कोलकाता, 29 जून (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में वर्षो से छात्रसंघ चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं जिससे छात्रों में असंतोष बढ़ता जा रहा है राज्य सरकार की बार-बार की घोषणाओं के बावजूद अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है ।
पिछले वर्ष एक महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद जब जूनियर डॉक्टरों ने आंदोलन शुरू किया तब छात्र राजनीति को लेकर राज्य भर में बहस तेज हो गई थी उसी समय 28 अगस्त 2024 को तृणमूल छात्र परिषद के स्थापना दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह ऐलान किया था कि दुर्गा पूजा के बाद छात्रसंघ चुनाव कराए जाएंगे लेकिन एक साल गुजरने के बावजूद यह वादा अब तक अधूरा है ।
इस बीच कलकत्ता हाईकोर्ट में छात्रसंघ चुनावों को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई जिन पर सुनवाई करते हुए 29 मार्च 2025 को मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर हलफनामा देकर बताने को कहा था कि चुनाव कब और किस प्रक्रिया से कराए जाएंगे लेकिन राज्य सरकार द्वारा अब तक कोई गाइडलाइन अदालत में प्रस्तुत नहीं की गई है ।
राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार कोलकाता, बर्दवान, उत्तर बंगाल, कल्याणी और विद्यासागर विश्वविद्यालयों से संबद्ध कॉलेजों में 2017 में आखिरी बार छात्रसंघ चुनाव कराए गए थे प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी में 2019 और जादवपुर यूनिवर्सिटी में 2020 में चुनाव हुए थे इसके बाद से किसी भी संस्थान में छात्र चुनाव नहीं हुए हैं ।
हाल ही में कासबा के एक लॉ कॉलेज में छात्रा के साथ हुए गैंगरेप की घटना में तृणमूल छात्र परिषद से जुड़े नाम सामने आने के बाद छात्रसंघ चुनाव की मांग और तेज हो गई है ।
एसएफआई के नेता शुभजीत सरकार का कहना है कि अगर छात्रसंघ चुनाव कराए जाते हैं तो तृणमूल का वर्चस्व कॉलेज और विश्वविद्यालय परिसरों से खत्म हो जाएगा। इसी डर से राज्य सरकार चुनाव टाल रही है उनका आरोप है कि बिना निर्वाचित छात्र संघ के भी कॉलेजों में विभिन्न कार्यक्रमों जैसे सरस्वती पूजा, होली और अन्य आयोजनों पर पांच से पंद्रह लाख रुपये तक खर्च किए जा रहे हैं ।
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता का कहना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु लगातार छात्रसंघ चुनाव कराने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं लेकिन कोविड महामारी मानसून और दुर्गा पूजा जैसे कारणों से प्रक्रिया में बाधा आ रही है ।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि सालों से छात्रसंघ चुनाव रोककर तृणमूल छात्र परिषद ने यूनियन पर एकाधिकार बनाए रखा है और अब तो बंगाल के कॉलेजों में दाखिले के लिए पैसे के साथ-साथ और भी चीजें देनी पड़ रही हैं जो शिक्षा संस्थानों की संस्कृति बन चुकी है ।
कासबा की घटना के बाद यह मुद्दा फिर से सुर्खियों में है लेकिन इस बात को लेकर न तो तृणमूल कांग्रेस और न ही शिक्षा विभाग स्पष्ट रूप से कह पा रहे हैं कि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले छात्रसंघ चुनाव होंगे या नहीं l
(Udaipur Kiran) / अनिता राय
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