इस्लामाबाद: इमरान खान के सत्ता से बाहर होने से करीब 6 महीने पहले पाकिस्तान डिप्लोमेटिक वनवास में चला गया था। उसके बाद करीब 3 सालों तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पश्चिमी देशों से संपर्क करीब करीब कटा रहा था। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में ऐसा लग रहा था, मानो पाकिस्तान को सब भूल गये हों। लेकिन अब फील्ड मार्शल असीम मुनीर के नेतृत्व और एक कठपुतली शासन के समर्थन से संचालित पाकिस्तान ने पिछले दस महीनों में अलगाव को तोड़ने, अमेरिकी राष्ट्रपति की तारीफ करके, और इस्लामी जगत के नेता सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को पुनर्जीवित करने उस डिप्लोमेटिक वनवास से बाहर निकलने की कोशिश की है।
पाकिस्तान के वाणिज्य मंत्री जाम कमाल खान और यूरोपीय संघ के एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने पिछले हफ्ते यूरोपीय संघ की जनरलाइज्ड स्कीम ऑफ प्रेफरेंस प्लस (GSP प्लस) के तहत अपनी मौजूदा साझेदारी को मजबूत करने पर सहमति जताई है। यह वही कार्यक्रम है जिसके तहत 2014 से पाकिस्तान को हर साल लगभग 8 अरब डॉलर का आर्थिक लाभ मिलता रहा है। इस्लामाबाद ने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए ओटावा सहित अन्य प्रमुख राजधानियों में भी अपनी सक्रियता बढ़ाई है।
पाकिस्तान की फिर दुनिया से जुड़ने की कोशिश
सबसे बड़ा बदलाव अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्तों में देखा गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने असीम मुनीर की खुलकर तारीफ की है और पाकिस्तान को एक "शांति निर्माता" देश के रूप में पेश करने की कोशिश की है। डोनाल्ड ट्रंप ने कई मौकों पर दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष को रोका और संभावित परमाणु संकट को टाल दिया। अमेरिका और पाकिस्तान के बीच जो नया "पैकेज डील" तैयार हो रहा है, उसमें अमेरिकी सैन्य ठिकाने, क्रिप्टोकरेंसी सहयोग, क्रिटिकल मिनरल्स एक्सप्लोरेशन और तेल क्षेत्रों में अमेरिकी निवेश जैसे प्रावधान शामिल हैं।
यह सौदा पाकिस्तान की सेना के लिए राजनीतिक प्रतिष्ठा बढ़ाने और संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को कुछ राहत देने का माध्यम बताया जा रहा है। इसी कड़ी में पाकिस्तान ने हाल ही में 23 ऑफशोर ऑयल ब्लॉक चार कंसोर्टियम्स को सौंपे हैं, जिनमें तुर्की की तेल कंपनी भी शामिल है। लेकिन यह साफ नहीं है कि पाकिस्तान इन ब्लॉकों से कच्चा तेल प्राप्त कर पाएगा या नहीं। ओमान, संयुक्त अरब अमीरात और ईरान की सीमा से लगे पाकिस्तान के 3,00,000 वर्ग किलोमीटर के अपतटीय क्षेत्र में 1947 से अब तक सिर्फ 18 कुएं खोदे गए हैं।
सऊदी के साथ सौदा करने की पाकिस्तान को कोशिश
इसके अलावा पाकिस्तान ने सऊदी से नये सिरे से जुड़ने की कोशिश की है। पिछले महीने रियाद दौरे के दौरान पाकिस्तान और सऊदी अरब ने इकोनॉमिक कोऑपरेशन फ्रेमवर्क लॉन्च करने की घोषणा की, जिसके तहत ऊर्जा, खनन, कृषि, आईटी, पर्यटन और खाद्य सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में ज्वाइंट प्रोजेक्ट की योजना है। सितंबर में दोनों देशों के बीच हुए रक्षा समझौते में यह भी तय किया गया कि किसी एक देश पर हमला, दोनों पर हमला माना जाएगा। यानि विश्लेषकों का मानना है कि यह पाकिस्तान की कोशिश है कि वह खुद को "इस्लामिक वर्ल्ड के विश्वसनीय साझेदार" के रूप में दोबारा स्थापित करे और सऊदी निवेश के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिरता दे।
लेकिन पाकिस्तान की इन तमाम कोशिशों और असीम मुनीर की चालों को देखकर लगता है कि पाकिस्तान बेचैनी से समझौते कर रहा है। वो भारत के खिलाफ अपनी जनता को जीतते हुए दिखाना चाह रहा है और इसीलिए समझौते के टेबल पर ऐसी चीजें रख रहा है, जो पाकिस्तान के पास असल में है ही नहीं। पाकिस्तान गाजा में भी खुद को एक खिलाड़ी के तौर पर पेश कर रहा है और यहां तक कि गाजा में अपने सैनिकों को भेजने के लिए भी तैयार हो चुका है। इसीलिए एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान 'प्रतिक्रियात्मक' हो रहा है और उसके पास कोई रणनीति नहीं है। एक्सपर्ट्स् के मुताबिक, पाकिस्तान की यह कूटनीतिक कवायद उसकी घरेलू अस्थिरता और सेना-प्रधान शासन को वैधता दिलाने की कोशिश भर है और जियो-पॉलिटिक्स में इस्लामाबाद अभी भी एक "विश्वसनीय साझेदार" के बजाय "अवसरवादी राज्य" के रूप में देखा जा रहा है।
पाकिस्तान के वाणिज्य मंत्री जाम कमाल खान और यूरोपीय संघ के एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने पिछले हफ्ते यूरोपीय संघ की जनरलाइज्ड स्कीम ऑफ प्रेफरेंस प्लस (GSP प्लस) के तहत अपनी मौजूदा साझेदारी को मजबूत करने पर सहमति जताई है। यह वही कार्यक्रम है जिसके तहत 2014 से पाकिस्तान को हर साल लगभग 8 अरब डॉलर का आर्थिक लाभ मिलता रहा है। इस्लामाबाद ने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए ओटावा सहित अन्य प्रमुख राजधानियों में भी अपनी सक्रियता बढ़ाई है।
पाकिस्तान की फिर दुनिया से जुड़ने की कोशिश
सबसे बड़ा बदलाव अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्तों में देखा गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने असीम मुनीर की खुलकर तारीफ की है और पाकिस्तान को एक "शांति निर्माता" देश के रूप में पेश करने की कोशिश की है। डोनाल्ड ट्रंप ने कई मौकों पर दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष को रोका और संभावित परमाणु संकट को टाल दिया। अमेरिका और पाकिस्तान के बीच जो नया "पैकेज डील" तैयार हो रहा है, उसमें अमेरिकी सैन्य ठिकाने, क्रिप्टोकरेंसी सहयोग, क्रिटिकल मिनरल्स एक्सप्लोरेशन और तेल क्षेत्रों में अमेरिकी निवेश जैसे प्रावधान शामिल हैं।
यह सौदा पाकिस्तान की सेना के लिए राजनीतिक प्रतिष्ठा बढ़ाने और संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को कुछ राहत देने का माध्यम बताया जा रहा है। इसी कड़ी में पाकिस्तान ने हाल ही में 23 ऑफशोर ऑयल ब्लॉक चार कंसोर्टियम्स को सौंपे हैं, जिनमें तुर्की की तेल कंपनी भी शामिल है। लेकिन यह साफ नहीं है कि पाकिस्तान इन ब्लॉकों से कच्चा तेल प्राप्त कर पाएगा या नहीं। ओमान, संयुक्त अरब अमीरात और ईरान की सीमा से लगे पाकिस्तान के 3,00,000 वर्ग किलोमीटर के अपतटीय क्षेत्र में 1947 से अब तक सिर्फ 18 कुएं खोदे गए हैं।
सऊदी के साथ सौदा करने की पाकिस्तान को कोशिश
इसके अलावा पाकिस्तान ने सऊदी से नये सिरे से जुड़ने की कोशिश की है। पिछले महीने रियाद दौरे के दौरान पाकिस्तान और सऊदी अरब ने इकोनॉमिक कोऑपरेशन फ्रेमवर्क लॉन्च करने की घोषणा की, जिसके तहत ऊर्जा, खनन, कृषि, आईटी, पर्यटन और खाद्य सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में ज्वाइंट प्रोजेक्ट की योजना है। सितंबर में दोनों देशों के बीच हुए रक्षा समझौते में यह भी तय किया गया कि किसी एक देश पर हमला, दोनों पर हमला माना जाएगा। यानि विश्लेषकों का मानना है कि यह पाकिस्तान की कोशिश है कि वह खुद को "इस्लामिक वर्ल्ड के विश्वसनीय साझेदार" के रूप में दोबारा स्थापित करे और सऊदी निवेश के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिरता दे।
लेकिन पाकिस्तान की इन तमाम कोशिशों और असीम मुनीर की चालों को देखकर लगता है कि पाकिस्तान बेचैनी से समझौते कर रहा है। वो भारत के खिलाफ अपनी जनता को जीतते हुए दिखाना चाह रहा है और इसीलिए समझौते के टेबल पर ऐसी चीजें रख रहा है, जो पाकिस्तान के पास असल में है ही नहीं। पाकिस्तान गाजा में भी खुद को एक खिलाड़ी के तौर पर पेश कर रहा है और यहां तक कि गाजा में अपने सैनिकों को भेजने के लिए भी तैयार हो चुका है। इसीलिए एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान 'प्रतिक्रियात्मक' हो रहा है और उसके पास कोई रणनीति नहीं है। एक्सपर्ट्स् के मुताबिक, पाकिस्तान की यह कूटनीतिक कवायद उसकी घरेलू अस्थिरता और सेना-प्रधान शासन को वैधता दिलाने की कोशिश भर है और जियो-पॉलिटिक्स में इस्लामाबाद अभी भी एक "विश्वसनीय साझेदार" के बजाय "अवसरवादी राज्य" के रूप में देखा जा रहा है।
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