विज्ञान की प्रगति के बावजूद भारत के कई इलाकों में आज भी ऐसे अंधविश्वास और कुप्रथाएं प्रचलित हैं, जो न सिर्फ समाज की छवि को धूमिल करती हैं बल्कि महिलाओं के अधिकारों और सम्मान को भी ठेस पहुंचाती हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले का बंकाया माता मंदिर इस संदर्भ में एक कड़वा सच पेश करता है। यहां अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं के साथ जो क्रूरता होती है, वह न केवल शर्मनाक है बल्कि इंसानियत के खिलाफ भी है।
बंकाया माता मंदिर का अंधविश्वासभीलवाड़ा के इस मंदिर में वर्षों से ऐसी प्रथाएं जारी हैं, जिनमें महिलाओं को भूत-प्रेत के नाम पर पीड़ा दी जाती है। यहां के पुजारियों और तांत्रिकों द्वारा महिलाओं को झाड़-फूंक के बहाने मार-पीट कर, गंदी हरकतों का शिकार बनाया जाता है। ये महिलाएं भले ही मानसिक या शारीरिक रूप से बीमार न हों, फिर भी उन्हें 'भूत-प्रेत का प्रभाव' मानकर परेशान किया जाता है।
महिलाओं के साथ होने वाली क्रूरतामंदिर में आए कई मामले सामने आए हैं, जिनमें महिलाओं को सिर पर पुरुषों के जूते रखकर गांव-गली से गुजरना पड़ता है। इतना ही नहीं, मुंह में जूता दबाकर भी उन्हें चलना पड़ता है, ताकि लोगों को यह दिखाया जा सके कि वह ‘भूत से मुक्ति पा चुकी’ हैं। इस दौरान बच्चे उनकी मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन मजबूर महिलाएं परिवार और समाज के दबाव में यह सब सहती हैं।
इसके बाद पति के जूतों से महिलाओं को पानी पिलाया जाता है, जिससे उनका ‘भूत-प्रेत’ से पूरी तरह छुटकारा हो जाए, ऐसा कहा जाता है। इन कुप्रथाओं से महिलाओं का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित होता है। इसके बावजूद, स्थानीय समाज में इसे सामान्य प्रक्रिया माना जाता है।
अंधविश्वास की जड़ें और समाज पर प्रभावभीलवाड़ा के इस मंदिर में होने वाली ये प्रथाएं केवल स्थानीय अंधविश्वास और पारंपरिक सोच की देन हैं। यह बताता है कि आधुनिक युग में भी कैसे पुराने, गैर-वैज्ञानिक विश्वास समाज में गहराई से जड़ जमाए हुए हैं। ऐसे अंधविश्वास समाज में महिलाओं की स्थिति को कमजोर करते हैं और उनके खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देते हैं।
इस तरह के प्रथाएं न केवल महिला अधिकारों के खिलाफ हैं, बल्कि ये कानून के भी विरुद्ध हैं। महिलाओं को शारीरिक और मानसिक यातना देना, उन्हें अपमानित करना और उनके अधिकारों का हनन करना कानूनन अपराध है। लेकिन अक्सर सामाजिक दबाव के कारण ये घटनाएं दबा दी जाती हैं।
क्या कहते हैं लोग?स्थानीय लोग कहते हैं कि इस मंदिर में केवल वे महिलाएं लाई जाती हैं जो या तो किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त होती हैं या भूत-प्रेत के प्रभाव में हैं। इसलिए ये झाड़-फूंक और तांत्रिक उपचार आवश्यक समझे जाते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी और अंधविश्वास के कारण सही उपचार के बजाय क्रूरता को बढ़ावा मिलता है।
समाधान की ओर कदमइस समस्या का समाधान तभी संभव है जब समाज में अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता फैलाई जाए। महिलाओं को शारीरिक या मानसिक किसी भी समस्या के लिए वैज्ञानिक उपचार और चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए। स्थानीय प्रशासन और समाज के जिम्मेदारों को चाहिए कि वे ऐसी कुप्रथाओं पर रोक लगाएं और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करें।
साथ ही, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत कर अंधविश्वास पर काबू पाया जा सकता है। जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों को वैज्ञानिक सोच अपनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि वे अपने समाज की महिलाओं के साथ न्याय कर सकें।
निष्कर्षभीलवाड़ा के बंकाया माता मंदिर में महिलाओं के साथ जो हो रहा है, वह न केवल सामाजिक अन्याय है बल्कि मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। विज्ञान के इस युग में भी जब सही और गलत की समझ विकसित हो रही है, ऐसे कुप्रथाओं का होना चिंताजनक है। हमें मिलकर इस अंधविश्वास को खत्म करना होगा और समाज को ऐसी सोच से मुक्त कर एक समृद्ध, संवेदनशील और न्यायपूर्ण समाज बनाना होगा।
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