लखनऊ: उत्तर प्रदेश में धड़ल्ले से पराली जलाई रही है। दो साल में पराली जलाने की घटनाएं काफी बढ़ गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। इससे प्रदेश के अफसरों की चिंताएं बढ़ गई है। कृषि विभाग ने पराली जलाने वालों पर कार्रवाई भी शुरू कर दी है, उनको नोटिस दिया जा रहा है और वसूली भी की जा रही है।
सितंबर और अक्टूबर धान की कटाई का सीजन होता है। धान कटने के बाद किसान पराली जलाते है। इसी दौरान सर्दियां शुरू होती है। ऐसे में उससे उठने वाला धुआं प्रदूषण का बढ़ा कारण बनता है और हर साल यह चर्चा का विषय रहता है। पिछले कुछ वर्षों में सरकारों ने इन घटनाओं को रोकने के लिए कई प्रयास किए है। यही वजह है कि यूपी में 2022 और 2023 में पराली जलाने की घटनाओं में तेजी से कमी आई थी।
आईसीएआर की 21 अक्टूबर तक की रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान 2022 में पराली जलाने की घटनाएं 660 से घटकर 204 रह गई थी। 2023 में 423 घटनाएं हुई थीं। उसके बाद 2024 में अचानक से घटनाएं बढ़कर 723 हो गई। इस साल अब तक 660 घटनाएं सामने आ चुकी है। पिछले साल से तो पराली जलाने की घटनाएं कम हुई है लेकिन फिर भी चिंताजनक है।
सक्रिय हुए अफसर, जारी हो रही नोटिसपराली जलाने की इतनी घटनाओं को देखते हुए कृषि विभाग भी सक्रिय हो गया है। इसको लेकर गुरुवार को अधिकारियों की एक बैठक भी हुई। कृषि निदेशक डॉ. पंकज कुमार त्रिपाठी ने बताया कि पिछले साल के मुकाबले घटनाएं कुछ कम हुई है। फिर भी लगातार इनको रोकने के प्रयास किए जा रहे है। पराली जलाने वालो को नोटिस दी जा रही है। उनसे वसूली के भी निर्देश दे दिए गए है। किसानों को जागरूक भी किया जा रहा है। घटनाओं पर नजर रखने के लिए नोडल अफसरो की तैनाती की गई है। प्रदेश स्तर से भी अधिकारी जिलों में भेजे गए है। जिला और प्रदेश स्तर पर कंट्रोल रूम बनाया गया है। यहां सूचनाएं दर्ज की जा रही है। घटनाएं रोकने में विफल अफसरों और कर्मचारियों पर भी कार्रवाई की जाएगी।
फिर क्यों बढ़ गई घटनाएं?कई जागरूकता प्रयासों और सख्त कार्रवाई से पिछले कुछ वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई थी। सरकार ने 2021-22 में काफी सख्त ऐक्शन लिया था। बड़ी संख्या में किसानों पर एफआईआर भी हुई थी। इससे घटनाएं अचानक कम हो गई थी, लेकिन बाद में किसानों ने इसका काफी विरोध किया। वैसे भी किसान अन्य मुद्दों को लेकर आंदोलित थे। ऐसे में दबाव में सरकार ने एफआईआर वापस भी ली।
अब अधिकारी एफआईआर जैसी कार्रवाई से बचते है। जागरूकता अभियान चलाकर घटनाओं को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। पराली से खाद बनाने के लिए तकनीकी सहायता की बात भी हुई, लेकिन जमीनी स्तर पर योजना का लाभ नहीं पहुंच सका। यही वजह है कि घटनाएं फिर अचानक बढ़ गई। अब नोटिस और वसूली के जरिए अधिकारी दबाव बनाने का प्रयास कर रहे है।
सितंबर और अक्टूबर धान की कटाई का सीजन होता है। धान कटने के बाद किसान पराली जलाते है। इसी दौरान सर्दियां शुरू होती है। ऐसे में उससे उठने वाला धुआं प्रदूषण का बढ़ा कारण बनता है और हर साल यह चर्चा का विषय रहता है। पिछले कुछ वर्षों में सरकारों ने इन घटनाओं को रोकने के लिए कई प्रयास किए है। यही वजह है कि यूपी में 2022 और 2023 में पराली जलाने की घटनाओं में तेजी से कमी आई थी।
आईसीएआर की 21 अक्टूबर तक की रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान 2022 में पराली जलाने की घटनाएं 660 से घटकर 204 रह गई थी। 2023 में 423 घटनाएं हुई थीं। उसके बाद 2024 में अचानक से घटनाएं बढ़कर 723 हो गई। इस साल अब तक 660 घटनाएं सामने आ चुकी है। पिछले साल से तो पराली जलाने की घटनाएं कम हुई है लेकिन फिर भी चिंताजनक है।
सक्रिय हुए अफसर, जारी हो रही नोटिसपराली जलाने की इतनी घटनाओं को देखते हुए कृषि विभाग भी सक्रिय हो गया है। इसको लेकर गुरुवार को अधिकारियों की एक बैठक भी हुई। कृषि निदेशक डॉ. पंकज कुमार त्रिपाठी ने बताया कि पिछले साल के मुकाबले घटनाएं कुछ कम हुई है। फिर भी लगातार इनको रोकने के प्रयास किए जा रहे है। पराली जलाने वालो को नोटिस दी जा रही है। उनसे वसूली के भी निर्देश दे दिए गए है। किसानों को जागरूक भी किया जा रहा है। घटनाओं पर नजर रखने के लिए नोडल अफसरो की तैनाती की गई है। प्रदेश स्तर से भी अधिकारी जिलों में भेजे गए है। जिला और प्रदेश स्तर पर कंट्रोल रूम बनाया गया है। यहां सूचनाएं दर्ज की जा रही है। घटनाएं रोकने में विफल अफसरों और कर्मचारियों पर भी कार्रवाई की जाएगी।
फिर क्यों बढ़ गई घटनाएं?कई जागरूकता प्रयासों और सख्त कार्रवाई से पिछले कुछ वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई थी। सरकार ने 2021-22 में काफी सख्त ऐक्शन लिया था। बड़ी संख्या में किसानों पर एफआईआर भी हुई थी। इससे घटनाएं अचानक कम हो गई थी, लेकिन बाद में किसानों ने इसका काफी विरोध किया। वैसे भी किसान अन्य मुद्दों को लेकर आंदोलित थे। ऐसे में दबाव में सरकार ने एफआईआर वापस भी ली।
अब अधिकारी एफआईआर जैसी कार्रवाई से बचते है। जागरूकता अभियान चलाकर घटनाओं को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। पराली से खाद बनाने के लिए तकनीकी सहायता की बात भी हुई, लेकिन जमीनी स्तर पर योजना का लाभ नहीं पहुंच सका। यही वजह है कि घटनाएं फिर अचानक बढ़ गई। अब नोटिस और वसूली के जरिए अधिकारी दबाव बनाने का प्रयास कर रहे है।
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