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महेश जयंती: माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति कैसे हुई

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Katha Mahesh Navami: हर साल ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को महेश नवमी पर्व मनाया जाता है। महेश नवमी के दिन भगवान शिव के महेश्वर रूप की पूजा करते हैं। इस बार यह तिथि 4 जून 2025 बुधवार को रहेगी। यह पर्व खासकर माहेश्वरी समाज को लोग विशेष रूप से मनाते हैं, क्योंकि यह त्योहार समाज की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है।

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उत्पत्ति का कारण: समाज की कथा के अनुसार युधिष्ठिर सम्वत 9 ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश तथा माता पार्वती ने ऋषियों के श्राप के कारण पत्थर में परिवर्तित हो चुके 72 क्षत्रियों को शाप से मुक्त कर दिया था। इसके बाद उन्होंने कहा था कि आज से तुम्हारे वंशपर हमारी छाप रहेगी, अर्थात तुम माहेश्वरी नाम से जाने जाओगे। इस तरह से माहेश्वरी समाज का जन्म हुआ। इसीलिए भगवान महेश एवं माता पार्वती को ही माहेश्वरी समाज का संस्थापक माना जाता है।

पौराणिक कथा:

महेश नवमी की कथा के अनुसार एक खडगलसेन राजा थे। प्रजा राजा से प्रसन्न थी। राजा व प्रजा धर्म के कार्यों में संलग्न थे, पर राजा को कोई संतान नहीं होने के कारण राजा दु:खी रहते थे। राजा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कामेष्टि यज्ञ करवाया। ऋषियों-मुनियों ने राजा को वीर व पराक्रमी पुत्र होने का आशीर्वाद दिया, लेकिन साथ में यह भी कहा 20 वर्ष तक उसे उत्तर दिशा में जाने से रोकना।

नौवें माह प्रभु कृपा से पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा ने धूमधाम से नामकरण संस्कार करवाया और उस पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा। वह वीर, तेजस्वी व समस्त विद्याओं में शीघ्र ही निपुण हो गया। सुजान कंवर को बचपन से ही जैन धर्म में आस्था थीं। एक दिन एक जैन मुनि उस गांव में आए। उनके धर्मोपदेश से कुंवर सुजान बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने जैन धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे। धीरे-धीरे लोगों की जैन धर्म में आस्था बढ़ने लगी। स्थान-स्थान पर जैन मंदिरों का निर्माण होने लगा।

एक दिन वे शिकार खेलने वन में गए और अचानक ही राजकुमार सुजान कंवर उत्तर दिशा की ओर जाने लगे। सैनिकों के मना करने पर भी वे नहीं माने। उत्तर दिशा में सूर्य कुंड के पास ऋषि यज्ञ कर रहे थे। वेद ध्वनि से वातावरण गुंजित हो रहा था। यह देख राजकुमार क्रोधित हुए और बोले- 'मुझे अंधरे में रखकर उत्तर दिशा में नहीं आने दिया' और उन्होंने सभी सैनिकों को भेजकर यज्ञ में विघ्न उत्पन्न किया। इस कारण ऋषियों ने क्रोधित होकर उनको श्राप दिया और वे सब पत्थरवत हो गए।

राजा ने यह सुनते ही प्राण त्याग दिए। उनकी रानियां सती हो गईं। राजकुमार सुजान की पत्नी चन्द्रावती सभी सैनिकों की पत्नियों को लेकर ऋषियों के पास गईं और क्षमा-याचना करने लगीं। ऋषियों ने कहा कि हमारा श्राप विफल नहीं हो सकता, पर भगवान भोलेनाथ व मां पार्वती की आराधना करो। सभी ने सच्चे मन से भगवान की प्रार्थना की और भगवान महेश व मां पार्वती ने अखंड सौभाग्यवती व पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। चन्द्रावती ने सारा वृत्तांत बताया और सबने मिलकर 72 सैनिकों को जीवित करने की प्रार्थना की। महेश भगवान पत्नियों की पूजा से प्रसन्न हुए और सबको जीवनदान दिया।

भगवान शंकर की आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य धर्म को अपनाया। इसलिए आज भी समस्त माहेश्वरी समाज इस दिन श्रद्धा व भक्ति से भगवान शिव व मां पार्वती की पूजा-अर्चना करते हैं तथा इसे 'माहेश्वरी समाज' के नाम से जाना जाता है।

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

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