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Bharat Bandh Alert: कल 25 करोड़ कर्मचारी करेंगे देशव्यापी हड़ताल, जानें आपके शहर पर क्या पड़ेगा असर!

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भारत में बुधवार को एक बड़े पैमाने पर हड़ताल की तैयारी है, जिसमें देश भर के 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी हिस्सा लेने वाले हैं। इस हड़ताल को 'भारत बंद' नाम दिया गया है, जो केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ एकजुट विरोध का प्रतीक है। यह हड़ताल न केवल शहरों, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों तक फैली है, जहां किसान और मजदूर एक साथ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। इस लेख में हम इस हड़ताल के कारणों, प्रभावों और इसके पीछे की मांगों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि आप इस ऐतिहासिक आंदोलन को बेहतर ढंग से समझ सकें।

हड़ताल का आह्वान और उसका महत्व

10 प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने मिलकर इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। इस हड़ताल का मकसद केंद्र सरकार की उन नीतियों का विरोध करना है, जिन्हें यूनियनें "श्रमिक विरोधी, किसान विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक" मानती हैं। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की नेता अमरजीत कौर के अनुसार, यह हड़ताल महीनों की मेहनत और संगठनात्मक तैयारियों का नतीजा है। इस आंदोलन में न केवल औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारी, बल्कि अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूर और ग्रामीण किसान भी शामिल होंगे। यह हड़ताल सरकार को यह संदेश देने का प्रयास है कि जनता अपनी मांगों को लेकर गंभीर है।

किन सेवाओं पर पड़ेगा असर?

इस हड़ताल का असर देश की कई महत्वपूर्ण सेवाओं और उद्योगों पर पड़ने की संभावना है। हिंद मजदूर सभा के नेता हरभजन सिंह सिद्धू ने बताया कि बैंकिंग, डाक सेवाएं, कोयला खनन, कारखाने और राज्य परिवहन सेवाएं इस हड़ताल से प्रभावित होंगी। आम जनता को बैंकिंग सेवाओं में रुकावट, डाक सेवाओं में देरी और सार्वजनिक परिवहन में व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है। यह हड़ताल उन लोगों के लिए भी असुविधा पैदा कर सकती है, जो इन सेवाओं पर निर्भर हैं। इसलिए, लोगों को पहले से तैयारी कर लेनी चाहिए, ताकि उनकी दैनिक जरूरतें प्रभावित न हों।

श्रमिकों की मांगें और सरकार का रवैया

ट्रेड यूनियनों ने पिछले साल श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को 17 मांगों का एक चार्टर सौंपा था, लेकिन उनका दावा है कि सरकार ने इन मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। यूनियनों का कहना है कि सरकार ने पिछले एक दशक से वार्षिक श्रम सम्मेलन तक आयोजित नहीं किया, जो श्रमिकों के प्रति उसकी उदासीनता को दर्शाता है। इन मांगों में बेहतर मजदूरी, नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा जैसे मुद्दे शामिल हैं। यूनियनों का मानना है कि सरकार की नीतियां कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही हैं, जबकि आम मजदूर और किसान उपेक्षित हैं।

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