । सुशीला कार्की नेपाल की मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं। उनके पास राजनीतिक अनुभव बेहद कम है। इसके बावजूद Gen-Z ने उनके नाम पर सहमति जताई, क्योंकि बाकी राजनेताओं से उसका भरोसा उठ चुका है। कार्की भ्रष्टाचार विरोधी सख्त रुख के लिए जानी जाती हैं और नेपाल की नई पीढ़ी को उनसे आस है कि वह करप्शन को खत्म करने के लिए जरूरी कदम उठाएंगी।
चुनाव का ऐलान । सुशीला कार्की के लिए इन अपेक्षाओं पर खरा उतरना आसान नहीं। उनके सामने ऐसा देश है, जिसकी व्यवस्था उखड़ चुकी है। उन्हें हालात को संभालने के साथ ही राजनीतिक स्थायित्व भी प्रदान करना है। अच्छी बात यह है कि अंतरिम सरकार के गठन के साथ ही अगले साल मार्च में चुनाव कराने का भी ऐलान कर दिया गया। नेपाल ने इस मामले में बांग्लादेश से सबक लिया।
ढाका में भी जन। आंदोलन ने चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका था। हालांकि एक साल से ज्यादा वक्त बाद भी तय नहीं हो सका है कि चुनाव कब होंगे। इससे वही अनिश्चितता और बेचैनी फिर पैदा हो रही है, जिससे उबरने के लिए जनता सड़कों पर उतरी थी।
भारत के हक में स्थायित्व । नेपाल का जल्द से जल्द सामान्य होना भारत के लिए भी अच्छा होगा। दोनों देश आपस में इस कदर जुड़े हैं कि काठमांडू की कोई भी हलचल नई दिल्ली में महसूस हुए बिना नहीं रह सकती। फिर पड़ोस में स्थायित्व इसलिए भी जरूरी है, ताकि दूसरे तत्वों को फायदा उठाने का मौका न मिले। बांग्लादेश की अस्थिरता का उदाहरण सामने है, जहां पाकिस्तान अब भारत विरोधी नैरेटिव बनाने में लगा हुआ है।
रिश्तों में बैलेंस । भारत-नेपाल की सीमाएं ही नहीं जुड़तीं, दोनों की संस्कृति, रहन-सहन, खानपान भी बहुत हद तक साझा है। लेकिन, केपीएस ओली के दौर में दूरी साफ महसूस की जा सकती थी। वह नेपाल को धीरे-धीरे चीन की तरफ शिफ्ट कर रहे थे। यहां तक कि लिपुलेख का मुद्दा भी उन्होंने चीन के सामने उठाया। इससे नेपाल में ही वह वर्ग बहुत नाराज था, जो पेइचिंग को संशय की नजरों से देखता है। सुशीला कार्की से द्विपक्षीय रिश्तों में ज्यादा बैलेंस की उम्मीद है। मणिपुर से पीएम नरेंद्र मोदी का नेपाल को संदेश देना इस रिश्ते की अहमियत बताता है।
बेदाग छवि । सुशीला कार्की नेपाल की मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं। उनके पास राजनीतिक अनुभव बेहद कम है। इसके बावजूद Gen-Z ने उनके नाम पर सहमति जताई, क्योंकि बाकी राजनेताओं से उसका भरोसा उठ चुका है। कार्की भ्रष्टाचार विरोधी सख्त रुख के लिए जानी जाती हैं और नेपाल की नई पीढ़ी को उनसे आस है कि वह करप्शन को खत्म करने के लिए जरूरी कदम उठाएंगी।
चुनाव का ऐलान । सुशीला कार्की के लिए इन अपेक्षाओं पर खरा उतरना आसान नहीं। उनके सामने ऐसा देश है, जिसकी व्यवस्था उखड़ चुकी है। उन्हें हालात को संभालने के साथ ही राजनीतिक स्थायित्व भी प्रदान करना है। अच्छी बात यह है कि अंतरिम सरकार के गठन के साथ ही अगले साल मार्च में चुनाव कराने का भी ऐलान कर दिया गया। नेपाल ने इस मामले में बांग्लादेश से सबक लिया।
ढाका में भी जन। आंदोलन ने चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका था। हालांकि एक साल से ज्यादा वक्त बाद भी तय नहीं हो सका है कि चुनाव कब होंगे। इससे वही अनिश्चितता और बेचैनी फिर पैदा हो रही है, जिससे उबरने के लिए जनता सड़कों पर उतरी थी।
भारत के हक में स्थायित्व । नेपाल का जल्द से जल्द सामान्य होना भारत के लिए भी अच्छा होगा। दोनों देश आपस में इस कदर जुड़े हैं कि काठमांडू की कोई भी हलचल नई दिल्ली में महसूस हुए बिना नहीं रह सकती। फिर पड़ोस में स्थायित्व इसलिए भी जरूरी है, ताकि दूसरे तत्वों को फायदा उठाने का मौका न मिले। बांग्लादेश की अस्थिरता का उदाहरण सामने है, जहां पाकिस्तान अब भारत विरोधी नैरेटिव बनाने में लगा हुआ है।
रिश्तों में बैलेंस । भारत-नेपाल की सीमाएं ही नहीं जुड़तीं, दोनों की संस्कृति, रहन-सहन, खानपान भी बहुत हद तक साझा है। लेकिन, केपीएस ओली के दौर में दूरी साफ महसूस की जा सकती थी। वह नेपाल को धीरे-धीरे चीन की तरफ शिफ्ट कर रहे थे। यहां तक कि लिपुलेख का मुद्दा भी उन्होंने चीन के सामने उठाया। इससे नेपाल में ही वह वर्ग बहुत नाराज था, जो पेइचिंग को संशय की नजरों से देखता है। सुशीला कार्की से द्विपक्षीय रिश्तों में ज्यादा बैलेंस की उम्मीद है। मणिपुर से पीएम नरेंद्र मोदी का नेपाल को संदेश देना इस रिश्ते की अहमियत बताता है।
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