तेल अवीव/नई दिल्ली: गाजा में युद्ध के लिए जब पश्चिमी देशों ने इजरायल का बहिष्कार करना शुरू कर दिया, उस वक्त भारत उसके साथ खड़ा रहा। भारत ने ना सिर्फ कारगिल युद्ध में मदद के लिए इजरायल का अहसान चुकाया है, बल्कि इजरायल के साथ नई डिफेंस टेक्नोलॉजी का समझौता तक भारत के 'मेक इन इंडिया' कैम्पेन को भी आगे बढ़ाया है। आपको बता दें कि इजरायल-भारत ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप (JWG) की वार्षिक बैठक मंगलवार को रक्षा मंत्रालय के महानिदेशक मेजर जनरल (रिटायर्ड) अमीर बरम और भारतीय रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में हुई है।
इस बैठक के दौरान दोनों देशों ने डिफेंस, इंडस्ट्रियल और टेक्नोलॉजी सेक्टर में सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए। हालांकि इस समझौते को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन जो पहले बताया गया था उसके मुतबाकि, भारत अपनी थल सेना के लिए रॉकेट और इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) द्वारा विकसित मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाले एयर डिफेंस मिसाइलें करीब 3.75 अरब डॉलर में खरीदेगा। उसके अलावा IAI 900 मिलियन डॉलर में छह कॉमर्शियल विमानों को भारतीय वायु सेना के लिए ईंधन भरने वाले विमानों में तब्दील करके देगा।
भारत-इजरायल में एतिहासिक डिफेंस समझौते
भारत और इजरायल के बीच यह बैठक ऐसे समय में हुई जब इजरायल को गाजा युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, और कई लोकतांत्रिक देशों ने उसके साथ रक्षा सहयोग को सीमित कर दिया है। ऐसे माहौल में भारत के साथ हुआ यह नया समझौता इजरायल की वैश्विक साख को फिर से जिंदा करने की दिशा में अहम माना जा रहा है। मेजर जनरल अमीर बराम ने बैठक के बाद कहा कि "भारत के साथ यह रणनीतिक संवाद दोनों देशों के लिए एक अहम समय पर हो रहा है। हमारा रक्षा सहयोग आपसी भरोसे और साझा सुरक्षा हितों पर आधारित है। हम भारत को प्रथम श्रेणी का रणनीतिक साझेदार मानते हैं और रक्षा, तकनीक और औद्योगिक क्षेत्रों में सहयोग को और गहराई तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
आपको बता दें कि भारत-इजरायल की बीच के रक्षा संबंध पिछले तीन दशकों में लगातार मजबूत हुए हैं। अमेरिका के डिफेंस एक्सपर्ट जॉन स्पेंसर ने इस खबर को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर शेयर किया है। उन्होंने दो लोकतांत्रिक देशों के बीच हुए इस समझौते का स्वागत किया है। 1990 के दशक में कूटनीतिक संबंधों की स्थापना के बाद से इजरायल भारत का एक भरोसेमंद रक्षा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है। दोनों देशों के बीच सहयोग केवल रक्षा खरीद तक सीमित नहीं, बल्कि संयुक्त अनुसंधान, उत्पादन और प्रौद्योगिकी साझाकरण पर भी केंद्रित है। मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में, जब कई देश इज़राइल से दूरी बना रहे हैं, भारत का यह कदम संकेत देता है कि नई दिल्ली अपनी रणनीतिक स्वायत्तता की नीति पर कायम है। यह सौदा न केवल भारत की रक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ करेगा, बल्कि पश्चिम एशिया में उसके भू-राजनीतिक संतुलन को भी नई दिशा देगा।
इस बैठक के दौरान दोनों देशों ने डिफेंस, इंडस्ट्रियल और टेक्नोलॉजी सेक्टर में सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए। हालांकि इस समझौते को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन जो पहले बताया गया था उसके मुतबाकि, भारत अपनी थल सेना के लिए रॉकेट और इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) द्वारा विकसित मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाले एयर डिफेंस मिसाइलें करीब 3.75 अरब डॉलर में खरीदेगा। उसके अलावा IAI 900 मिलियन डॉलर में छह कॉमर्शियल विमानों को भारतीय वायु सेना के लिए ईंधन भरने वाले विमानों में तब्दील करके देगा।
Strengthening Defense Cooperation: Israel MOD Director General and Indian Defense Secretary Sign Strategic Memorandum of Understanding 🇮🇳🇮🇱@SpokespersonMoD
— Ministry of Defense (@Israel_MOD) November 4, 2025
Read more: https://t.co/ito3P1sCQg pic.twitter.com/FjxBkwFf1C
भारत-इजरायल में एतिहासिक डिफेंस समझौते
भारत और इजरायल के बीच यह बैठक ऐसे समय में हुई जब इजरायल को गाजा युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, और कई लोकतांत्रिक देशों ने उसके साथ रक्षा सहयोग को सीमित कर दिया है। ऐसे माहौल में भारत के साथ हुआ यह नया समझौता इजरायल की वैश्विक साख को फिर से जिंदा करने की दिशा में अहम माना जा रहा है। मेजर जनरल अमीर बराम ने बैठक के बाद कहा कि "भारत के साथ यह रणनीतिक संवाद दोनों देशों के लिए एक अहम समय पर हो रहा है। हमारा रक्षा सहयोग आपसी भरोसे और साझा सुरक्षा हितों पर आधारित है। हम भारत को प्रथम श्रेणी का रणनीतिक साझेदार मानते हैं और रक्षा, तकनीक और औद्योगिक क्षेत्रों में सहयोग को और गहराई तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
आपको बता दें कि भारत-इजरायल की बीच के रक्षा संबंध पिछले तीन दशकों में लगातार मजबूत हुए हैं। अमेरिका के डिफेंस एक्सपर्ट जॉन स्पेंसर ने इस खबर को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर शेयर किया है। उन्होंने दो लोकतांत्रिक देशों के बीच हुए इस समझौते का स्वागत किया है। 1990 के दशक में कूटनीतिक संबंधों की स्थापना के बाद से इजरायल भारत का एक भरोसेमंद रक्षा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है। दोनों देशों के बीच सहयोग केवल रक्षा खरीद तक सीमित नहीं, बल्कि संयुक्त अनुसंधान, उत्पादन और प्रौद्योगिकी साझाकरण पर भी केंद्रित है। मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में, जब कई देश इज़राइल से दूरी बना रहे हैं, भारत का यह कदम संकेत देता है कि नई दिल्ली अपनी रणनीतिक स्वायत्तता की नीति पर कायम है। यह सौदा न केवल भारत की रक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ करेगा, बल्कि पश्चिम एशिया में उसके भू-राजनीतिक संतुलन को भी नई दिशा देगा।
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