नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि जुर्म का मकसद साबित न होना अहम नहीं है। अगर बाकी सारे सबूत मजबूत हैं तो आरोपी को सजा दी जा सकती है। शीर्ष अदालत ने कर्नाटक में 2006 में हुई हत्या के एक मामले में यह टिप्पणी की। दोषी युवक को निचली अदालत ने दोषी माना था, जिसे हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने युवक को राहत नहीं दी और उसकी याचिका खारिज कर दी।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने उस अर्जी पर सुनवाई की, जिसमें आरोपी ने मृतक की गोली मारकर हत्या की थी। अभियोजन पक्ष ने 'अंतिम बार साथ देखा गया' सिद्धांत, केस से जुड़े सामानों की बरामदगी और अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोष सिद्ध किया। अपीलकर्ता ने यह तर्क देते हुए सजा को चुनौती दी कि अभियोजन पक्ष हत्या के पीछे के उद्देश्य को साबित नहीं कर सका। जब हत्या के पीछे का मकसद ही नहीं है तो दोषसिद्धि नहीं होनी चाहिए। अभियोजन पक्ष ने कहा कि मृतक की ओर से 4,000 रुपये का कर्ज न लौटाना और पैसे मांगने पर अपीलकर्ता को अपमानित करना ही हत्या का कारण था।
सख्त प्रमाण आवश्यक नहींशीर्ष अदालत ने अभियोजन पक्ष के इस तर्क को स्वीकार किया कि आरोपी के मन में मृतक के प्रति रोष था। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर उनके बीच कोई वित्तीय लेनदेन नहीं भी था, तब भी यह अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर नहीं करता, क्योंकि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है, जिसमें उद्देश्य का सख्त प्रमाण आवश्यक नहीं होता। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति का उद्देश्य साबित करना कठिन होता है, क्योंकि वह व्यक्ति के मन के भीतर छिपा रहता है और अगर वह स्वयं कोई खुली घोषणा न करे, तो उसके व्यवहार और क्रियाकलापों से ही उद्देश्य का अनुमान लगाया जा सकता है।
क्या था यह मामलाकेस कर्नाटक के धारवाड़ का है। अभियोजन पक्ष के मुताबिक अपीलकर्ता चेतन और मृतक विक्रम सिंडे मित्र थे। मृतक ने उधार लिए हुए रुपये अपीलकर्ता को वापस नहीं लौटाई थी। 10 जुलाई 2006 को रात साढ़े 8 बजे अपीलकर्ता ने अपने दादा की बंदूक और कारतूस यह कहकर लिए कि वह शिकार पर जा रहा है। फिर वह मृतक को अपने साथ बाइक पर बैठाकर शाहपुर गांव के गन्ने के खेत में ले गया। आरोप है कि उसी रात करीब 10 बजे उसने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी।
जुड़नी चाहिए साक्ष्यों की कड़ियांसुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब यह कानून स्थापित हो चुका है कि उद्देश्य सिद्ध करना अभियोजन के मामले को बल देता है, लेकिन इसका अभाव अभियोजन के मामले के लिए घातक नहीं होता। अगर केस परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है तो साक्ष्यों की कड़ियां जुड़नी चाहिए। मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है जो नजीर बनेगी।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने उस अर्जी पर सुनवाई की, जिसमें आरोपी ने मृतक की गोली मारकर हत्या की थी। अभियोजन पक्ष ने 'अंतिम बार साथ देखा गया' सिद्धांत, केस से जुड़े सामानों की बरामदगी और अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोष सिद्ध किया। अपीलकर्ता ने यह तर्क देते हुए सजा को चुनौती दी कि अभियोजन पक्ष हत्या के पीछे के उद्देश्य को साबित नहीं कर सका। जब हत्या के पीछे का मकसद ही नहीं है तो दोषसिद्धि नहीं होनी चाहिए। अभियोजन पक्ष ने कहा कि मृतक की ओर से 4,000 रुपये का कर्ज न लौटाना और पैसे मांगने पर अपीलकर्ता को अपमानित करना ही हत्या का कारण था।
सख्त प्रमाण आवश्यक नहींशीर्ष अदालत ने अभियोजन पक्ष के इस तर्क को स्वीकार किया कि आरोपी के मन में मृतक के प्रति रोष था। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर उनके बीच कोई वित्तीय लेनदेन नहीं भी था, तब भी यह अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर नहीं करता, क्योंकि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है, जिसमें उद्देश्य का सख्त प्रमाण आवश्यक नहीं होता। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति का उद्देश्य साबित करना कठिन होता है, क्योंकि वह व्यक्ति के मन के भीतर छिपा रहता है और अगर वह स्वयं कोई खुली घोषणा न करे, तो उसके व्यवहार और क्रियाकलापों से ही उद्देश्य का अनुमान लगाया जा सकता है।
क्या था यह मामलाकेस कर्नाटक के धारवाड़ का है। अभियोजन पक्ष के मुताबिक अपीलकर्ता चेतन और मृतक विक्रम सिंडे मित्र थे। मृतक ने उधार लिए हुए रुपये अपीलकर्ता को वापस नहीं लौटाई थी। 10 जुलाई 2006 को रात साढ़े 8 बजे अपीलकर्ता ने अपने दादा की बंदूक और कारतूस यह कहकर लिए कि वह शिकार पर जा रहा है। फिर वह मृतक को अपने साथ बाइक पर बैठाकर शाहपुर गांव के गन्ने के खेत में ले गया। आरोप है कि उसी रात करीब 10 बजे उसने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी।
जुड़नी चाहिए साक्ष्यों की कड़ियांसुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब यह कानून स्थापित हो चुका है कि उद्देश्य सिद्ध करना अभियोजन के मामले को बल देता है, लेकिन इसका अभाव अभियोजन के मामले के लिए घातक नहीं होता। अगर केस परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है तो साक्ष्यों की कड़ियां जुड़नी चाहिए। मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है जो नजीर बनेगी।
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