इस्लामाबाद/काबुल: पाकिस्तान, आतंकवाद के खेल में माहिर माना जाता है। पिछले 40 सालों में पाकिस्तान ने दुनियाभर में जिहाद और आतंकवाद फैलाया है और अफगानिस्तान, जिसे वो अपना स्ट्रैटजिक डेप्थ मानता रहा है, वो आतंकवाद का प्रयोगस्थल रहा है। अगस्त 2021 में काबुल पर कब्जे के बाद पाकिस्तान पटाखे फोड़ रहा था, क्योंकि उसकी सोच थी कि तालिबान अब उसके इशारे पर नाचेगा। लेकिन तालिबान ने अपनी राह खुद चुनी। तालिबान को हाथ से निकलता देख पाकिस्तान ने अपने तुरूप का इक्का निकाला... सिराजुद्दीन हक्कानी। वो तालिबान और हक्कानी नेटवर्क में झगड़ा लगाकर एक बार फिर अफगानिस्तान को अस्थिर करने में जुट गया। लेकिन सिराजुद्दीन हक्कानी, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का प्यादा था, वो भी पलट गया।
आखिर कैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान में काबुल ग्रुप और कांधार ग्रुप में झगड़ा करवाने में नाकाम रहा? आखिर क्यों काबुल और कांधार, दोनों के लिए पाकिस्तान सबसे बड़ा दुश्मन बन गया, इसे हम जानने की कोशिश करते हैं। पाकिस्तान के प्रमुख प्रोपेगेंडा पत्रकार नजम सेठी ने पिछले दिनों एक टीवी कार्यक्रम में कहा था कि अगर कांधार और काबुल लड़ते हैं, तो पाकिस्तान की राह आसान हो जाएगी और अगर ऐसा नहीं हुआ, तो पाकिस्तान के लिए आने वाला वक्त काफी खतरनाक होगा। नजम सेठी की दूसरी भविष्यवाणी सच साबित होने जा रही है।
ISI का प्यादा हक्कानी कैसे बना भस्मासुर!
सिराजुद्दीन हक्कानी की कहानी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के गुप्त खेल की सबसे नाटकीय दास्तानों में से एक है। एक वक्त था जब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने सिराजुद्दीन को अपनी "रणनीतिक संपत्ति" माना था। उसके पिता जलालुद्दीन हक्कानी, जो 1980 के दशक में सोवियत-विरोधी जिहाद के हीरो माने जाते थे, उसे पाकिस्तान और अमेरिकी खुफिया तंत्र दोनों का भरपूर समर्थन हासिल था। बाद में सिराजुद्दीन ने इसी विरासत को आगे बढ़ाया, लेकिन सिराजुद्दीन हक्कानी ने पाकिस्तान को किसी भी हमले की स्थिति में खूनी अंजाम भुगतने की धमकी देकर ISI को हिला डाला है। सूत्रों के मुताबिल, तालिान ने पाकिस्तान के खिलाफ वही रणनीति अपनाने का फैसला किया है, जो उसने अमेरिकी ड्रोन हमलों के खिलाफ अपनाया था। वो है आत्मघाती हमले करवाना।
अमेरिकी ड्रोन हमलों के खिलाफ तालिबान आत्मघाती हमले करवाता था और सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान में भी आने वाले दिनों आत्मघाती हमलों की बाढ़ आने वाली है। अगर पाकिस्तान, अफगानिस्तान में ड्रोन हमले करता है, तो इसका खूनी अंजाम पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों ही देशों में होगा। पाकिस्तान की छाया में पनपने वाला यह नेटवर्क, जिसे कभी इस्लामाबाद ने अफगानिस्तान में "अपना मोहरा" माना था, अब उसी पाकिस्तान के खिलाफ खड़ा हो गया है। सिराजुद्दीन हक्कानी, जो कभी ISI की मदद से अमेरिकी ड्रोन हमलों से बच निकला था, अब खुलकर पाकिस्तान की फौजी हुकूमत को चुनौती देने लगा है। असल में पाकिस्तान ने हक्कानी नेटवर्क को इसलिए भी अपने करीब रखा था कि अगर तालिबान आगे जाकर उसे धोखा दे, तो वो हक्कानी को खड़ा कर सके, लेकिन खेल पूरी तरह से बदल गया है।
हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान का रिश्ता
हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान के बीच का रिश्ता उतना ही पुराना है जितनी अफगान जंग की कहानियां। उत्तर वजीरिस्तान में बसे इस नेटवर्क ने दशकों तक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के लिए छद्म युद्ध लड़ा है। जब अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना थी, तब हक्कानी नेटवर्क आईएसआई के इशारे पर अमेरिकी ठिकानों पर हमले करता था। ISI का मानना था कि हक्कानी और तालिबान के जरिये वह अफगानिस्तान में भारत या पश्चिमी ताकतों के प्रभाव को सीमित रख सकेगा। लेकिन वक्त ने करवट बदली। तालिबान के काबुल पर काबिज होने के बाद, हक्कानी नेटवर्क की ताकत और बढ़ी और सिराजुद्दीन, जो अब अफगानिस्तान का गृह मंत्री हैं, वो खुद को पाकिस्तान का कर्जदार नहीं बल्कि बराबरी का खिलाड़ी समझने लगा है। पाकिस्तान इसे पचा नहीं पा रहा है।
आपको बता दें कि कांधार ग्रुप तालिबान का है, जबकि काबुल ग्रुप हक्कानी का है। अफगानिस्तान में कांधार ग्रुप काफी ताकतवर है। अब इस खेल के अगले हिस्से को समझिए। पाकिस्तान, तालिबान को तहरीक-ए-तालिबान (TTP) को खत्म करने के लिए कहता है। अफगानिस्तान में TTP उस क्षेत्र में सबसे ज्यादा एक्टिव है, जहां हक्कानी ग्रुप का नियंत्रण है। यानि उत्तरी वजीरिस्तान। और अमेरिका के खिलाफ आत्मघाती हमलों को अंजाम देने में TTP ने हक्कानी और तालिबान की खूब मदद की। तो क्या अब हक्कानी, TTP के खिलाफ जाएगा? बिल्कुल नहीं। पाकिस्तान यहीं चूक गया। पाकिस्तान, मुल्ला बरादर और सिराजुद्दीन हक्कानी के बीच झगड़ा लगाने में पूरी तरह से नाकाम हो गया है। तालिबान और हक्कानी ने एकजुटका का प्रदर्शन कर पाकिस्तान को सन्न कर दिया है। यानि, पाकिस्तान, जिसने कभी तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच फूट डालने की योजना बनाई थी, वो खुद उस आग में झुलस रहा है और आगे और झुलसेगा।
आखिर कैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान में काबुल ग्रुप और कांधार ग्रुप में झगड़ा करवाने में नाकाम रहा? आखिर क्यों काबुल और कांधार, दोनों के लिए पाकिस्तान सबसे बड़ा दुश्मन बन गया, इसे हम जानने की कोशिश करते हैं। पाकिस्तान के प्रमुख प्रोपेगेंडा पत्रकार नजम सेठी ने पिछले दिनों एक टीवी कार्यक्रम में कहा था कि अगर कांधार और काबुल लड़ते हैं, तो पाकिस्तान की राह आसान हो जाएगी और अगर ऐसा नहीं हुआ, तो पाकिस्तान के लिए आने वाला वक्त काफी खतरनाक होगा। नजम सेठी की दूसरी भविष्यवाणी सच साबित होने जा रही है।
ISI का प्यादा हक्कानी कैसे बना भस्मासुर!
सिराजुद्दीन हक्कानी की कहानी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के गुप्त खेल की सबसे नाटकीय दास्तानों में से एक है। एक वक्त था जब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने सिराजुद्दीन को अपनी "रणनीतिक संपत्ति" माना था। उसके पिता जलालुद्दीन हक्कानी, जो 1980 के दशक में सोवियत-विरोधी जिहाद के हीरो माने जाते थे, उसे पाकिस्तान और अमेरिकी खुफिया तंत्र दोनों का भरपूर समर्थन हासिल था। बाद में सिराजुद्दीन ने इसी विरासत को आगे बढ़ाया, लेकिन सिराजुद्दीन हक्कानी ने पाकिस्तान को किसी भी हमले की स्थिति में खूनी अंजाम भुगतने की धमकी देकर ISI को हिला डाला है। सूत्रों के मुताबिल, तालिान ने पाकिस्तान के खिलाफ वही रणनीति अपनाने का फैसला किया है, जो उसने अमेरिकी ड्रोन हमलों के खिलाफ अपनाया था। वो है आत्मघाती हमले करवाना।
अमेरिकी ड्रोन हमलों के खिलाफ तालिबान आत्मघाती हमले करवाता था और सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान में भी आने वाले दिनों आत्मघाती हमलों की बाढ़ आने वाली है। अगर पाकिस्तान, अफगानिस्तान में ड्रोन हमले करता है, तो इसका खूनी अंजाम पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों ही देशों में होगा। पाकिस्तान की छाया में पनपने वाला यह नेटवर्क, जिसे कभी इस्लामाबाद ने अफगानिस्तान में "अपना मोहरा" माना था, अब उसी पाकिस्तान के खिलाफ खड़ा हो गया है। सिराजुद्दीन हक्कानी, जो कभी ISI की मदद से अमेरिकी ड्रोन हमलों से बच निकला था, अब खुलकर पाकिस्तान की फौजी हुकूमत को चुनौती देने लगा है। असल में पाकिस्तान ने हक्कानी नेटवर्क को इसलिए भी अपने करीब रखा था कि अगर तालिबान आगे जाकर उसे धोखा दे, तो वो हक्कानी को खड़ा कर सके, लेकिन खेल पूरी तरह से बदल गया है।
In a rare move, Taliban Deputy Leader and MoI Sirajuddin Haqqani for the first time outlined his position on the growing tensions with Islamabad over the Pakistani Taliban, issuing a stern warning against any act of aggression toward Afghanistan. pic.twitter.com/EQ1gDnNVQN
— The OxusWatch (@theoxuswatch) October 31, 2025
हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान का रिश्ता
हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान के बीच का रिश्ता उतना ही पुराना है जितनी अफगान जंग की कहानियां। उत्तर वजीरिस्तान में बसे इस नेटवर्क ने दशकों तक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के लिए छद्म युद्ध लड़ा है। जब अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना थी, तब हक्कानी नेटवर्क आईएसआई के इशारे पर अमेरिकी ठिकानों पर हमले करता था। ISI का मानना था कि हक्कानी और तालिबान के जरिये वह अफगानिस्तान में भारत या पश्चिमी ताकतों के प्रभाव को सीमित रख सकेगा। लेकिन वक्त ने करवट बदली। तालिबान के काबुल पर काबिज होने के बाद, हक्कानी नेटवर्क की ताकत और बढ़ी और सिराजुद्दीन, जो अब अफगानिस्तान का गृह मंत्री हैं, वो खुद को पाकिस्तान का कर्जदार नहीं बल्कि बराबरी का खिलाड़ी समझने लगा है। पाकिस्तान इसे पचा नहीं पा रहा है।
आपको बता दें कि कांधार ग्रुप तालिबान का है, जबकि काबुल ग्रुप हक्कानी का है। अफगानिस्तान में कांधार ग्रुप काफी ताकतवर है। अब इस खेल के अगले हिस्से को समझिए। पाकिस्तान, तालिबान को तहरीक-ए-तालिबान (TTP) को खत्म करने के लिए कहता है। अफगानिस्तान में TTP उस क्षेत्र में सबसे ज्यादा एक्टिव है, जहां हक्कानी ग्रुप का नियंत्रण है। यानि उत्तरी वजीरिस्तान। और अमेरिका के खिलाफ आत्मघाती हमलों को अंजाम देने में TTP ने हक्कानी और तालिबान की खूब मदद की। तो क्या अब हक्कानी, TTP के खिलाफ जाएगा? बिल्कुल नहीं। पाकिस्तान यहीं चूक गया। पाकिस्तान, मुल्ला बरादर और सिराजुद्दीन हक्कानी के बीच झगड़ा लगाने में पूरी तरह से नाकाम हो गया है। तालिबान और हक्कानी ने एकजुटका का प्रदर्शन कर पाकिस्तान को सन्न कर दिया है। यानि, पाकिस्तान, जिसने कभी तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच फूट डालने की योजना बनाई थी, वो खुद उस आग में झुलस रहा है और आगे और झुलसेगा।
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