देश के महापुरुषों और शूरवीरों को जाति और धर्म से जोड़ना समाज और राष्ट्र दोनों के लिए अशुभ संकेत है। लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों महान योद्धा राणा सांगा का नाम सियासी बहस का केंद्र बन गया है। एक ओर जहां उन्हें जातीय पहचान में बांधने की कोशिश हो रही है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दल इस मुद्दे को वोट बैंक की राजनीति से जोड़ने में लगे हैं।
रामजीलाल सुमन के बयान से मचा बवालसमाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन ने कुछ समय पहले संसद में राणा सांगा को ‘गद्दार’ कहकर विवाद खड़ा कर दिया था। इस बयान के बाद करणी सेना और राजपूत संगठनों ने आगरा में जमकर विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद सुमन को कोर्ट से सुरक्षा की गुहार लगानी पड़ी थी। हालांकि उन्होंने बयान पर खेद भी जताया, लेकिन कुछ दिन बाद ही दोबारा वही बात दोहराई।
अखिलेश यादव ने सुमन को दिया समर्थनशनिवार को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आगरा में रामजीलाल सुमन से उनके घर जाकर मुलाकात की। यह मुलाकात सिर्फ व्यक्तिगत नहीं बल्कि एक बड़ा सियासी संदेश देने वाली थी। अखिलेश यादव ने सुमन को ‘दलित सांसद’ के रूप में पेश करते हुए उन्हें समर्थन दिया और संकेत दिए कि वे इस विवाद का उपयोग दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए कर रहे हैं।
राजनीतिक समीकरण: PDA फॉर्मूला और दलित वोट बैंकराजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अखिलेश यादव का यह कदम एक खास राजनीतिक नैरेटिव सेट करने की कोशिश है। सपा का ध्यान अब PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के ‘D’ यानी दलित वर्ग पर केंद्रित है। नवंबर 2024 के उपचुनाव में बीजेपी ने दलित-ओबीसी बहुल सीटों पर जबरदस्त प्रदर्शन किया, जिससे सपा के लिए खतरे की घंटी बज गई।
बीएसपी के कमजोर होते वोट बैंक पर नजरबसपा सुप्रीमो मायावती का दलित वोट बैंक पिछले कुछ वर्षों में लगातार कमजोर हुआ है। 2012 में जहां बीएसपी को 26% वोट मिले थे, वहीं 2022 में यह घटकर 13% रह गया और 2024 के उपचुनाव में सिर्फ 7%। इसी गिरावट के बीच सपा अब दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में लाने की रणनीति पर काम कर रही है।
योगी आदित्यनाथ का पलटवारमुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव की इस रणनीति पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने सपा पर जातीय विद्वेष फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह सब समाज को बांटने की राजनीति है और इससे देश और समाज दोनों को नुकसान होता है।
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