हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य और केंद्र सरकार तथा मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को एक याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें सक्सेना को दिए गए विस्तार को इस आधार पर रद्द करने की मांग की गई है कि यह केंद्रीय सेवा नियमों और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।
मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया और न्यायमूर्ति रंजन शर्मा की खंडपीठ ने अतुल शर्मा द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिन्होंने तर्क दिया कि सतर्कता मंजूरी देने के संबंध में संशोधित दिशा-निर्देशों में यह प्रावधान है कि यदि किसी लंबित आपराधिक मामले में जांच एजेंसी द्वारा अदालत में आरोपपत्र दायर किया गया है और सक्षम प्राधिकारी ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (जैसा कि 2018 में संशोधित किया गया है) या किसी ट्रायल कोर्ट में लंबित किसी अन्य आपराधिक मामले में अभियोजन के लिए मंजूरी दी है, तो इसे अस्वीकार किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि सक्सेना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के प्रावधान के तहत एक आपराधिक मामले का सामना कर रहे थे, और उन्हें मौजूदा मानदंडों का उल्लंघन करते हुए सतर्कता मंजूरी दी गई थी।
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