नई दिल्ली: दिल्ली में मंगलवार को हुई क्लाउड सीडिंग के सफल न होने के बाद बुधवार को सीडिंग नहीं कराई गई। आईआईटी कानपुर (IITK) ने बताया कि इसकी वजह बादलों में पर्याप्त नमी का न होना है। यह पूरी प्रक्रिया सही मौसमी परिस्थितियों पर निर्भर है। इसके पहले आईआईटी कानपुर के डायरेक्टर प्रफेसर मणींद्र अग्रवाल ने कहा था कि बादलों में सिर्फ 15-20% नमी होने के कारण पहले दिन बारिश नहीं हो सकी थी।
नई जानकारियां मिलीमणीद्र अग्रवाल ने कहा कि क्लाउड सीडिंग के प्रयोग से हमें काफी अच्छी जानकारियां मिली है। कृत्रिम वर्षा और इसके असर का आकलन करने के लिए दिल्ली में 15 जगहों पर उपकरण लगाए गए थे। सिर्फ क्लाउड सीडिंग से ही जमीन पर प्रदूषण में 6-10% तक कमी दर्ज की गई है। इसमें प्रदूषण के मुख्य कारकों पर भी नियंत्रण हुआ है।
इसलिए बढ़ी लागतप्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि अब हम मान सकते हैं कि बादलों में नमी कम होने पर भी क्लाउड सीडिंग की जाए तो जमीन पर असर दिखेगा। आगे हमें ज्यादा जानकारियां इकट्ठी करनी है। एयरक्राफ्ट के कानपुर से दिल्ली जाने के कारण फ्यूल के चलते प्रोजेक्ट की लागत बढ़ी। दिल्ली में नियमित क्लाउड सीडिंग होगी तो सेसना एयरक्राफ्ट को दिल्ली के पास किसी एयरपोर्ट पर रखा जाएगा। इससे प्रोजेक्ट की लागत घट जाएगी।
इतना आया खर्चदिल्ली में मंगलवार को 300 वर्ग किमी का एरिया कृत्रिम वर्षा कराने के लिए कवर किया गया था। एक मोटे आकलन के अनुसार, इसपर करीब 60 लाख रुपये का खर्च आया है। इस हिसाब से ये 20 हजार रुपये प्रति वर्ग किमी हुई। 1000 वर्ग किमी में यह खर्च 2 करोड़ रुपये होगा। सर्दियों के सीजन में चार महीने तक 12 बार क्लाउड सीडिंग कराई जाए तो अधिकतम खर्च 25-30 करोड़ रुपये ही आएगा। लागत बड़ा विषय नहीं है।
IIT कानपुर की रिपोर्ट पर भी उठ रहे सवालIIT कानपुर की कृत्रिम बारिश को लेकर रिपोर्ट आने के बाद एक्सपर्ट्स स्पष्ट नहीं है इसलिए इसे सफल कहना जल्दबाजी होगी। रिपोर्ट के कई दावों पर अब सवाल उठ रहे हैं।
विंडी के डेटा से बताई बारिशIIT कानपुर की रिपोर्ट में नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जिस बारिश का जिक्र किया गया है, वह मौसम विभाग (IMD) के डेटा पर आधारित नहीं है बल्कि विंडी के आंकड़ों पर है। एक्सपर्ट्स और कई अधिकारियों का कहना है कि यह एक बड़ी खामी है। विंडी एक ऑनलाइन मौसम मॉडल है, जो सिर्फ अनुमान लगाता है कि कहां और कब साकका की कोई स्पष्ट गारंटी नहीं होती।
IMD ने नहीं दिया डेटाआईएमडी ने बीते मंगलवार और बुधवार को नोएडा और गौतमबुद्ध नगर में हुई बारिश का कोई डेटा जारी नहीं किया। ऐसे में यह तय नहीं हो पा रहा कि बारिश सही में हुई भी थी या नहीं। जब इस बारे में विभाह से पूछा गया तो उन्होंने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया।
क्या 0.1 मिमी बारिश से कम हो सकता है प्रदूषण?सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बारिश हुई भी है तो क्या सिर्फ 0.1 मिमी बारिश से प्रदूषण कम हो सकता है? रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रदूषण में 6 से 10 फीसदी की कमी आई है लेकिन एक्सपर्ट्स इसे मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि प्रदूषण में कमी आने के कई कारण हो सकते हैं। इतनी मामूली बारिश से दिल्ली-एनसीआर का प्रदूषण धुल जाना संभव नहीं है। इसलिए सिर्फ 0.1 मिमी बारिश को प्रदूषण घटने की वजह बताना वैज्ञानिक तौर पर सही नहीं है।
नई जानकारियां मिलीमणीद्र अग्रवाल ने कहा कि क्लाउड सीडिंग के प्रयोग से हमें काफी अच्छी जानकारियां मिली है। कृत्रिम वर्षा और इसके असर का आकलन करने के लिए दिल्ली में 15 जगहों पर उपकरण लगाए गए थे। सिर्फ क्लाउड सीडिंग से ही जमीन पर प्रदूषण में 6-10% तक कमी दर्ज की गई है। इसमें प्रदूषण के मुख्य कारकों पर भी नियंत्रण हुआ है।
इसलिए बढ़ी लागतप्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि अब हम मान सकते हैं कि बादलों में नमी कम होने पर भी क्लाउड सीडिंग की जाए तो जमीन पर असर दिखेगा। आगे हमें ज्यादा जानकारियां इकट्ठी करनी है। एयरक्राफ्ट के कानपुर से दिल्ली जाने के कारण फ्यूल के चलते प्रोजेक्ट की लागत बढ़ी। दिल्ली में नियमित क्लाउड सीडिंग होगी तो सेसना एयरक्राफ्ट को दिल्ली के पास किसी एयरपोर्ट पर रखा जाएगा। इससे प्रोजेक्ट की लागत घट जाएगी।
इतना आया खर्चदिल्ली में मंगलवार को 300 वर्ग किमी का एरिया कृत्रिम वर्षा कराने के लिए कवर किया गया था। एक मोटे आकलन के अनुसार, इसपर करीब 60 लाख रुपये का खर्च आया है। इस हिसाब से ये 20 हजार रुपये प्रति वर्ग किमी हुई। 1000 वर्ग किमी में यह खर्च 2 करोड़ रुपये होगा। सर्दियों के सीजन में चार महीने तक 12 बार क्लाउड सीडिंग कराई जाए तो अधिकतम खर्च 25-30 करोड़ रुपये ही आएगा। लागत बड़ा विषय नहीं है।
IIT कानपुर की रिपोर्ट पर भी उठ रहे सवालIIT कानपुर की कृत्रिम बारिश को लेकर रिपोर्ट आने के बाद एक्सपर्ट्स स्पष्ट नहीं है इसलिए इसे सफल कहना जल्दबाजी होगी। रिपोर्ट के कई दावों पर अब सवाल उठ रहे हैं।
विंडी के डेटा से बताई बारिशIIT कानपुर की रिपोर्ट में नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जिस बारिश का जिक्र किया गया है, वह मौसम विभाग (IMD) के डेटा पर आधारित नहीं है बल्कि विंडी के आंकड़ों पर है। एक्सपर्ट्स और कई अधिकारियों का कहना है कि यह एक बड़ी खामी है। विंडी एक ऑनलाइन मौसम मॉडल है, जो सिर्फ अनुमान लगाता है कि कहां और कब साकका की कोई स्पष्ट गारंटी नहीं होती।
IMD ने नहीं दिया डेटाआईएमडी ने बीते मंगलवार और बुधवार को नोएडा और गौतमबुद्ध नगर में हुई बारिश का कोई डेटा जारी नहीं किया। ऐसे में यह तय नहीं हो पा रहा कि बारिश सही में हुई भी थी या नहीं। जब इस बारे में विभाह से पूछा गया तो उन्होंने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया।
क्या 0.1 मिमी बारिश से कम हो सकता है प्रदूषण?सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बारिश हुई भी है तो क्या सिर्फ 0.1 मिमी बारिश से प्रदूषण कम हो सकता है? रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रदूषण में 6 से 10 फीसदी की कमी आई है लेकिन एक्सपर्ट्स इसे मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि प्रदूषण में कमी आने के कई कारण हो सकते हैं। इतनी मामूली बारिश से दिल्ली-एनसीआर का प्रदूषण धुल जाना संभव नहीं है। इसलिए सिर्फ 0.1 मिमी बारिश को प्रदूषण घटने की वजह बताना वैज्ञानिक तौर पर सही नहीं है।
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