मिथुन संक्रांति का महत्व: मिथुन संक्रांति पर नदी स्नान करना, सूर्य को अर्घ्य देना, व्रत करना, घर की सफाई करना और किसी नए कार्य की शुरुआत करना बहुत ही शुभ होता है। भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर प्रांतों में मिथुन संक्रांति को माता पृथ्वी के वार्षिक मासिक धर्म चरण के रूप में मनाया जाता है, जिसे राजा पारबा या अंबुबाची मेला के नाम से जानते हैं। मिथुन संक्रांति के बाद से ही वर्षा ऋतु की विधिवत रूप से शुरुआत हो जाती है। मिथुन संक्रांति को रज पर्व भी कहा जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार मिथुन संक्रांति के दौरान वायरल संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है इसीलिए सेहत का ध्यान रखना जरूरी होता है।
मिथुन संक्रांति की पूजा विधि: मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे को भूदेवी के रूप में पूजा जाता है। सिलबट्टे को इस दिन दूध और पानी से स्नान कराया जाता है। इसके बाद सिलबट्टे पर चंदन, सिंदूर, फूल व हल्दी चढ़ाते हैं। मिथुन संक्रांति के दिन पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है। मिथुन संक्रांति के दिन गुड़, नारियल, आटे व घी से बनी मिठाई पोड़ा-पीठा बनाया जाता है। इस दिन किसी भी रूप में चावल ग्रहण नहीं किए जाते हैं।
मिथुन संक्रांति का दान: मिथुन संक्रांति पर किसी राहगीर, ब्राह्मण, पुजारी या गरीब को मसूर की दाल, चावल, चीनी, साबुत मूंग, हरी सब्जियों, नमक, विष्णु चालीसा, गन्ने का रस, दूध, दही, गुड़, मसूर, केसर मिश्रित दूध, काले तिल, उड़द की दाल, चमड़े की चप्पल, जूते, छाते, पके केले, बेसन आदि दान कर सकते हैं।
You may also like
सोशल मीडिया चेकिंग के बाद मिलेगा स्टूडेंट वीजा, US के नए फरमान के बीच किन बातों का ध्यान रखें छात्र?
TECNO Pova Curve 5G रिव्यू : 17 हजार की रेंज में क्या बन पाया सॉलिड मिड रेंज स्मार्टफोन?
श्रीलंका, बांग्लादेश ने मैथ्यूज के अंतिम टेस्ट मैच में ड्रा खेला
183 करोड़ रुपये के फर्जी बैंक गारंटी घोटाले का पर्दाफाश, पीएनबी के मैनेजर सहित दो गिरफ्तार
तुलसी लगाने से पहले जरूर जानें ये विशेष नियम, इनके बिना बार-बार सूख सकती है घर की तुलसी