राजनीति में हार और जीत से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है, हार से मिले सबक। उत्तर प्रदेश में हाल के लोकसभा चुनावों के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को शायद यही सबसे बड़ा सबक दिया है। पार्टी की जो दलित वोट बैंक में मज़बूत पकड़ मानी जाती थी, उसमें विपक्ष ने सेंध लगा दी। अब, 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए अभी से चुनावी बिसात बिछने लगी है और BJP ने अपना सबसे बड़ा दांव चल दिया है।
क्या है BJP का नया ‘मिशन दलित’?
पार्टी ने महसूस किया कि विपक्ष का “संविधान बदलने” वाला नैरेटिव ज़मीन पर काम कर गया और दलित समुदाय का एक बड़ा हिस्सा उनसे दूर हो गया। इसी नुकसान की भरपाई और भरोसे को फिर से बनाने के लिए BJP ने एक बड़े, अंबेडकर-केंद्रित अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान का नारा है: “संविधान और आरक्षण के सम्मान में, भाजपा मैदान में।”
कैसे जीता जाएगा भरोसा?
यह अभियान सिर्फ भाषणों तक सीमित नहीं रहेगा। इसके लिए एक ठोस रणनीति तैयार की गई है:
गाँव-गाँव सहभोज: पार्टी के नेता और कार्यकर्ता दलित बस्तियों में जाएंगे और उनके साथ बैठकर भोजन करेंगे। यह सिर्फ एक भोजन नहीं, बल्कि सामाजिक बराबरी और जुड़ाव का एक प्रतीक होगा, जिसका सीधा संदेश होगा- “हम सब एक हैं।”
अंबेडकर पर संवाद: हर दलित गाँव में बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन और उनके विचारों पर गोष्ठियाँ और कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसमें बताया जाएगा कि कैसे BJP ने अंबेडकर के सम्मान में ‘पंचतीर्थ’ जैसे बड़े काम किए हैं और कैसे पार्टी संविधान और आरक्षण की सबसे बड़ी रक्षक है।
अफवाहों का जवाब: इस अभियान का मुख्य मकसद विपक्ष द्वारा फैलाई गई उन अफवाहों को काटना है कि BJP सत्ता में आई तो संविधान या आरक्षण खत्म कर देगी।
इस महाअभियान की कमान खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप-मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक जैसे बड़े नेताओं ने संभाल रखी है। यह सिर्फ एक राजनीतिक अभियान नहीं, बल्कि 2027 के लिए एक मज़बूत नींव रखने की कोशिश है, जिसमें BJP यह साबित करना चाहती है कि दलितों का सच्चा हितैषी कौन है। अब देखना यह है कि यह कोशिश कितनी सफल होती है।
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