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कब है मिथुन संक्रांति, क्या है इसका महत्व?

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Mithur sankranti 2025: सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश को मिथुन संक्रांति कहते हैं। इस बार सूर्यदेव 15 जून 2025 को मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। मिथुन संक्रान्ति पुण्य काल सुबह 06:53 से दोपहर 02:19 के बीच का रहेगा। महा पुण्य काल सुबह 06:53 से सुबह 09:12 के बीच रहेगा। इस दौरान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जा सकता है।

मिथुन संक्रांति का महत्व: मिथुन संक्रांति पर नदी स्नान करना, सूर्य को अर्घ्य देना, व्रत करना, घर की सफाई करना और किसी नए कार्य की शुरुआत करना बहुत ही शुभ होता है। भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर प्रांतों में मिथुन संक्रांति को माता पृथ्वी के वार्षिक मासिक धर्म चरण के रूप में मनाया जाता है, जिसे राजा पारबा या अंबुबाची मेला के नाम से जानते हैं। मिथुन संक्रांति के बाद से ही वर्षा ऋतु की विधिवत रूप से शुरुआत हो जाती है। मिथुन संक्रांति को रज पर्व भी कहा जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार मिथुन संक्रांति के दौरान वायरल संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है इसीलिए सेहत का ध्यान रखना जरूरी होता है।

मिथुन संक्रांति की पूजा विधि: मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे को भूदेवी के रूप में पूजा जाता है। सिलबट्टे को इस दिन दूध और पानी से स्नान कराया जाता है। इसके बाद सिलबट्टे पर चंदन, सिंदूर, फूल व हल्दी चढ़ाते हैं। मिथुन संक्रांति के दिन पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है। मिथुन संक्रांति के दिन गुड़, नारियल, आटे व घी से बनी मिठाई पोड़ा-पीठा बनाया जाता है। इस दिन किसी भी रूप में चावल ग्रहण नहीं किए जाते हैं।

मिथुन संक्रांति का दान: मिथुन संक्रांति पर किसी राहगीर, ब्राह्मण, पुजारी या गरीब को मसूर की दाल, चावल, चीनी, साबुत मूंग, हरी सब्जियों, नमक, विष्णु चालीसा, गन्ने का रस, दूध, दही, गुड़, मसूर, केसर मिश्रित दूध, काले तिल, उड़द की दाल, चमड़े की चप्पल, जूते, छाते, पके केले, बेसन आदि दान कर सकते हैं।

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