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मुकेश अंबानी के हाथ से फिसली व्हर्लपूल! जानिए अब कौन-कौन रह गया है खरीदने की रेस में?

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नई दिल्ली: भारत की सबसे वैल्यूएबल कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज अमेरिका की दिग्गज कंपनी व्हर्लपूल की भारतीय यूनिट को खरीदने की होड़ से बाहर हो गई है। कुछ बड़े अधिकारियों ने बताया कि मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस के साथ-साथ TPG, KKR और Havells भी रेस से बाहर गई हैं। होम अप्लायंसेज बनाने वाली कंपनी व्हर्लपूल इंडिया में 31% हिस्सेदारी खरीदने के लिए केवल दो कंपनियां EQT और Bain Capital ही मुकाबले में रह गई हैं। EQT और Bain Capital कंपनी के बारे में पूरी जानकारी जुटा रहे हैं। अगस्त में बोली लगाने की आखिरी तारीख है।



व्हर्लपूल की मूल कंपनी अपनी भारतीय इकाई में 31% हिस्सेदारी बेचना चाहती है। भारत से ही व्हर्लपूल को एशिया में सबसे ज्यादा कमाई होती है। कंपनी 20% हिस्सेदारी अपने पास रखेगी। भारत में व्हर्लपूल की हिस्सेदारी व्हर्लपूल मॉरीशस के जरिए है। ET ने 20 जून को बताया था कि रिलायंस और हैवल्स इस हिस्सेदारी को खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। व्हर्लपूल ने इस बारे में पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दिया। मंगलवार को बीएसई में व्हर्लपूल इंडिया का मार्केट कैप 18,116 करोड़ रुपये था।



क्यों बिक रही है कंपनी?

यह हिस्सेदारी बेचने का फैसला 2022 के अंत में कंपनी के वैश्विक पुनर्गठन का हिस्सा है। उस समय कंपनी को 1.5 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। अमेरिका में व्हर्लपूल, किचनएड और मेयटैग ब्रांड काफी मशहूर हैं। कंपनी ने कहा है कि वह इस साल के अंत तक 31% हिस्सेदारी बेचकर 550-600 मिलियन डॉलर (4,684-5,110 करोड़ रुपये) जुटाना चाहती है। Goldman Sachs इस डील के लिए सलाहकार है और अप्रैल में हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया शुरू हुई थी।



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डील होने पर कंपनी के 26% और शेयर खरीदने का ऑफर भी आएगा। व्हर्लपूल की ऊंची कीमत की वजह से कई कंपनियां पीछे हट गई हैं। एक और मुद्दा यह है कि भविष्य में मूल कंपनी को कितनी रॉयल्टी देनी होगी। जनवरी के अंत में कंपनी के शेयर 20% तक गिर गए थे, जो कि 10 महीने में सबसे कम थे। उस समय कंपनी ने भारत में अपनी हिस्सेदारी कम करने की बात कही थी। लेकिन उसके बाद से शेयरों में सुधार हुआ है। अप्रैल में शेयर 33% तक बढ़ गए थे, जब बिक्री की प्रक्रिया शुरू हुई थी। अप्रैल से अब तक शेयर 29.39% बढ़ चुके हैं और मंगलवार को BSE में 1,427.90 रुपये पर बंद हुए।



टॉप ब्रांड्स में शामिल

अगर सभी शेयर बिक जाते हैं तो नई कंपनी के पास 57% हिस्सेदारी हो सकती है। अभी पब्लिक शेयरहोल्डर्स के पास 49% हिस्सेदारी है। मौजूदा कीमतों के हिसाब से यह डील 10,354.62 करोड़ रुपये की होगी, जो उम्मीद से थोड़ी ज्यादा है। अगर अमेरिकी कंपनी को फाइनल ऑफर पसंद नहीं आते हैं, तो वह खुले बाजार में भी शेयर बेच सकती है। पिछले साल फरवरी में कंपनी ने SBI म्यूचुअल फंड और आदित्य बिड़ला सनलाइफ म्यूचुअल फंड जैसे निवेशकों को 4,039 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे।



व्हर्लपूल भारत में रेफ्रिजरेटर और वॉशिंग मशीन के टॉप चार ब्रांड में से एक है। FY25 में कंपनी का रेवेन्यू 7,421 करोड़ रुपये और नेट प्रॉफिट 313 करोड़ रुपये था। लेकिन महंगे प्रोडक्ट्स में व्हर्लपूल की हिस्सेदारी LG, Samsung और Haier की तुलना में बहुत कम है। Havells India रेफ्रिजरेटर और वॉशिंग मशीन में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती थी, इसलिए उसने व्हर्लपूल की हिस्सेदारी खरीदने पर विचार किया। Havells के एयर कंडीशनर ब्रांड Lloyd की बाजार में अच्छी पकड़ है। लेकिन ज्यादा कीमत और Lloyd पर ध्यान देने की वजह से Havells ने व्हर्लपूल को खरीदने का प्लान छोड़ दिया। Lloyd ने FY25 में अच्छा मुनाफा कमाया था।





ज्यादा कीमत

Havells के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल राय गुप्ता ने कहा कि कंपनी अधिग्रहण के लिए तैयार है, लेकिन अभी वह अपने कारोबार को बढ़ाने पर ध्यान दे रही है। रिलायंस ने भी ज्यादा कीमत की वजह से फिलहाल यह प्लान छोड़ दिया है। रिलायंस ने ने हाल ही में स्वीडिश कंपनी इलेक्ट्रोलक्स से केल्विनेटर ब्रांड को 160 करोड़ रुपये में खरीदा है। कंपनी अब इसे एक बड़ा ब्रांड बनाना चाहती है।



व्हर्लपूल 1980 के दशक में भारत में आने वाले पहले विदेशी कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक ब्रांड में से एक था। लेकिन यह LG, Samsung और Haier जैसे ब्रांड से आगे नहीं निकल पाया, जो बाद में आए। यहां तक कि Voltas जैसे भारतीय ब्रांड भी इससे आगे निकल गए। इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि व्हर्लपूल की ब्रांड वैल्यू अच्छी है, उसके पास मैन्युफैक्चरिंग बेस भी है और छोटे शहरों में डिस्ट्रीब्यूटर का नेटवर्क भी मजबूत है।

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