पंजाबी की मशहूर लेखिका और पद्मश्री सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित अजीत कौर नब्बे वर्ष की आयु में भी अपनी रचनात्मकता के साथ सक्रिय रूप से जुड़ी हैं। वह अब तक 32 पुस्तकें लिख चुकी हैं। उन्होंने अपनी बेटी प्रसिद्ध चित्रकार अर्पणा कौर के साथ मिलकर दिल्ली में एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स की स्थापना की है। कुछ समय पहले आई किताब ‘हरी चींटियां सपने देखती हैं’ में उन्होंने जगजीत सिंह, शाहरुख खान से लेकर धीरूभाई अंबानी तक की यादें साझा की हैं। उनसे बात की संध्या रानी ने। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश :
जगजीत सिंह और शाहरुख खान आपसे कैसे मिले?
उस समय जगजीत सिंह को कोई नहीं जानता था। मेरे एक परिचित ने मुझसे कहा कि एक लड़का बहुत अच्छी गजल गाता है। अगर आप चाहें तो दिल्ली में उसका एक प्रोग्राम करवा दें। पहले तो मैंने सोचा कि इनको तो कोई नहीं जानता है। इनके प्रोग्राम में कौन आएगा? फिर भी मैंने फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार को उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया और कमानी ऑडिटोरियम बुक करवाया। दिलीप कुमार को देखने के लिए पूरा ऑडिटोरियम भर गया। उनको एक नजर देखने के लिए लोग बाहर तक खड़े थे। मंच पर दिलीप कुमार आए और जगजीत सिंह का हारमोनियम बजाकर उन्होंने गजल गाई। इसके बाद जगजीत सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मेरी कहानी ‘ना मारो’ पर एक टीवी धारावाहिक बन रहा था।
उस धारावाहिक का नाम था ‘दूसरा केवल’ और उसके डायरेक्टर लेख टंडन थे। जब मैं उनसे मिलने के लिए जा रही थी, वहां लड़के-लड़कियों की भीड़ लगी हुई थी। उसी दौरान मुझे एक लड़का दिखाई दिया, जिसके गाल में डिंपल पड़ रहा था। मैंने लेख टंडन को वह लड़का दिखाया, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। फिर भी मैं उस लड़के का हाथ पकड़कर उनके पास ले गई और कहा कि एक बार इसे देख लें। इस तरह धारावाहिक ‘दूसरा केवल’ के लिए शाहरुख खान का चयन हो गया जबकि सभी लोग यही जानते हैं कि शाहरुख खान का पहला धारावाहिक ‘फौजी’ है।
और धीरूभाई अंबानी?
मुंबई में मेरी मुलाकात धीरूभाई अंबानी से हुई थी। उस समय वह एक छोटे स्तर के व्यापारी थे, लेकिन बेहद सज्जन आदमी थे। मैं ‘रूपी ट्रेड’ पत्रिका की संपादक थी, जो मॉस्को के लिए प्रकाशित की जाती थी। एक बार जब मैं मॉस्को गई और वहां की रेजनो- एक्सपोर्ट नामक संस्था की डायरेक्टर से मिली, तो मैंने धीरूभाई द्वारा भेजे गए रेशमी कपड़ों की कतरनों के सैंपल दिखाए। वे उन्हें बहुत पसंद आए और उन्होंने करोड़ों मीटर रेशमी कपड़े की आपूर्ति का ऑर्डर दे दिया। इस सौदे से उन्हें भारी मुनाफा हुआ और उसी पूंजी से अपने पहले कारखाने की नींव रखी। मुझे इसी बात की खुशी है कि मैंने अपने जीवन में अच्छे कर्म किए हैं।
बचपन से ही अमृता प्रीतम आपकी चहेती रही हैं। आप उनकी बातों को कभी टालती नहीं थीं - क्यों?
यह बात तो सच है। उस समय मैं उनकी हर बात मानती थी। लेकिन जब उन्होंने अपने पति को घर से बाहर निकाल दिया और कहा कि बच्चे मेरे पास रहेंगे और उनके सभी खर्चे आपको ही उठाने हैं, तब से मैं उनकी बातें टालने लगी। जब बच्चे बीमार पड़ते थे, तब भी प्रीतम सिंह ही उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया करते थे। उनके इस निर्णय से उनके पिता और भाई भी नाराज हो गए। सभी यही कहते थे कि एक औरत के लिए अपनी जिंदगी बर्बाद कर दी। लेकिन उन्होंने इसके बारे में कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की बल्कि वह कहते थे कि उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है।
अजमल कसाब को लेकर आपने जो कार्य किया है, लोग कहते हैं कि वैसा तो हमारी सरकार भी नहीं कर सकी...
कसाब पाकिस्तानी नागरिक था, लेकिन पाकिस्तान की सरकार इस सचाई को नकार रही थी। जब मैंने उसे टीवी पर बोलते देखा, तो उसके बोलने के लहजे से मुझे पंजाबी भाषा की झलक मिली। दोनों देशों की पंजाबी बोलियों में फर्क होता है। वहां अधिक शुद्ध पंजाबी बोली जाती है। मैंने पाकिस्तान के प्रसिद्ध पत्रकार हामिद मीर को फोन किया और कहा कि यह बच्चा तुम्हारे पंजाब के किसी गांव का लग रहा है। इसका पता लगाओ।
हामिद मीर, जो जिओ टीवी के एंकर हैं, अपने एक कैमरामैन के साथ कसाब की तस्वीर लेकर गांव-गांव ढूंढने लगे। अंत में एक आदमी मिला, जो बोला, अरे! यह तो मेरा बेटा है। दो साल से घर नहीं आया है। लगता है किसी बुरी संगत में पड़ गया है। हामिद मीर ने उस व्यक्ति का इंटरव्यू रेकॉर्ड किया और जिओ टीवी पर प्रसारित कर दिया। इसके बाद पाकिस्तान की बोलती बंद हो गई।
हरी-भरी दिल्ली को आपने कंक्रीट के जंगल में तब्दील होते देखा है, क्या कहेंगी?
मैंने उस दिल्ली को देखा है जो कभी पेड़-पौधों और हरियाली से भरी रहती थी। सिरीफोर्ट के पास घने जंगल में तरह-तरह के परिंदों के घोंसले होते थे। वहां बाघ, सफेद उल्लू और मोर रहते थे। लेकिन एक दिन विकास के नाम पर वहां हजारों पेड़ काट दिए गए। मैंने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जितने पेड़ काटे गए हैं, उतने ही पेड़ लगाए जाएं। इसके लिए मैंने लाखों रुपये खर्च किए थे।
खुशवंत सिंह ने राज्यसभा का बंगला क्यों अस्वीकार कर दिया था? आपकी किताब में एक याद उसकी भी तो है...
जब वह राज्यसभा के सदस्य बने तो उन्हें एक बहुत बडा बंगला अलॉट हुआ। वह उनके घर से दस गुणा बड़ा था। लेकिन उन्होंने उस बंगले में जाने से साफ इनकार कर दिया। जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह अपने पुराने घर में ही खुश हैं। उन्होंने वह बंगला अपनी पत्नी के दर्जी को रहने के लिए दे दिया, जिसके नौ बच्चे थे।
जगजीत सिंह और शाहरुख खान आपसे कैसे मिले?
उस समय जगजीत सिंह को कोई नहीं जानता था। मेरे एक परिचित ने मुझसे कहा कि एक लड़का बहुत अच्छी गजल गाता है। अगर आप चाहें तो दिल्ली में उसका एक प्रोग्राम करवा दें। पहले तो मैंने सोचा कि इनको तो कोई नहीं जानता है। इनके प्रोग्राम में कौन आएगा? फिर भी मैंने फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार को उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया और कमानी ऑडिटोरियम बुक करवाया। दिलीप कुमार को देखने के लिए पूरा ऑडिटोरियम भर गया। उनको एक नजर देखने के लिए लोग बाहर तक खड़े थे। मंच पर दिलीप कुमार आए और जगजीत सिंह का हारमोनियम बजाकर उन्होंने गजल गाई। इसके बाद जगजीत सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मेरी कहानी ‘ना मारो’ पर एक टीवी धारावाहिक बन रहा था।
उस धारावाहिक का नाम था ‘दूसरा केवल’ और उसके डायरेक्टर लेख टंडन थे। जब मैं उनसे मिलने के लिए जा रही थी, वहां लड़के-लड़कियों की भीड़ लगी हुई थी। उसी दौरान मुझे एक लड़का दिखाई दिया, जिसके गाल में डिंपल पड़ रहा था। मैंने लेख टंडन को वह लड़का दिखाया, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। फिर भी मैं उस लड़के का हाथ पकड़कर उनके पास ले गई और कहा कि एक बार इसे देख लें। इस तरह धारावाहिक ‘दूसरा केवल’ के लिए शाहरुख खान का चयन हो गया जबकि सभी लोग यही जानते हैं कि शाहरुख खान का पहला धारावाहिक ‘फौजी’ है।
और धीरूभाई अंबानी?
मुंबई में मेरी मुलाकात धीरूभाई अंबानी से हुई थी। उस समय वह एक छोटे स्तर के व्यापारी थे, लेकिन बेहद सज्जन आदमी थे। मैं ‘रूपी ट्रेड’ पत्रिका की संपादक थी, जो मॉस्को के लिए प्रकाशित की जाती थी। एक बार जब मैं मॉस्को गई और वहां की रेजनो- एक्सपोर्ट नामक संस्था की डायरेक्टर से मिली, तो मैंने धीरूभाई द्वारा भेजे गए रेशमी कपड़ों की कतरनों के सैंपल दिखाए। वे उन्हें बहुत पसंद आए और उन्होंने करोड़ों मीटर रेशमी कपड़े की आपूर्ति का ऑर्डर दे दिया। इस सौदे से उन्हें भारी मुनाफा हुआ और उसी पूंजी से अपने पहले कारखाने की नींव रखी। मुझे इसी बात की खुशी है कि मैंने अपने जीवन में अच्छे कर्म किए हैं।
बचपन से ही अमृता प्रीतम आपकी चहेती रही हैं। आप उनकी बातों को कभी टालती नहीं थीं - क्यों?
यह बात तो सच है। उस समय मैं उनकी हर बात मानती थी। लेकिन जब उन्होंने अपने पति को घर से बाहर निकाल दिया और कहा कि बच्चे मेरे पास रहेंगे और उनके सभी खर्चे आपको ही उठाने हैं, तब से मैं उनकी बातें टालने लगी। जब बच्चे बीमार पड़ते थे, तब भी प्रीतम सिंह ही उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया करते थे। उनके इस निर्णय से उनके पिता और भाई भी नाराज हो गए। सभी यही कहते थे कि एक औरत के लिए अपनी जिंदगी बर्बाद कर दी। लेकिन उन्होंने इसके बारे में कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की बल्कि वह कहते थे कि उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है।
अजमल कसाब को लेकर आपने जो कार्य किया है, लोग कहते हैं कि वैसा तो हमारी सरकार भी नहीं कर सकी...
कसाब पाकिस्तानी नागरिक था, लेकिन पाकिस्तान की सरकार इस सचाई को नकार रही थी। जब मैंने उसे टीवी पर बोलते देखा, तो उसके बोलने के लहजे से मुझे पंजाबी भाषा की झलक मिली। दोनों देशों की पंजाबी बोलियों में फर्क होता है। वहां अधिक शुद्ध पंजाबी बोली जाती है। मैंने पाकिस्तान के प्रसिद्ध पत्रकार हामिद मीर को फोन किया और कहा कि यह बच्चा तुम्हारे पंजाब के किसी गांव का लग रहा है। इसका पता लगाओ।
हामिद मीर, जो जिओ टीवी के एंकर हैं, अपने एक कैमरामैन के साथ कसाब की तस्वीर लेकर गांव-गांव ढूंढने लगे। अंत में एक आदमी मिला, जो बोला, अरे! यह तो मेरा बेटा है। दो साल से घर नहीं आया है। लगता है किसी बुरी संगत में पड़ गया है। हामिद मीर ने उस व्यक्ति का इंटरव्यू रेकॉर्ड किया और जिओ टीवी पर प्रसारित कर दिया। इसके बाद पाकिस्तान की बोलती बंद हो गई।
हरी-भरी दिल्ली को आपने कंक्रीट के जंगल में तब्दील होते देखा है, क्या कहेंगी?
मैंने उस दिल्ली को देखा है जो कभी पेड़-पौधों और हरियाली से भरी रहती थी। सिरीफोर्ट के पास घने जंगल में तरह-तरह के परिंदों के घोंसले होते थे। वहां बाघ, सफेद उल्लू और मोर रहते थे। लेकिन एक दिन विकास के नाम पर वहां हजारों पेड़ काट दिए गए। मैंने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जितने पेड़ काटे गए हैं, उतने ही पेड़ लगाए जाएं। इसके लिए मैंने लाखों रुपये खर्च किए थे।
खुशवंत सिंह ने राज्यसभा का बंगला क्यों अस्वीकार कर दिया था? आपकी किताब में एक याद उसकी भी तो है...
जब वह राज्यसभा के सदस्य बने तो उन्हें एक बहुत बडा बंगला अलॉट हुआ। वह उनके घर से दस गुणा बड़ा था। लेकिन उन्होंने उस बंगले में जाने से साफ इनकार कर दिया। जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह अपने पुराने घर में ही खुश हैं। उन्होंने वह बंगला अपनी पत्नी के दर्जी को रहने के लिए दे दिया, जिसके नौ बच्चे थे।
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