नई दिल्ली/पटना: बिहार में 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग संपन्न हो गई है। शाम छह बजे तक 64.46% की बंपर वोटिंग हुई, जबकि कुछ जगहों पर उसके बाद भी वोटिंग जारी रहने की खबरें हैं। वोटिंग के बाद जैसा कि हर बार होता है हर पार्टी ने बढ़-चढ़कर अपने पक्ष में दावे करने शुरू कर दिए हैं।
इस बार क्यों बढ़ा वोट प्रतिशत?
इस बार जनता खुलकर बाहर निकली और जमकर वोटिंग की। हालांकि मतदान का इस तरह बढ़ना लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा ही कहा जा सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि इस बार इतनी ज़्यादा वोटिंग कैसे हो गई। इसके कुछ कारण देखें तो यह हो सकते हैं–
–एक तो छठ के मौके पर त्यौहार मनाने के लिए बड़ी संख्या में बिहार के लोग देशभर से वापस बिहार आए हुए थे। छठ के बाद तुरंत चुनाव होने से मतदाताओं की संख्या इसलिए भी बढ़ गई है।
–SIR के अंतर्गत हुई मतदाता सूची के रिवीजन से भी कुछ प्रतिशत मतदान बढ़ा है।
–बिहार में आजकल सरकार बनाने में पुरुषों की बजाय महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। पिछले कुछ समय से महिलाएं चुनाव में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगी हैं। महिलाएं इस बार भी भारी संख्या में वोट के लिए निकलीं हैं।
ये कुछ कारण हैं जो बढ़ी हुई वोटिंग के लिए जिम्मेदार कहे जा सकते हैं।
किसके जीतने की संभावना है?बहरहाल, अब सवाल उठता है कि बढ़ी हुई वोट पर्सेंटेज किसके पक्ष में जायेगी। हर कोई अपनी ढपली अपना राग अलाप रहा है। ज़रा देखें तो बढ़ी हुई वोटिंग किसका राजतिलक करवा सकती है।
नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की संभावनाएं: नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की संभावनाएं बनती हैं क्योंकि महिलाओं को 10 हज़ार रुपए देने की घोषणा इन्होंने की है।
ऐसा भी देखा गया है कि अक्सर नीतीश कुमार के पक्ष में ही रहता दिखाई देता रहा है। इसके कुछ कारण रहे हैं:–
तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की संभावनाएंइनके जीतने के कुछ कारण ये हो सकते हैं–
ये दोनों घोषणाएं फायदे का सौदा नज़र आती हैं और वोटरों को लुभा सकती हैं। लेकिन, यह भी उतना ही सच और प्रैक्टिकल है कि हर घर में एक सरकारी नौकरी देने के लिए तकरीबन 12 लाख करोड़ रुपए चाहिए होंगे। जबकि बिहार का तो कुल बजट ही 3 लाख करोड़ का है। फिर, पुरानी आरजेडी के नेतृत्व वाली सरकारों के शासनकाल में कानून–व्यवस्था के हालात इनकी सरकार बनने का पुख्ता दावा करते दिखाई नहीं देते।
इसके अलावा, अंदरखाने खबर यह भी है कि जिस तरह कांग्रेस को कूटनीतिक तरीके से मजबूर करके मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव के नाम पर हां करवा ली गई, उससे कांग्रेस खुश नहीं है। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस तेजस्वी को हराने या मुख्यमंत्री न बनने देने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है। सच तो जल्दी ही सामने आ जाएगा, जब चुनाव परिणाम सामने आएंगे तो।
निष्कर्ष में कुछ बातें
निष्कर्ष के रूप में देखें तो बिहार के पहले चरण में 64.46 प्रतिशत की बंपर वोटिंग से कुछ बातें निष्कर्ष के रूप में सामने आती हैं। पहला निष्कर्ष, पिछले कुछ समय से वोट चोरी को लेकर सभी विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस पार्टी काफी मुखर थी। कहा जा रहा था कि बीजेपी की सरकार वोटों की चोरी करवाती है, फर्जी वोट डलवाती है और चुनाव जीतने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाती है। हाल ही में राहुल गांधी ने चुनावी धांधलियों के कई सुबूत एक प्रेस कांफ्रेंस में दिखा रहे थे। यह भी कहा गया कि SIR चुनावों में धांधली के लिए किया जा रहा है।
आरोप–प्रत्यारोप का आलम इतना जबरदस्त था कि चुनाव आयोग को भी लपेटते हुए आरोप लगाए गए कि चुनाव आयोग केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रहा है। यहां तक कि एक बड़ी पार्टी के बहुचर्चित नेता ने मुख्य चुनाव आयुक्त को देख लेने की धमकी भी दी थी। लेकिन, अब जब इतनी बंपर वोटिंग हुई तो सवाल उठता है कि SIR पर लगाए जा रहे आरोप कहां गए? इतनी बड़ी संख्या में जो मतदान हुआ तो क्या यह SIR द्वारा की गई धांधली का परिणाम है?
यह बात भी दीगर है कि पहले चरण के चुनाव के बाद जो विपक्ष अपनी जीत के दावे कर गदगद हो रहा है, कल अगर वह जीत न पाया तो यही विपक्ष इसे चुनावी धांधली का परिणाम बताने से नहीं चूकेगा जैसा कि हम ईवीएम के मामले में देखते आए हैं।
दूसरा निष्कर्ष यह निकलता है कि पहले चरण के मतदान के बाद जो ट्रेंड देखने में आया है, वह बड़ा ही विचित्र है। मौजूदा सत्ता पक्ष इतनी बड़ी संख्या में हुए मतदान को अपनी जीत बता सकता है। पर, बिहार के पुराने चुनावों पर एक नज़र डालें तो पता लगेगा कि 2005 में 5% और 2010 में 10 प्रतिशत वोट प्रतिशत बढ़ा था। पर, उसके साथ ही ऐसा भी देखा गया है कि जब भी बिहार में वोट प्रतिशत बढ़ा है उसका परिणाम एंटी–इनकंबैंसी के रूप में देखने में आया है। अगर यह कोई पैमाना है तो इस बार की वोटिंग 64.46 % हुई है। यदि यह बात उस रिवाज़ या ट्रेंड को कायम रखती है तो परिणाम कुछ भी हो सकते हैं।
इस बार क्यों बढ़ा वोट प्रतिशत?
इस बार जनता खुलकर बाहर निकली और जमकर वोटिंग की। हालांकि मतदान का इस तरह बढ़ना लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा ही कहा जा सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि इस बार इतनी ज़्यादा वोटिंग कैसे हो गई। इसके कुछ कारण देखें तो यह हो सकते हैं–
–एक तो छठ के मौके पर त्यौहार मनाने के लिए बड़ी संख्या में बिहार के लोग देशभर से वापस बिहार आए हुए थे। छठ के बाद तुरंत चुनाव होने से मतदाताओं की संख्या इसलिए भी बढ़ गई है।
–SIR के अंतर्गत हुई मतदाता सूची के रिवीजन से भी कुछ प्रतिशत मतदान बढ़ा है।
–बिहार में आजकल सरकार बनाने में पुरुषों की बजाय महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। पिछले कुछ समय से महिलाएं चुनाव में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगी हैं। महिलाएं इस बार भी भारी संख्या में वोट के लिए निकलीं हैं।
ये कुछ कारण हैं जो बढ़ी हुई वोटिंग के लिए जिम्मेदार कहे जा सकते हैं।
किसके जीतने की संभावना है?बहरहाल, अब सवाल उठता है कि बढ़ी हुई वोट पर्सेंटेज किसके पक्ष में जायेगी। हर कोई अपनी ढपली अपना राग अलाप रहा है। ज़रा देखें तो बढ़ी हुई वोटिंग किसका राजतिलक करवा सकती है।
नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की संभावनाएं: नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की संभावनाएं बनती हैं क्योंकि महिलाओं को 10 हज़ार रुपए देने की घोषणा इन्होंने की है।
ऐसा भी देखा गया है कि अक्सर नीतीश कुमार के पक्ष में ही रहता दिखाई देता रहा है। इसके कुछ कारण रहे हैं:–
- शराबबंदी की घोषणा।
- कानून–व्यवस्था में सुधार होने से महिलाओं को ज़्यादा सुरक्षा और अधिकार।
- और अब 10 हजार रुपए देखने की घोषणा तो है ही।
तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की संभावनाएंइनके जीतने के कुछ कारण ये हो सकते हैं–
- हर घर एक सरकारी नौकरी देने का वायदा।
- माई–बहन योजना के तहत महिलाओं को एकमुश्त 30 हजार देने की घोषणा।
ये दोनों घोषणाएं फायदे का सौदा नज़र आती हैं और वोटरों को लुभा सकती हैं। लेकिन, यह भी उतना ही सच और प्रैक्टिकल है कि हर घर में एक सरकारी नौकरी देने के लिए तकरीबन 12 लाख करोड़ रुपए चाहिए होंगे। जबकि बिहार का तो कुल बजट ही 3 लाख करोड़ का है। फिर, पुरानी आरजेडी के नेतृत्व वाली सरकारों के शासनकाल में कानून–व्यवस्था के हालात इनकी सरकार बनने का पुख्ता दावा करते दिखाई नहीं देते।
इसके अलावा, अंदरखाने खबर यह भी है कि जिस तरह कांग्रेस को कूटनीतिक तरीके से मजबूर करके मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव के नाम पर हां करवा ली गई, उससे कांग्रेस खुश नहीं है। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस तेजस्वी को हराने या मुख्यमंत्री न बनने देने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है। सच तो जल्दी ही सामने आ जाएगा, जब चुनाव परिणाम सामने आएंगे तो।
निष्कर्ष में कुछ बातें
निष्कर्ष के रूप में देखें तो बिहार के पहले चरण में 64.46 प्रतिशत की बंपर वोटिंग से कुछ बातें निष्कर्ष के रूप में सामने आती हैं। पहला निष्कर्ष, पिछले कुछ समय से वोट चोरी को लेकर सभी विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस पार्टी काफी मुखर थी। कहा जा रहा था कि बीजेपी की सरकार वोटों की चोरी करवाती है, फर्जी वोट डलवाती है और चुनाव जीतने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाती है। हाल ही में राहुल गांधी ने चुनावी धांधलियों के कई सुबूत एक प्रेस कांफ्रेंस में दिखा रहे थे। यह भी कहा गया कि SIR चुनावों में धांधली के लिए किया जा रहा है।
आरोप–प्रत्यारोप का आलम इतना जबरदस्त था कि चुनाव आयोग को भी लपेटते हुए आरोप लगाए गए कि चुनाव आयोग केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रहा है। यहां तक कि एक बड़ी पार्टी के बहुचर्चित नेता ने मुख्य चुनाव आयुक्त को देख लेने की धमकी भी दी थी। लेकिन, अब जब इतनी बंपर वोटिंग हुई तो सवाल उठता है कि SIR पर लगाए जा रहे आरोप कहां गए? इतनी बड़ी संख्या में जो मतदान हुआ तो क्या यह SIR द्वारा की गई धांधली का परिणाम है?
यह बात भी दीगर है कि पहले चरण के चुनाव के बाद जो विपक्ष अपनी जीत के दावे कर गदगद हो रहा है, कल अगर वह जीत न पाया तो यही विपक्ष इसे चुनावी धांधली का परिणाम बताने से नहीं चूकेगा जैसा कि हम ईवीएम के मामले में देखते आए हैं।
दूसरा निष्कर्ष यह निकलता है कि पहले चरण के मतदान के बाद जो ट्रेंड देखने में आया है, वह बड़ा ही विचित्र है। मौजूदा सत्ता पक्ष इतनी बड़ी संख्या में हुए मतदान को अपनी जीत बता सकता है। पर, बिहार के पुराने चुनावों पर एक नज़र डालें तो पता लगेगा कि 2005 में 5% और 2010 में 10 प्रतिशत वोट प्रतिशत बढ़ा था। पर, उसके साथ ही ऐसा भी देखा गया है कि जब भी बिहार में वोट प्रतिशत बढ़ा है उसका परिणाम एंटी–इनकंबैंसी के रूप में देखने में आया है। अगर यह कोई पैमाना है तो इस बार की वोटिंग 64.46 % हुई है। यदि यह बात उस रिवाज़ या ट्रेंड को कायम रखती है तो परिणाम कुछ भी हो सकते हैं।
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