जींद, 30 मई . शहीदों के सरताज बाणी के जहाज एवं शांति के पुंज पांचवीं पातशाही गुरु अर्जुन देव का शहीदी गुरुपर्व शुक्रवार को शहर के सभी गुरुद्वारों में श्रद्धा व उल्लास से मनाया गया. शहर के सभी गुरुद्वारों में सुखमनी सेवा सोसायटी के सहयोग से शहीदी गुरुपर्व के सम्मान में चल रही श्री सुखमनी साहिब के पाठ की लड़ी के तहत श्री सुखमनी साहिब की बाणी का पाठ किया गया. शब्द कीर्तन गायन किया गया, साथ ही संगतों के लिए मीठे शरबत की छबील लगाई गई तथा लंगर का आयोजन किया गया.
गुरुघर के प्रवक्ता बलविंदर सिंह ने बताया कि पांचवीं पातशाही गुरु अर्जुन देव शहीदी गुरुपर्व के उपलक्ष में स्थानीय ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब में गुरमत समागम का आयोजन किया गया. जिसमें गुरुद्वारा साहिब के रागी भाई जसबीर सिंह रमदसिया एवं पांतड़ा पंजाब से आए भाई गुरमुख सिंह के रागी जत्थे द्वारा गुरु अर्जुन देव द्वारा श्री गुरु ग्रंथ साहिब में रचित बाणी के गुरबाणी शब्द कीर्तन का गायन किया. गुरुद्वारा साहिब के हैड ग्रंथी गुरविंदर सिंह रत्तक ने गुरु साहिब की शहादत को नमन करते हुए कहा कि गुरु अर्जुन देव को शहीदी का सरताज इसलिए कहा जाता है कि सिख धर्म में किसी गुरु द्वारा धर्म व समाज की भलाई के लिए अपने आप को कुर्बान करने वाले गुरु अर्जुन देव पहले गुरु थे.
गुरु घर के प्रवक्ता बलविंदर सिंह ने गुरू अर्जुन देव को जुल्म का नाश करने तथा धर्म का प्रकाश करने वाले बताते हुए कहा कि उनके द्वारा श्री गुरु ग्रंथ साहिब की पहली बीड़ अपने हाथों से तैयार करके दरबार साहिब अमृतसर में तय स्थान पर सुशोभित करके भाई बुड्डा जी को गुरु घर का पहला ग्रंथी थाप कर उनके द्वारा शुरू गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश पर्व आरंभ किया गया. बलविंदर सिंह ने बताया कि गुरु ग्रंथ साहिब में गुरू अर्जुन देव द्वारा रचित श्री सुखमनी साहिब की बाणी सहित करीब 2200 गुरबाणी के शब्द दर्ज हैं. गुरु अर्जुन देव को कुर्बानी का प्रतीक इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सिख धर्म की रक्षा के लिए तत्ती (गरम) तवी पर बैठ कर खुद को कुर्बान कर दिया था.
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/ विजेंद्र मराठा
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