तेल अवीव: इजरायल और ईरान के बीच चल रही लड़ाई पर इस समय दुनिया की नजरें हैं। ये संघर्ष 13 जून को शुरू हुआ, जब इजरायल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन लॉन्च करते हुए ईरान की परमाणु सुविधाओं, बैलिस्टिक मिसाइल फैसिलिटी और सैन्य कमांडरों पर हमला किया। इजरायल ने इस हमले में ईरान के आर्मी चीफ, IRGC के हेड और देश के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों को मार डाला। इजरायल ने जिस सटीकता से ईरान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व को निशाना बनाया, उसने दुनिया को हैरान कर दिया। दरअसल इजरायली आर्मी और खुफिया एजेंसी ने 14 महीने की लंबी बहस और तैयारी के बाद ईरान पर ये हमला किया।
इजरायली अखबार यरुशलम पोस्ट ने बताया है कि कैसे इस ऑपरेशन पर बातचीत की शुरुआत 19 अप्रैल, 2024 को हो गई थी, जब ईरान ने इजरायल पर 100 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलों, 170 ड्रोन और दर्जनों क्रूज मिसाइलों से हमला किया था। इजरायल की ओर से भी जवाबी कार्रवाई की गई थी। दोनों देशों के बीच पहली बार इस तरह से हथियार चले थे, जिसने वर्तमान युद्ध के लिए मंच तैयार किया।
नेतन्याहू ने लिया अटैक का फैसला!यरुशलम पोस्ट का दावा है कि ईरान पर हमले का फैसला मोटेतौर पर बेंजामिन नेतन्याहू का था। नेतन्याहू ने ही ईरान के साथ खुला युद्ध छोड़ने, उसकी परमाणु सुविधाओं पर हमले और शीर्ष सुरक्षा प्रमुखों की हत्या को हरी झंडी दी। इस हमले के बारे में इजरायली नेतृत्व में तेजी से बहस अक्टूबर 2024 में शुरू हुई, जब ईरान ने दूसरी बार मिसाइल हमला किया। इससे पहले अप्रैल 2024 में इजरायल के जवाबी हमले को सीमित करने पर बात हुई थी, ताकि क्षेत्रीय तनाव ना बढ़े।
ईरान ने अक्टूबर, 2024 को दूसरी बार इजरायल पर हमला किया तो शीर्ष अधिकारियों की स्थिति बदल गई और बड़े हमले पर जोर दिया जाने लगा। दूसरी ओर अमेरिका के इलेक्शन पर भी इजरायल की नजर लग गई। अमेरिकी चुनाव नजदीक था और इजरायली सरकार को उम्मीद जगी कि अगर डोनाल्ड ट्रंप आए तो उनके लिए अमेरिका का समर्थन बढ़ सकता है। डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव जीता तो इजरायल में ईरान पर बड़े हमले की बहस और तैयारी ने जोर पकड़ लिया।
ईरान के प्रॉक्सी का रास्ता से हटनाईरान के पास बीते साल तक लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा में हमास था। वहीं सीरिया में उसके पक्ष की बशर अल असद की सरकार थी। हमास गाजा में लगातार लड़ते हुए कमजोर पड़ता रहा तो बीते साल हिजबल्लाह का शीर्ष नेतृत्व इजरायली हमलों में मारा गया। इजरायल और अमेरिका को दिसंबर, 2024 में सीरिया में बड़ी कामयाबी मिली, जब असद सरकार गिर गई और पूर्व में अल कायदा से जुड़े रहे जुलानी सत्ता में आ गए। जुलानी अमेरिका के साथ दिखे हैं।
इजरायल को यमन के हूतियों की ओर से बीते साल लगातार बैलिस्टिक मिसाइलों का सामना करना पड़ रहा था। इजरायल को चिंता थी कि ईरान के साथ लड़ाई होने पर हूतियों के हमले तेज होंगे। इसलिए शीर्ष इजराइली अधिकारी हूतियों के खतरे को कम करना चाहते थे। हिजबुल्लाह के साथ बीते साल नवंबर में युद्ध विराम के बाद इजरायल और अमेरिका ने यमन में बमबारी की। अमेरिका और इजरायल के हवाई हमलों ने हूतियों को कमजोर कर दिया।
ईरान-अमेरिका परमाणु वार्ताइजरायल की ईरान पर हमले के प्लान के बीच डोनाल्ड ट्रंप ने अप्रैल में ईरान के साथ परमाणु कार्यक्रम पर गंभीर बातचीत शुरू कर दी, जिसमें उनके दूत स्टीव विटकॉफ शामिल थे। इसने इजरायली अधिकारियों को डरा दिया कि कहीं ट्रंप ईरान से समझौता तो नहीं कर लेंगे। ऐसे में मोसाद निदेशक डेविड बार्निया, आईडीएफ इंटेलिजेंस प्रमुख जनरल श्लोमी बिंदर, मंत्री रॉन डर्मर ने ट्रंप की टीम को अपनी स्थिति को सख्त करने के लिए मनाने कोशिश की, जिसमें उनको सफलता भी मिली।
हाल ही में IAEA की रिपोर्ट में कहा गया कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को बढ़ा रहा है और संभावित रूप से 10 से 15 परमाणु हथियारों के लिए पर्याप्त यूरेनियम का उत्पादन कर सकता है। इस रिपोर्ट ने इजरायल को ईरान पर हमले के लिए लगभग तैयार कर दिया। इजराली सरकार ने फैसला लिया और 14 महीने के उतार-चढ़ाव के बाद 13 जून को ईरान के खिलाफ हमला कर दिया गया।
इजरायली अखबार यरुशलम पोस्ट ने बताया है कि कैसे इस ऑपरेशन पर बातचीत की शुरुआत 19 अप्रैल, 2024 को हो गई थी, जब ईरान ने इजरायल पर 100 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलों, 170 ड्रोन और दर्जनों क्रूज मिसाइलों से हमला किया था। इजरायल की ओर से भी जवाबी कार्रवाई की गई थी। दोनों देशों के बीच पहली बार इस तरह से हथियार चले थे, जिसने वर्तमान युद्ध के लिए मंच तैयार किया।
नेतन्याहू ने लिया अटैक का फैसला!यरुशलम पोस्ट का दावा है कि ईरान पर हमले का फैसला मोटेतौर पर बेंजामिन नेतन्याहू का था। नेतन्याहू ने ही ईरान के साथ खुला युद्ध छोड़ने, उसकी परमाणु सुविधाओं पर हमले और शीर्ष सुरक्षा प्रमुखों की हत्या को हरी झंडी दी। इस हमले के बारे में इजरायली नेतृत्व में तेजी से बहस अक्टूबर 2024 में शुरू हुई, जब ईरान ने दूसरी बार मिसाइल हमला किया। इससे पहले अप्रैल 2024 में इजरायल के जवाबी हमले को सीमित करने पर बात हुई थी, ताकि क्षेत्रीय तनाव ना बढ़े।
ईरान ने अक्टूबर, 2024 को दूसरी बार इजरायल पर हमला किया तो शीर्ष अधिकारियों की स्थिति बदल गई और बड़े हमले पर जोर दिया जाने लगा। दूसरी ओर अमेरिका के इलेक्शन पर भी इजरायल की नजर लग गई। अमेरिकी चुनाव नजदीक था और इजरायली सरकार को उम्मीद जगी कि अगर डोनाल्ड ट्रंप आए तो उनके लिए अमेरिका का समर्थन बढ़ सकता है। डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव जीता तो इजरायल में ईरान पर बड़े हमले की बहस और तैयारी ने जोर पकड़ लिया।
ईरान के प्रॉक्सी का रास्ता से हटनाईरान के पास बीते साल तक लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा में हमास था। वहीं सीरिया में उसके पक्ष की बशर अल असद की सरकार थी। हमास गाजा में लगातार लड़ते हुए कमजोर पड़ता रहा तो बीते साल हिजबल्लाह का शीर्ष नेतृत्व इजरायली हमलों में मारा गया। इजरायल और अमेरिका को दिसंबर, 2024 में सीरिया में बड़ी कामयाबी मिली, जब असद सरकार गिर गई और पूर्व में अल कायदा से जुड़े रहे जुलानी सत्ता में आ गए। जुलानी अमेरिका के साथ दिखे हैं।
इजरायल को यमन के हूतियों की ओर से बीते साल लगातार बैलिस्टिक मिसाइलों का सामना करना पड़ रहा था। इजरायल को चिंता थी कि ईरान के साथ लड़ाई होने पर हूतियों के हमले तेज होंगे। इसलिए शीर्ष इजराइली अधिकारी हूतियों के खतरे को कम करना चाहते थे। हिजबुल्लाह के साथ बीते साल नवंबर में युद्ध विराम के बाद इजरायल और अमेरिका ने यमन में बमबारी की। अमेरिका और इजरायल के हवाई हमलों ने हूतियों को कमजोर कर दिया।
ईरान-अमेरिका परमाणु वार्ताइजरायल की ईरान पर हमले के प्लान के बीच डोनाल्ड ट्रंप ने अप्रैल में ईरान के साथ परमाणु कार्यक्रम पर गंभीर बातचीत शुरू कर दी, जिसमें उनके दूत स्टीव विटकॉफ शामिल थे। इसने इजरायली अधिकारियों को डरा दिया कि कहीं ट्रंप ईरान से समझौता तो नहीं कर लेंगे। ऐसे में मोसाद निदेशक डेविड बार्निया, आईडीएफ इंटेलिजेंस प्रमुख जनरल श्लोमी बिंदर, मंत्री रॉन डर्मर ने ट्रंप की टीम को अपनी स्थिति को सख्त करने के लिए मनाने कोशिश की, जिसमें उनको सफलता भी मिली।
हाल ही में IAEA की रिपोर्ट में कहा गया कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को बढ़ा रहा है और संभावित रूप से 10 से 15 परमाणु हथियारों के लिए पर्याप्त यूरेनियम का उत्पादन कर सकता है। इस रिपोर्ट ने इजरायल को ईरान पर हमले के लिए लगभग तैयार कर दिया। इजराली सरकार ने फैसला लिया और 14 महीने के उतार-चढ़ाव के बाद 13 जून को ईरान के खिलाफ हमला कर दिया गया।