भारतीय धर्म और संस्कृति में हर शब्द और हर परंपरा का गहरा आध्यात्मिक महत्व होता है। यज्ञ और हवन के दौरान जब अग्नि में आहुति डाली जाती है, तो मंत्रों के साथ एक शब्द अनिवार्य रूप से बोला जाता है—“स्वाहा”। बहुत से लोग इसे मात्र एक उच्चारण मानते हैं, लेकिन वास्तव में यह शब्द देवी स्वाहा का प्रतीक है। देवी स्वाहा अग्नि देव की पत्नी और वैदिक अनुष्ठानों की अभिन्न शक्ति मानी जाती हैं।
देवी स्वाहा कौन हैं?पौराणिक ग्रंथों में देवी स्वाहा का विस्तार से वर्णन मिलता है। पुराणों और वेदों के अनुसार, वे अग्नि देव की पत्नी हैं। ‘स्वाहा’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है—‘सु’ (अच्छा या शुभ) और ‘आह’ (आह्वान या पहुँचाना)। इसका अर्थ हुआ—“अच्छी तरह से पहुंचाया गया।” यानी यज्ञ में दी गई आहुति को सही रूप से देवताओं तक पहुंचाने वाली शक्ति देवी स्वाहा ही हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, देवी स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। वहीं अन्य परंपराओं में उन्हें प्रकृति के पंचतत्वों में से अग्नि की शक्ति माना गया है।
यज्ञ में स्वाहा का महत्वयज्ञ केवल अग्नि में आहुति डालना भर नहीं है, बल्कि यह देवताओं को भोजन और ऊर्जा अर्पित करने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया देवी स्वाहा के बिना अधूरी मानी जाती है।
आहुति का माध्यम – मान्यता है कि देवी स्वाहा ही आहुति को देवताओं तक पहुंचाती हैं। उनके नाम के बिना अग्नि में दी गई आहुति स्वीकार्य नहीं होती।
मंत्रों की पूर्णता – प्रत्येक वैदिक मंत्र के अंत में “स्वाहा” बोला जाता है। यह न केवल मंत्र को शक्ति प्रदान करता है, बल्कि उसे देवताओं तक पहुंचाकर सफल बनाता है।
अग्नि देव की कृपा – चूंकि स्वाहा अग्नि देव की पत्नी हैं, इसलिए उनके नाम के साथ दी गई आहुति से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं और अनुष्ठान सफल होता है।
कथाओं के अनुसार, जब देवताओं ने यज्ञ किया तो आहुति स्वीकार करने का कार्य केवल देवी स्वाहा के माध्यम से ही संभव हुआ। यही कारण है कि वे “देवताओं और मानव के बीच का सेतु” मानी जाती हैं।
कुछ कथाओं में यह भी बताया गया है कि देवी स्वाहा का विवाह अग्नि देव से इसीलिए हुआ, ताकि मनुष्य द्वारा अग्नि में डाली गई हर आहुति सही देवता तक पहुंच सके और उसका फल मिले।
आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि“स्वाहा” शब्द केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक अर्थ भी है।
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समर्पण का भाव – जब हम “स्वाहा” बोलते हैं, तो यह अहंकार छोड़कर समर्पण का प्रतीक बनता है। यह दर्शाता है कि हमारी आहुति और कर्म किसी उच्च शक्ति के लिए हैं, हमारे लिए नहीं।
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ऊर्जा का संचार – हवन और यज्ञ में मंत्रोच्चार और “स्वाहा” की ध्वनि तरंगें वातावरण को शुद्ध करती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से यह वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करती है।
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