अगली ख़बर
Newszop

गलती से भी घर की इन जगहों पर न टांगें पितरों की फोटो, वरना बढ़ सकती हैं मुश्किलें..यहां जानें सही दिशा और नियम

Send Push

अक्सर देखा जाता है कि लोग भावनाओं में बहकर अपने पितरों की तस्वीरें घर में कहीं भी टांग देते हैं। कोई बैठक (ड्राइंग रूम) में लगा देता है, तो कोई पूजा घर के पास या फिर रसोई तक में। लेकिन शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि पितरों की तस्वीरें गलत स्थान पर लगाने से जीवन में उलझनें, तनाव और बाधाएं बढ़ सकती हैं। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि पितरों की तस्वीर लगाने का सही स्थान कौन सा है और इसकी पूजा कैसे करनी चाहिए।

दक्षिण दिशा मानी गई है पितरों की दिशा

Local18 से बातचीत में महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य ने बताया कि पितरों की तस्वीर हमेशा दक्षिण दिशा की दीवार पर ही लगानी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा को यम की दिशा कहा गया है, इसलिए पितरों का स्थान वहीं माना जाता है। यही कारण है कि यदि तस्वीर किसी और दिशा में लगाई जाती है तो घर के वातावरण पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

स्वामी जी ने यह भी स्पष्ट किया कि पितरों की फोटो को बैठक (ड्राइंग रूम), पूजा घर, बेडरूम या रसोई में लगाने से बचना चाहिए। इसके अलावा तस्वीरें कभी भी स्टोर रूम या गंदे स्थान पर नहीं रखनी चाहिएं।

पूजा और तर्पण का सही तरीका

पितरों की तस्वीर रखने के साथ-साथ उनकी नियमित पूजा भी आवश्यक है। तस्वीर पर रोजाना धूप-बत्ती दिखानी चाहिए। हर महीने की अमावस्या को तिल और जौ अर्पित करके जल दान करना शुभ माना गया है।

श्राद्ध पक्ष के दिनों में विशेष नियम बताए गए हैं। उन दिनों तस्वीर को दीवार से उतारकर किसी कुर्सी या टेबल पर कपड़ा बिछाकर रखा जाता है। इसके बाद उस पर टीका और माला चढ़ाई जाती है और पिता, दादा, परदादा सहित मां, दादी और परदादी के नाम-गोत्र लेकर तर्पण किया जाता है। स्वामी जी का कहना है कि इस समय केवल अपने पितरों का ही नहीं, बल्कि उन लोगों का भी स्मरण करना चाहिए जिनके वंशज नहीं बचे हैं।

केवल तीन पीढ़ियों तक ही तस्वीरें

शास्त्रों में साफ उल्लेख है कि पितरों की तस्वीरें केवल तीन पीढ़ियों तक ही लगाई जानी चाहिए। यानी पिता-माता, दादा-दादी और परदादा-परदादी तक। इसके बाद की पीढ़ियों की तस्वीरें लगाने का कोई विधान नहीं है।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितरों की तस्वीरों की उचित पूजा और तर्पण करने से न केवल उनके आत्मा को शांति मिलती है बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि और शांति भी बनी रहती है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि गरुड़ जी ने भी अपने भाई संपति का श्राद्ध इसी विधि से किया था।

स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य का कहना है कि जहां श्रद्धा होती है, वहां शांति और समृद्धि का मार्ग अपने आप खुल जाता है। इसलिए पितरों के प्रति सच्चे मन से किया गया तर्पण और स्मरण परिवार को हर संकट से बचाता है।

न्यूजपॉईंट पसंद? अब ऐप डाउनलोड करें