नई दिल्ली: भारत लगातार ग्लोबल साउथ देशों के साथ अपनी भागीदारी बढ़ाने पर जोर दे रहा है। यह ऐसे समय में हो रहा है, जब भारत को इसके अगुवा के रूप में देखा जा रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसी महीने अफ्रीकी देशों की प्रस्तावित यात्रा को लेकर भी यही नजरिया है। भारत की ओर से हाल के समय में ऐसे कई मौके देखने को मिले हैं, जिसमें स्पष्ट तौर पर यह बात सामने आई है कि भारत दुनिया के गरीब देशों की अगुवाई करने की जिम्मेदारी लेने को तैयार है। वैसे भारत के अपने हित के हिसाब से देखा जाए तो ऐसा होने पर अमेरिका के साथ-साथ चीन से निपटना भी ज्यादा आसान हो सकता है। क्योंकि, भारत की आवाज में दुनिया के अनेकों देशों की आवाज शामिल होगी।
लीडरशिप की राह पर भारत
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा है कि भारत को सिर्फ पश्चिमी देशों के पीछे चलने के बजाए, ऐसे इकोनॉमिक मॉडल विकसित करने चाहिए, जो हमारी जरूरतों के अनुसार हों। इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जो दिया है कि भारत ऐसे फ्रेमवर्क तैयार करे, जिससे निरंतर विकास सुनिश्चित हो, क्योंकि इसे ग्लोबल साउथ की भी अगुवाई करनी है। इसी तरह भारत के श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया ने एक कार्यक्रम में कहा है कि खासकर बीते एक दशक में भारत का जो विकास पथ रहा है, वह ग्लोबल साउथ के लिए विकास के मॉडल का एक नजीर पेश करता है।
ग्लोबल साउथ क्या है
इससे पहले सितंबर में ग्लोबल साउथ और इसकी अगुवाई में भारत की भूमिका पर चर्चा तब शुरू हुई थी, जब विदेश मंत्री एस जयंशकर ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र आम सभा (UNGA) के दौरान ही ग्लोबल साउथ देशों की एक उच्च-स्तरीय बैठक बुला ली। इस बैठक का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र (UN) में सुधार और उसमें विकासशील देशों की प्राथमिकता को तरजीह दिया जाना था। ग्लोबल साउथ में लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के गरीब और विकासशील देशों की परिकल्पना की गई है। इसी वजह से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के ग्लोब के दक्षिणी हिस्से में होते हुए भी उन्हें इसमें शामिल नहीं किया जाता।
ग्लोबल साउथ और भारत
इस समय भारत एक तरह से ग्लोब के दक्षिणी हिस्सों के विकासशील, गरीब देशों और उत्तरी हिस्से के अमीर देशों के बीच जलवायु परिवर्तन, व्यापार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मध्यस्थता की प्रमुख भूमिका निभा रहा है। इसने इन देशों के बीच खुद को विश्व बंधु के तौर पर पेश किया है, जो दुनिया के देशों के बीच समावेशिता की वकालत करता है। चीन के लिए इसका हिस्सा होते हुए भी जियोपॉलिटिक्स की वजह से इस भूमिका में आना आसान नहीं।
भारत की अबतक की भूमिका
बीते वर्षों में भारत ग्लोबल साउथ का महज प्रवक्ता ही नहीं बना है, बल्कि इसने महत्वपूर्ण वैश्विक मंचों पर इसके लिए दमदार और बहुत प्रभावशाली भूमिका निभाकर इसके देशों के बीच एक भरोसा भी हासिल किया है। मसलन, 2023 में जब भारत के पास जी20 की अध्यक्षता (G20 Presidency) थी, तब इसने अफ्रीकी यूनियन को इसमें परमानेंट मेंबर के तौर पर शामिल करना सुनिश्चित करवाया। इसी तरह इसने ब्रिक्स (BRICS), क्वाड (Quad) और वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट में सक्रिय भूमिका निभाकर भी विकसित और विकासशील देशों के बीच एक पुल वाली भूमिका निभाई है।
वैश्विक मंचों में सुधारों की वकालत
इस समय दुनिया भर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), विश्व बैंक (World Bank) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में सुधारों की मांग उठ रही है और भारत इसके लिए विकासशील देशों की आवाज बना हुआ है। जलवायु परिवर्तन को लेकर पूरी दुनिया में चिंता है और भारत ने पवन और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनकर पिछड़े देशों के बीच बहुत ही राहत भरी उम्मीद जगाई है।
विकसित होते भारत की ताकत
इसी तरह से डिटिजल और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत की प्रगति देखकर दुनिया दंग है, तो इसकी लगातार मजबूत होती अर्थव्यवस्था का लोहा विकसित देश भी मानने को मजबूर हुए हैं। भारत अपनी रक्षा नीति पर चलते हुए दुनिया भर के देशों के साथ कूटनीति निभाने में जो तालमेल बिठाया है, उसने शक्तिशाली मुल्कों का भी इसके प्रति नजरिया बदलने को मजबूर किया है। ग्लोबल साउथ में यूं तो चीन भी आता है, लेकिन दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत की बात ही कुछ और है। न तो चीन की तरह इसकी कूटनीति आक्रामक है और न ही इसके पीछे आने वाले देशों के लिए इसको लेकर किसी तरह से आशंकित रहने की वजह है।
लीडरशिप की राह पर भारत
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा है कि भारत को सिर्फ पश्चिमी देशों के पीछे चलने के बजाए, ऐसे इकोनॉमिक मॉडल विकसित करने चाहिए, जो हमारी जरूरतों के अनुसार हों। इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जो दिया है कि भारत ऐसे फ्रेमवर्क तैयार करे, जिससे निरंतर विकास सुनिश्चित हो, क्योंकि इसे ग्लोबल साउथ की भी अगुवाई करनी है। इसी तरह भारत के श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया ने एक कार्यक्रम में कहा है कि खासकर बीते एक दशक में भारत का जो विकास पथ रहा है, वह ग्लोबल साउथ के लिए विकास के मॉडल का एक नजीर पेश करता है।
ग्लोबल साउथ क्या है
इससे पहले सितंबर में ग्लोबल साउथ और इसकी अगुवाई में भारत की भूमिका पर चर्चा तब शुरू हुई थी, जब विदेश मंत्री एस जयंशकर ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र आम सभा (UNGA) के दौरान ही ग्लोबल साउथ देशों की एक उच्च-स्तरीय बैठक बुला ली। इस बैठक का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र (UN) में सुधार और उसमें विकासशील देशों की प्राथमिकता को तरजीह दिया जाना था। ग्लोबल साउथ में लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के गरीब और विकासशील देशों की परिकल्पना की गई है। इसी वजह से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के ग्लोब के दक्षिणी हिस्से में होते हुए भी उन्हें इसमें शामिल नहीं किया जाता।
ग्लोबल साउथ और भारत
इस समय भारत एक तरह से ग्लोब के दक्षिणी हिस्सों के विकासशील, गरीब देशों और उत्तरी हिस्से के अमीर देशों के बीच जलवायु परिवर्तन, व्यापार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मध्यस्थता की प्रमुख भूमिका निभा रहा है। इसने इन देशों के बीच खुद को विश्व बंधु के तौर पर पेश किया है, जो दुनिया के देशों के बीच समावेशिता की वकालत करता है। चीन के लिए इसका हिस्सा होते हुए भी जियोपॉलिटिक्स की वजह से इस भूमिका में आना आसान नहीं।
भारत की अबतक की भूमिका
बीते वर्षों में भारत ग्लोबल साउथ का महज प्रवक्ता ही नहीं बना है, बल्कि इसने महत्वपूर्ण वैश्विक मंचों पर इसके लिए दमदार और बहुत प्रभावशाली भूमिका निभाकर इसके देशों के बीच एक भरोसा भी हासिल किया है। मसलन, 2023 में जब भारत के पास जी20 की अध्यक्षता (G20 Presidency) थी, तब इसने अफ्रीकी यूनियन को इसमें परमानेंट मेंबर के तौर पर शामिल करना सुनिश्चित करवाया। इसी तरह इसने ब्रिक्स (BRICS), क्वाड (Quad) और वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट में सक्रिय भूमिका निभाकर भी विकसित और विकासशील देशों के बीच एक पुल वाली भूमिका निभाई है।
वैश्विक मंचों में सुधारों की वकालत
इस समय दुनिया भर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), विश्व बैंक (World Bank) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में सुधारों की मांग उठ रही है और भारत इसके लिए विकासशील देशों की आवाज बना हुआ है। जलवायु परिवर्तन को लेकर पूरी दुनिया में चिंता है और भारत ने पवन और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनकर पिछड़े देशों के बीच बहुत ही राहत भरी उम्मीद जगाई है।
विकसित होते भारत की ताकत
इसी तरह से डिटिजल और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत की प्रगति देखकर दुनिया दंग है, तो इसकी लगातार मजबूत होती अर्थव्यवस्था का लोहा विकसित देश भी मानने को मजबूर हुए हैं। भारत अपनी रक्षा नीति पर चलते हुए दुनिया भर के देशों के साथ कूटनीति निभाने में जो तालमेल बिठाया है, उसने शक्तिशाली मुल्कों का भी इसके प्रति नजरिया बदलने को मजबूर किया है। ग्लोबल साउथ में यूं तो चीन भी आता है, लेकिन दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत की बात ही कुछ और है। न तो चीन की तरह इसकी कूटनीति आक्रामक है और न ही इसके पीछे आने वाले देशों के लिए इसको लेकर किसी तरह से आशंकित रहने की वजह है।
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