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प्रो महालनोबिस की 132वीं जयंती पर आईएसआई ने किया सांख्यिकी दिवस और वर्कर्स डे का आयोजन

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कोलकाता, 29 जून (Udaipur Kiran) ।भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई), कोलकाता में संस्थापक प्रो. प्रशांत चंद्र महालनोबिस की 132वीं जयंती के अवसर पर रविवार को ‘सांख्यिकी दिवस’ और ‘वर्कर्स डे’ का आयोजन किया गया। इस वर्ष कार्यक्रम की केंद्रीय थीम ‘राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण के 75 वर्ष’ रही, जो प्रो. महालनोबिस के दूरदर्शी योगदान को समर्पित थी।

समारोह की शुरुआत प्रो. महालनोबिस की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने और आम्रपाली लॉन में वृक्षारोपण के साथ हुई। स्वागत भाषण आयोजन समिति की सदस्य डॉ. सौम्यनेत्रा मुंशी ने दिया और अतिथियों से दीप प्रज्वलन का अनुरोध किया।

आयोजन समिति की संयोजक डॉ. परमिता दास ने प्रो. महालनोबिस के मौलिक कार्यों को याद करते हुए मशहूर सांख्यिकीविद प्रो. रोनाल्ड फिशर के उद्धरण का उल्लेख किया, जिन्होंने उनके नवोन्मेषी दृष्टिकोण की सराहना की थी। उन्होंने बताया कि कैसे एक स्वतंत्र विषय के रूप में सांख्यिकी को शुरुआती दौर में संस्थागत विरोध का सामना करना पड़ा और किस प्रकार उनके मामाश्री डॉ. नीलरतन सरकार का सहयोग उन्हें मिला। निखिल मेनन की पुस्तक प्लानिंग डेमोक्रेसी का हवाला देते हुए उन्होंने महालनोबिस की राष्ट्रीय महत्ता को रेखांकित किया और वर्तमान में आईएसआई की अवसंरचना से जुड़ी चुनौतियों पर चिंता जताई।

संस्थान की निदेशक प्रो. संगमित्रा बनर्जी ने संस्थागत उपलब्धियों के उत्सव के साथ आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि डेटा साइंस के क्षेत्र में आईएसआई की वैश्विक मान्यता है, जिसे भारत की अपेक्षा विदेशों में अधिक सराहा जाता है।

डीन ऑफ स्टडीज डॉ. बिस्वब्रत प्रधान ने संस्थान की अवसंरचना में कमी को वित्तीय बाधाओं का परिणाम बताया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्थान की पहचान को और सुदृढ़ करने के लिए पोस्टडॉक्टरल फैलोशिप और विदेशी संकाय की नियुक्तियों को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा।

विशिष्ट अतिथि प्रो. मनोरंजन पाल, जो स्वयं प्रो. महालनोबिस के मार्गदर्शन में कार्य कर चुके हैं, ने संस्थापक के साथ अपने अनुभव साझा किए और उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा नेतृत्व क्षमता की सराहना की।

मुख्य अतिथि प्रो. श्रीकृष्ण गोपालराव दानी (सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन बेसिक साइंसेज) ने आईएसआई द्वारा अपनी कमियों को स्वीकारने की संस्कृति को दुर्लभ और अनुकरणीय बताया। उन्होंने प्रो. महालनोबिस की तुलना विश्वकर्मा से करते हुए उन्हें विज्ञान और राष्ट्र निर्माण में अग्रणी व्यक्तित्व बताया।

समापन पर आईएसआई क्लब के सदस्यों द्वारा रवींद्र संगीत की प्रस्तुति दी गई और सभी उपस्थित लोगों ने राष्ट्रगान गाया। वक्ताओं ने एक स्वर में प्रो. महालनोबिस की भावना को जीवित रखने, विविधता में एकता को बनाए रखने और सार्वजनिक सेवा एवं सांख्यिकीय अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता पर बल दिया।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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