नई दिल्ली, 23 जून (हिं.स.)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 मई को गुजरात के दाहोद में 9 हजार हार्सपावर वाले रेलवे इंजन के कारखाने का उद्घाटन किया था। यह कारखाना जर्मन कंपनी सीमेंस के सहयोग से बनाया गया है और इसमें अगले 11 वर्षों में करीब 1200 लोकोमोटिव इंजनों का निर्माण किया जाना है। यह करार करीब 26,000 करोड़ रुपये का है, जिसे लेकर अब कांग्रेस पार्टी ने सरकार की मंशा और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए संसदीय जांच की मांग की है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस कर सरकार पर ‘मेक इन इंडिया’ के नाम पर ‘स्क्रू ड्राइवर टेक्नोलॉजी’ लागू करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह परियोजना पूरी तरह से स्वदेशी निर्माण का दावा करती है, लेकिन हकीकत में यह सिर्फ एसेंबली प्लांट बनकर रह गई है। उन्होंने कहा कि प्लांट में दूसरे स्थानों से पुर्जे मंगाकर सिर्फ उन्हें जोड़ा जाएगा और टेस्ट किया जाएगा, जबकि क्रिटिकल कंपोनेंट्स का निर्माण सीमेंस के अपने नासिक, औरंगाबाद और मुंबई स्थित प्लांट्स में होगा।
बृजेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि इस करार में पारदर्शिता का अभाव है और यह ‘हितों के टकराव’ (कांफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट) का मामला भी बनता है, क्योंकि वर्तमान रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव राजनीति में आने से पहले सीमेंस इंडिया में उपाध्यक्ष के पद पर काम कर चुके हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सीमेंस को यह ठेका देना सिर्फ संयोग है या इसके पीछे कोई और वजह है?
कांग्रेस नेता ने सरकार से इस करार को लेकर 6 सवाल पूछे। उन्होंने जानना चाहा कि 26,000 करोड़ रुपये के इस सौदे में बोली लगाने वाले प्रतिभागियों की जानकारी अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं की गई और क्या अन्य बोलीदाताओं को उचित अवसर मिला भी था या नहीं? उन्होंने यह भी पूछा कि इतनी भारी रकम खर्च करने के बावजूद भारत अब भी उन महत्वपूर्ण इंजिनियरी घटकों का निर्माण क्यों नहीं कर पा रहा है, जिनका उपयोग दाहोद प्लांट में किया जाएगा? अगर ‘मेक इन इंडिया’ के तहत इंजन निर्माण पूरी तरह से स्वदेशी तरीके से किया जाना था, तो असेंबली और टेस्टिंग तक ही काम क्यों सीमित कर दिया गया?
उन्होंने दिसंबर 2022 में सरकार द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति का हवाला देते हुए कहा कि तब कहा गया था कि यह प्लांट देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। दाहोद को एक एडवांस इंजीनियरिंग हब के रूप में विकसित किया जाएगा और रेल कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जाएगा। लेकिन अब जो तस्वीर सामने आई है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह सब केवल दावों तक ही सीमित रह गया है।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि सरकार ने अब तक यह स्पष्ट क्यों नहीं किया कि क्या बॉम्बार्डियर या आस्टॉम जैसी वैश्विक कंपनियों ने इस करार के लिए बोली लगाई थी या नहीं? उन्होंने कहा कि आल्सटॉम के साथ भारतीय रेलवे के सौ वर्षों से भी पुराने संबंध हैं और अगर वह इस प्रक्रिया में शामिल नहीं थी, तो इसके पीछे की वजह क्या थी, यह सरकार को बताना चाहिए।
कांग्रेस ने इस परियोजना को लेकर उठाए गए सवालों के जवाब सरकार से मांगे हैं और कहा है कि 26 हजार करोड़ रुपये की सार्वजनिक धनराशि से जुड़े इस प्रोजेक्ट की पारदर्शिता और स्वदेशी निर्माण के दावों की संसदीय जांच होनी चाहिए।
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(Udaipur Kiran) / prashant shekhar
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